23 दिसंबर को संसद का शीतकालीन सत्र विपक्षी दलों के हंगामे के चलते हुये गतिरोध की भेंट चढ़ गया. देश के कई हिस्सों में घर वापसी की कुछ घटनाओं के चलते विपक्ष ने यह सब किया. यद्यपि सरकार ने पहले ही दिन यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि सदन के सदस्य तैयार हों तो वह धर्मांतरण (कन्वर्जन) विरोधी कानून लाने को तैयार है. जबकि विपक्ष ने इस विषय पर बिना चर्चा किये लगातार अवरोध को बनाये रखा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने घर वापसी और धर्मांतरण संबंधी मुद्दों पर अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए :
प्रश्न : संसद का शीतकालीन सत्र कन्वर्जन पर हुए विवाद की भेंट चढ़ गया. आप इसे कैसे देखते हैं?
उत्तर : जनता के हितों में लिये गये कई निर्णयों से सरकार की बढ़ती लोकप्रियता ने विपक्षी पार्टियों को मुद्दा विहीन बना दिया है. विपक्ष के पास सरकार के विरुद्ध बोलने के लिये कोई तार्किक मुद्दा नहीं है. इस हो-हल्ले के माध्यम से उन्हें सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी. असली तथ्य यह है कि कन्वर्जन कहीं भी किसी प्रकार का मुद्दा नहीं है. यह उन लोगों की घर वापसी है जो अतीत में विविध कारणों से अपनी मूल जड़ों से अलग हो गये थे. वही लोग बिना किसी दबाव या प्रलोभन के अब अपने घर वापस आ रहे हैं. संविधान प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी समय अपनी आस्था और पूजा पद्धति बदलने का स्वातंत्र्य देता है. इसलिये इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है. पहले भी बड़े पैमाने पर इस्लाम और ईसाइयों द्वारा कन्वर्जन की बड़ी घटनाएं हुई हैं जहां प्रलोभन, भय और दबाव के कारण कन्वर्जन कराया गया, ऐसे कई उदाहरण हैं. इसलिए ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए उड़ीसा और मध्य प्रदेश सरकारों ने कई वर्ष पूर्व कन्वर्जन विरोधी कानून बनाए. नियोगी समिति ने उस समय पर्याप्त साक्ष्यों के साथ ये बात रखी थी कि लोगों को प्रलोभन के माध्यम से कन्वर्जन के लिए विवश किया जा रहा है. इसके साथ इसमें यह बात भी जुड़ी थी कि बड़ी मात्रा में कन्वर्जन के कारण आंतरिक सुरक्षा से संबंधित समस्याएं बढ़ रही हैं. उस समय न केवन इन दो राज्यों में बल्कि केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार थी. अभी आठ वर्ष पूर्व (2006 में) हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी, वह भी कन्वर्जन विरोधी कानून लाई थी. प्रश्न यह उठता है कि कांग्रेस सरकारों ने ऐसे कानूनों को लाने की जरूरत क्यों समझी. आज जबरन, छल द्वारा कन्वर्जन पर चर्चा करने की बजाय वे सदन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं. इस कन्वर्जन पर सीधे बात इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि सभी जगह ईसाई मिशनरी या चर्च, छल, प्रलोभन या दबाव से कन्वर्जन पर प्रतिबंध लगाने के विरोधी हैं. ये सब इस कानून का विरोध क्यों कर रहे हैं, ये गंभीरता से जानने की जरूरत है. हाल का संसद का गतिरोध अनावश्यक था. यदि देश में कहीं कोई चीज गैरकानूनी रूप से हो रही है तो उसके लिए राज्य सरकार है जो उचित कार्रवाई कर सकती है. दूसरा प्रश्न यह उठता है कि सारे विपक्षी दल केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित कन्वर्जन विरोधी कानून पर मौन क्यों हो जाते हैं?
प्रश्न : क्या घरवापसी कन्वर्जन नहीं है ?
