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राष्ट्रवाद से समझौता राष्ट्र को विखण्डन की ओर ले जाता है – इंद्रेश कुमार जी

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गुरू गोविन्द सिंह का 350वां प्रकाश वर्ष पर प्रबुद्धजन सम्मेलन

कोटा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि दशम गुरू गोविंद सिंह जी अहिंसा के प्रबल पैरोकार थे. कष्टों को सहन करते हुए और बलिदान करते हुए भी गुरू गोविंद सिंह जी ने अपनी अहिंसावादी नीति को जारी रखा था. यहां तक कि युद्ध के मैदान में भी उन्होंने अहिंसा का परिचय दिया. इंद्रेश कुमार जी शुक्रवार को बल्लभबाड़ी स्थित सूरज भवन में प्रबुद्धजन सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. दशम गुरू गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाश वर्ष के उपलक्ष्य में भारतीय लोक कल्याण प्रन्यास की ओर से शुक्रवार को प्रबुद्धजन सम्मेलन का आयोजन किया गया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता गुमानपुरा गुरूद्वारे के प्रधान सरदार मनमोहन सिंह सेठी जी ने की.

उन्होंने कहा कि 27 बौद्ध होने के बाद बौद्ध मत शुरू हुआ, 24 तीर्थंकरों के बाद जैन मत प्रारंभ हुआ. इसी प्रकार 28 रसूल आने के बाद मोहम्मद साहब ने मत की शुरूआत की थी. वैसे ही दसवें गुरू ने गुरूगद्दी पवित्र गुरू ग्रंथ साहिब को सौंप दी और सिक्ख और खालसा पंथ शुरू किया. पंथ परिस्थितियों में जन्म लेते हैं. हमारी जाति और धर्म के आधार पर हमारी राष्ट्रीयता नहीं बदलती है. उन्होंने कहा कि मां और मातृभूति का चुनाव व्यक्ति नहीं करता है. इसे वाहे गुरू चुनकर भेजते हैं.

इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि राष्ट्रवाद से समझौता सदैव विखण्डन की ओर ले जाता है. पं. नेहरू द्वारा समझौता किया गया तो हजारों मील भूमि खोनी पड़ी. वहीं बापू ने समझौता किया तो देश को क्रूरतापूर्ण विखण्डन झेलना पड़ा. पहली से दसवीं पादशाही तक हमें शासन, प्रशासन और देशप्रेम की सीख मिलती है. गरीबों से प्रेम करने की सीख पहली से दसवीं पातशाही तक देखने को मिलती है. सिक्ख समाज बलिदानी परंपरा का वाहक रहा है. यह सिखाता है कि अपनी जाति का स्वाभिमान करो, लेकिन किसी को अछूत मत समझो. उन्होंने कहा कि भारत कोई मज़हबी देश नहीं है. यहां धर्मान्तरण और धर्मान्धता से मुक्ति के लिए कार्य किया जाना चाहिए. हिन्दू शब्द राष्ट्रवाचक है. सन् 1666 से 1711 तक हमारे दशम गुरू ने जीवन मूल्यों की स्थापना में लगाया और राष्ट्रवाद की कीमत चुकाई.

कार्यक्रम के अध्यक्ष मनमोहन सेठी जी ने कहा कि औरंगजेब की प्रताड़नाओं के बावजूद गुरू गोविंद सिंह जी ने साहस नहीं छोड़ा. इस अवसर पर प्रन्यास के अध्यक्ष महेन्द्र कुमार जैन, मंत्री ताराचन्द गोयल, प्रान्त प्रचारक विजयानन्द जी, सह प्रान्त प्रचारक मुरलीधर जी सहित अन्य उपस्थित थे.

अपनी कमाई को काली न बनाएं

इन्द्रेश जी ने कहा कि अरबों खरबों रूपए की मेहनत की कमाई विदेशी बैंकों में जमा कराने से वह किसी के काम नहीं आ पा रही है. जबकि उसका कुछ हिस्सा जमा कराने के बाद शांतिपूर्वक जीवनयापन किया जा सकता है. हमें टैंक्स को भारत की सुरक्षा का अनुदान मानकर देना चाहिए. दान पुण्य करने वाले व्यक्ति के साथ सर्वाधिक टैक्स चुकाने वाले व्यक्ति के रूप में हमारी पहचान बननी चाहिए. पूर्व सरकार ने जेल भेजने की झूठी कोशिशें की, लेकिन अकाल सत्य है, वैसे ही हमने सत्य नहीं छोड़ा तो झूठ चला गया और सरकार भी चली गई.

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