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भारत की नदियों को बचाने के लिये सद्गुरू की पहल ‘नदी अभियान’ का शुभारंभ

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कोयंबटूर. भारत की नदियों को बचाने के लिये सद्गुरु की पहल ‘नदी अभियान’ को 03 सितम्बर को वीओसी ग्राउंड्स, कोयंबटूर, तमिलनाडु में झंडी दिखा कर रवाना किया गया. इसे पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनोर जी और केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ी वीरेंद्र सहवाग, तमिलनाडु के केंद्रीय ग्रामीण विकास व नगरपालिका प्रशासन मंत्री तिरु एस.पी. वेलुमनी, महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज, फार्मूला वन रेस कार ड्राइवर नारायण कार्तिकेयन, रैली पार्टनर महिंद्रा ग्रुप के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट वीजे राम नाकरा और तकनीकी पार्टनर तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. के. रामास्वामी ने झंडी दिखाकर रवाना किया.

‘यह कोई विरोध प्रदर्शन या धरना नहीं है. यह लोगों में जागरूकता पैदा करने का एक अभियान है कि हमारी नदियां सूख रही हैं. पानी पीने वाले हर इंसान को नदी अभियान में हिस्‍सा लेना होगा, सद्गुरू ने कहा. सद्गुरू 03 सितंबर से 02 अक्तूबर के बीच खुद गाड़ी चलाकर कन्याकुमारी से हिमालय तक की 7000 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे. यह यात्रा 16 राज्यों से होकर गुजरेगी, जहां विभिन्‍न शहरों में 23 कार्यक्रम होंगे. अभियान में देश के अलग-अलग हिस्सों में नेता और सेलेब्रिटी सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं. पंद्रह मुख्यमंत्रियों ने आंदोलन को अपना समर्थन देने की पुष्टि की है और शायद पहली बार 300 से अधिक सेलेब्रिटी और सार्वजनिक हस्तियां किसी एक मकसद के लिए साथ आ रही हैं.

01 सितंबर 2017 को देश भर के लगभग 60 शहरों में ‘नदी अभियान’ जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित हुआ. यह कार्यक्रम हर किसी को हमारी सूख रही नदियों की स्थिति के बारे में जागरूक करने, नदी अभियान के बारे में समाज के विभिन्‍न वर्गों में जागरूकता पैदा करने, जन समर्थन जुटाने और अभियान को रफ्तार देने की एक कोशिश थी. लाखों लोगों ने अपना समर्थन जताया है, आप भी ऐसा कर सकते हैं. बस 80009-80009 पर एक मिस्ड कॉल दें. आपका सिर्फ एक मिस्ड कॉल हमारी नदियों में जान फूंकने की एक विशाल लहर का एक हिस्सा बन जाएगा.

भारत की नदियों को पुनर्जीवित करने की जरूरत और समाधान पर रचनात्मक लेखन और कला प्रतियोगिताएं भारत के लगभग एक लाख स्कूलों में शुरू हो चुकी हैं. इन सभी स्कूलों में असेंबली के दौरान नदी स्तुति बजाई जाएगी, जिसके बाद सद्गुरु और वीरेंद्र सहवाग की अपील सुनाई जाएगी. नदी अभियान में शेखर कपूर, राकेश ओमप्रकाश मेहरा और प्रह्लाद कक्कड़ के सहयोग से एक राष्ट्रीय शॉर्ट फिल्म प्रतियोगिता की भी शुरूआत की गई है.

पर्यावरण वैज्ञानिकों और कानून विशेषज्ञों की एक विशेष समिति भी एक नीति बनाने की सिफारिश का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में है, जिसमें नदियों के दोनों तरफ एक किलोमीटर की चौड़ाई में पेड़ लगाने का सुझाव दिया गया है. सरकारी जमीन पर जंगल और खेती की जमीन पर फलों के पेड़ लगाए जाएंगे, जिससे यह पक्का किया जा सके कि मिट्टी तथा हवा में नमी की वजह से सालों भर नदियों में पानी बहता रहे. इस समाधान से नदियों को फिर से नया जीवन मिलेगा और किसानों की जमीन में फलों और अन्य प्रकार के पेड़ लगाने से उनकी आमदनी में भी काफी इजाफा होगा. फलों की उपलब्धता से लोगों के आहार में पौष्टिकता भी बेहतर होगी. पेड़ों से नदियां बारह मास बहती रहती हैं, बाढ़ और सूखे की घटनाएं कम होती हैं, वर्षापात बढ़ता है, जलवायु परिवर्तन का असर कम होता है और मिट्टी का कटाव रुकता है.

नदी अभियान क्यों –

भारत की नदियां भयंकर बदलाव से गुजर रही हैं. हमारी बारह मास बहने वाली नदियां साल में कुछ महीने ही बह रही हैं. कई छोटी नदियां तो पहले ही गायब हो चुकी हैं. बाढ़ और सूखे की घटनाएं जल्दी-जल्दी हो रही हैं क्योंकि मानसून के दौरान नदियां बेकाबू हो जाती हैं और बरसात के बाद गायब हो जाती हैं. यह कटु सच्चाई है कि 25 प्रतिशत भारत रेगिस्तान में बदल रहा है और 15 सालों में ऐसा हो सकता है कि हमें अपने गुजारे के लिए जितने पानी की जरूरत है, उसका सिर्फ आधा ही‍ मिल पाए. गंगा, कृष्णा, नर्मदा, कावेरी – हमारी कई महान नदियां तेजी से सूख रही हैं. अगर हमने अभी कुछ नहीं किया तो हम अगली पीढ़ी को सिर्फ संघर्ष और अभाव की विरासत सौंप पाएंगे.

आंकलन के अनुसार हमारी जल की जरूरत का 65 प्रतिशत नदियों से पूरा होता है. 03 में से 02 बड़े भारतीय शहर पहले से पानी की कमी से जूझ रहे हैं और हमें एक कैन पानी के लिए सामान्य से दस गुना पैसे चुकाने पड़ते हैं. हम पानी को सिर्फ पीने या घरेलू इस्तेमाल में ही नहीं लाते, बल्कि 80 फीसदी पानी हमारे भोजन को उगाने में लगता है. हर व्यक्ति की औसत जल आवश्यकता 11 लाख लीटर सालाना है. बाढ़, सूखा और नदियों का मौसमी बनना देश में फसलों की बर्बादी का कारण बन रहे हैं. अगले 25-50 सालों में जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और सूखे की स्थिति बदतर होने की उम्मीद है. मानूसन के दौरान नदियों में बाढ़ आएगी. बाकी साल सूखा पड़ा रहेगा. ये रुझान शुरू भी हो चुके हैं.

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