उत्तर : नहीं, घरवापसी कन्वर्जन नहीं है. प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि भारत में 99 प्रतिशत मुसलमानों या ईसाईयों के पूर्वज हिंदू ही हैं. जो समय-समय पर कन्वर्ट हुए हैं. आज वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से स्वयं को अलग-थलग महसूस करते हैं. हम कभी भी कन्वर्जन के पक्ष में नहीं रहे. कई मुसलमान और ईसाई हमारी दैनिक शाखाओं में या प्रशिक्षण शिविरों में प्रत्येक वर्ष आते हैं, हम कभी भी उनको कन्वर्ट करने का प्रयास नहीं करते. हम सोचते हैं कि भारत में रहने वाले सभी लोग सांस्कृतिक रूप से हिंदू हैं, हालांकि उनके संप्रदाय या उपासना मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं. कई मुसलमान और ईसाई अपने मजहब और पंथ को मानते हुए भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर उसमें सक्रिय हैं. मोहम्मद करीम छागला ने एक बार कहा था ‘ मजहब से मैं एक मुसलमान हूं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से मैं एक हिंदू हूं.’ आज समाज के एक वर्ग में अपनी मूल जड़ों से जुड़ने का भाव उठ रहा है, वे आगे बढ़कर आ रहे हैं और समाज भी उनका स्वागत कर रहा है, यह घरवापसी है कन्वर्जन नहीं.
प्रश्न : क्या आप यह सोचते हैं कि कन्वर्जन के खिलाफ केंद्रीय कानून बनने से यह समस्या हल हो जाएगी ?
उत्तर : केवल कानून बनाने से इस मुद्दे का समाधान नहीं होगा. छल, प्रलोभन या दबाव के द्वारा हो रहे कन्वर्जन को यह कुछ कम करने में मददगार सिद्ध होगा. स्थाई समाधान के लिए समाज में जागरूकता लानी बहुत जरूरी है. यदि सरकार प्रस्तावित कन्वर्जन विरोधी कानून लाती है तो हम इसका समर्थन करेंगे.
प्रश्न : देखने में यह आया है कि कई लोग अपनी मूल जड़ों से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन उनका मूल समुदाय उनको हृदय से स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होता. इस समस्या का हल कैसे निकलेगा ?
उत्तर : हिंदू समाज में इसके लिए भी निरंतर जागरूकता बढ़ रही है. कई लोग या संगठन इसके लिए कार्य कर रहे हैं. पहले तो धर्माचार्य भी इस प्रकार की घरवापसी की अनुमति नहीं देते थे, लेकिन 1966 में प्रयाग में पहली बार विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित हिंदू धर्माचार्य और संतों के पहले सम्मेलन में एक प्रस्ताव के द्वारा यह घोषणा की गई कि हम अपने उन भाइयों और बहनों का स्वागत करेंगे जो अपने मूल धर्म में से चले गए थे, लेकिन अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ना चाहते हैं. तब से हिंदू समाज अपने बिछड़े लोगों को स्वीकारने के लिए उत्सुक भी है और उनका स्वागत भी कर रहा है. इसी कारण बड़ी संख्या में लोग अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए आगे बढ़कर आ रहे हैं. यह किसी प्रकार के कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं कर रहा है, क्योंकि घरवापसी एक स्वाभाविक आकांक्षा है अपनी जड़ों से जुड़ने की.
प्रश्न : कई बार यह देखा गया है कि हम ईसाईयत और इस्लाम में हो रहे कन्वर्जन का तो विरोध करते हैं, लेकिन बौद्ध और सिख मत द्वारा कराए गए का नहीं ?
उत्तर : हम सहज कराए गए कन्वर्जन का विरोध नहीं करते. केवल तब विरोध करते हैं जब छल और प्रलोभन के माध्यमों से लोगों को गलत दिशा में भटकाया जाता है. व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक आदमी किसी भी प्रकार की पूजा या उपासना के लिए स्वतंत्र है, यह बात मैं प्रारंभ में कह चुका हूं. हम उन मुसलमानों और ईसाइयों को कन्वर्ट करने की कोशिश नहीं करते, जो हमारी शाखाओं में आते हैं या शिविरों में उपस्थित होते हैं. वे अपने-अपने उपासना पंथ का अनुसरण करते हैं.
प्रश्न : संघ की शाखाओं में कितने मुसलमान और ईसाई आते हैं?
उत्तर : हम ऐसा कोई हिसाब नहीं रखते.
प्रश्न : कुछ समय पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा मुसलमानों और ईसाईयों से संवाद की एक पहल शुरू हुई थी. उस पहल की उपलब्धि क्या रही?
उत्तर : इस पहल का परिणाम अच्छा रहा. यह पहल तब शुरू की गई थी जब स्वर्गीय सुदर्शन जी सरसंघचालक थे. विजयादशमी के अपने एक भाषण में उन्होंने इस्लाम के भारतीयकरण और स्वदेशी चर्च का आह्वान किया था. उनके इस आह्वान का दोनों ही समुदाय के लोगों ने स्वागत किया और उनसे संपर्क भी किया. तब से यह संवाद प्रक्रिया निरंतर जारी है और यह स्वाभाविक रूप से आगे की ओर बढ़ेगी.