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कला के आधुनिक रूप का लाभ सांस्कृतिक सुदृढ़ीकरण में हो – रामनाथ कोविंद जी

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bihar-3पटना (विसंकें). बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद जी ने कहा कि बच्चों की दुनिया आज केवल कार्टून तक सीमित हो गई है. उसके कई घातक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. बच्चों की फिल्में बड़ों को भी प्रेरित करती है. अतः बाल चलचित्र महोत्सव इस दिशा में समाधान के साथ-साथ सिनेमा-शिक्षण के लिए प्रासांगिक है. राज्यपाल विश्व संवाद केंद्र (पाटलिपुत्र सिने सोसायटी) तथा चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी, इंडिया द्वारा आयोजित तीन दिवसीय बाल फिल्म महोत्सव ‘फिल्म बोनांजा’ के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हमें बाल कलाकारों का सहयोग कर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए.

विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित फिल्मोत्सव की सराहना करते हुए कहा कि बिहार में संभवतः पहली बार एक ऐसा फिल्मोत्सव हो रहा है, जिसके केंद्र में विशेष तौर से बच्चे हैं. बाल फिल्में बड़ों के लिए भी प्रेरणादायी होती है. अतः अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बाल फिल्में देखें. आशा व्यक्त की कि आने वाले समय में पाटलिपुत्र सिने सोसायटी बड़े पैमाने पर ऐसे आयोजन करेगी, जिससे बिहार में सिनेमा को एक नई ऊँचाई प्राप्त हो. विश्व संवाद केंद्र जैसी संस्थाओं से अपेक्षा है कि आने वाले समय में कला के आधुनिक रूप का लाभ समाज के सांस्कृतिक सुढृढ़ीकरण में हो. बाल चलचित्र महोत्सव की महत्ता इस मायने में भी खास है कि इसमें सिनेमा के विविध आयामों से बच्चों का परिचय फिल्म विशेषज्ञों द्वारा कराया जा रहा है.

फिल्म विश्लेषक प्रो. जयदेव जी ने कहा कि बिहार में स्वस्थ्य सिनेमा संस्कृति को समृद्ध करने के लिए पाटलिपुत्र सिने सोसायटी प्रतिबद्ध है. सोसायटी की गतिविधियों पर कहा कि इस वर्ष जुलाई महीने में सोसायटी द्वारा ‘भविष्यत्’ नामक लघु फिल्मोत्सव का आयोजन किया गया था, जिसमें 25 लघु फिल्में दिखाई गईं थी. अपने साप्ताहिक प्रदर्शन में सोसायटी ने विगत पांच वर्षों में 250 से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन किया है. पिछले वर्ष ‘बिहार, सिनेमा और…..’ शीर्षक से एक स्मारिका का प्रकाशन किया गया था, जिसमें सिनेमा जगत में बिहार के योगदान को रेखांकित करने का प्रयास हुआ था.

bihar-2विश्व संवाद केंद्र के सचिव डॉ. संजीव चौरसिया ने बताया कि विश्व संवाद केंद्र शुरू से बिहार में सांस्कृतिक संवर्द्धन के लिए कार्य कर रहा है. बिहार की संस्कृति को एक बड़े फलक पर विस्तार करने के लिए संस्था प्रयासरत है. बिहार में फिल्मों के बड़े आयोजन हों, फिल्म अकादमी की स्थापना हो, बाल कलाकारों को उचित मंच मुहैय्या हो तथा बिहार के कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले, इस दिशा में विश्व संवाद केंद्र लगातार कार्य कर रहा है.

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष प्रकाश नारायण सिंह जी ने कहा कि योजना है कि अगली बार से सात दिनों का फिल्मोत्सव का आयोजन किया जाए, जिसमें अधिक संख्या में फिल्में देखने का अवसर बिहार के फिल्म प्रेमियों को मिले. कार्यक्रम का मंच संचालन पाटलिपुत्र सिने सोसायटी के संयोजक प्रशांत रंजन ने किया.

कार्यक्रम के संबंध में संयोजक प्रशांत रंजन ने बताया कि पहले दिन दो फिल्में दिखाई गयीं. शिल्पा रानाडे द्वारा निर्देशित एनिमेशन फिल्म ‘गोपी गवैय्या बाघा बजैया’, यह फिल्म गोपी और बाघा नामक दो मूर्खों के बारे में है जो अपने संगीत प्रेम के कारण एक जगह आते हैं और फिर दिलचस्प वाकयों से गुजरते हैं. उसके बाद मोहिंद्र प्रताप सिंह निर्देशित ‘एक था भुजंग’ दिखाई गई. यह एक स्कूली छात्र कबीर की कहानी है जो अपनी सूझ-बूझ से भुजंग सांप से मुकाबला करता है. अपनी प्रतिभा के बल पर पूरे स्कूल से उसे सराहना मिलती है.

दूसरे दिन पहले सत्र में राजन खोशा निर्देशित ‘गट्टू’ का प्रदर्शन किया जाएगा. यह सिनेमा गट्टू नामक एक गरीब लेकिन होशियार बालक के बारे में है. आसमान में अनगिनत पतंगों के बीच एक काली नाम का अजेय पतंग उड़ता है, जिसके उड़ाने वाले का पता नहीं है. उस पतंग को हराने की चुनौती गट्टू नाम का बालक स्वीकार करता है. यह फिल्म संदेश देती है कि जब इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कोई भी सपना असंभव नहीं होता. दूसरे सत्र में बातुल मुख्तियार निर्देशित फिल्म ‘कफल’ का प्रदर्शन किया जाएगा. यह फिल्म मकर और कमरू नामक दो लड़कों की है जो एक छोटे से गांव में रहते हैं. वे अपने अति अनुशासन प्रिय पिता से छुटकारा पाना चाहते हैं. छुटकारा पाने के लिए जंगल में एक चुड़ैल की मदद लेते हैं.

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