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राष्ट्र की एकता और अखंडता में संघ का योगदान अविस्मरणीय – रामदत्त चक्रधर जी

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रांची (विसंकें). झारखण्ड की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्र सम्वर्धन समिति झारखण्ड द्वारा रांची विश्वविद्यालय केंद्रीय सभागार में ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता में संघ का योगदान’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची के कुलपति परविंदर कौशल जी तथा मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर पूर्व क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर जी का उद्बोधन हुआ.

विषय प्रवेश कृषि विश्वविद्यालय के पंकज वत्सल जी ने किया. उन्होंने संघ की स्थापना, संघ कार्य व विदेशों में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के बारे में जानकारी दी. अनुषांगिक संगठनों के बारे में भी बताया. मुख्य अतिथि डॉ. परविंदर कौशल जी ने कहा कि समय के साथ अपने कदम से कदम मिलाकर यदि कोई संगठन चला तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. यह संगठन हिन्दू समाज को संगठित करना व देश को सर्वोच्च शिखर पर ले जाना अपना मुख्य लक्ष्य मानता है. सन् 1940 से 1973 तक श्री गुरूजी ने संघ को सरसंघचालक के रूप में विस्तृत आयाम दिया. विशेषकर आज़ादी के दिनों में संघ के कार्यकर्ताओं ने अदम्य साहस का कार्य किया. पाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्ध हों या गोवा मुक्ति आंदोलन, संघ का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है. देश के अनेक भागों में आपदा के समय संघ के कार्यकर्ताओं का सेवा भाव अत्यंत सराहनीय रहा है. संघ समरस समाज के लिए सतत् कार्यशील है. वसुधैव कुटुम्बकम इसकी पहचान है. संघ मानता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है.

क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर जी ने कहा कि संघ अपने स्थापना काल से ही अनेक अप-प्रचारों का शिकार हुआ है. वर्ष 1948 में पूज्य गांधी जी की हत्या का मिथ्या आरोप लगा. सन् 1975 में आपातकाल झेला. पहले NO RSS, लेकिन अब KNOW RSS के लिए लोग उत्सुक हैं. सन् 1920 में नागपुर में डॉ. हेडगेवार जी ने कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण आज़ादी की मांग रखी, लेकिन मानी नहीं गयी. 1930 में पूर्ण स्वराज की मांग पारित होने पर संघ की सभी शाखाओं पर संकल्प दिवस मना. सन् 1947 में विभाजन की त्रासदी में हिन्दुओं की रक्षा करते हुए कितने ही स्वयंसेवकों ने मृत्यु का वरन किया. घायल लुटे-पिटे हिन्दुओं के पुनर्वास में जो कार्य संघ के स्वयंसेवकों ने किया, वो सराहनीय है. सन् 1948 में पाकिस्तानी कबायलिओं के आक्रमण के समय भी संघ के कार्यकर्ताओं ने अपना बलिदान देकर सेना को सहयोग किया था. जम्मू कश्मीर का प्रश्न यदि आज भयावह है तो इसकी जिम्मेवार तत्कालीन सरकार है. जम्मू कश्मीर को भारत में विलय पर श्रीगुरुजी ने महाराजा हरि सिंह को राजी किया था. सन् 1954 में सिलवासा में पुर्तगाली झंडे फहरते थे, 100 स्वयंसेवकों ने पुर्तगालियों से इसे मुक्त करवाया. बाद में ये स्वयंसेवक स्वतंत्रता सेनानी माने गए. गोवा में भी स्वयंसेवकों का आज़ादी में योगदान प्रेरणादायी है. सन् 1962 में भी संघ का योगदान नकारा नहीं जा सकता है. उस समय भारत में साम्यवादी खुलेआम चीन के समर्थन में खड़े थे. चीन को हर तरह की सहायता भारत के साम्यवादी दे रहे थे, ऐसे में संघ का उस समय किया कार्य इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. तभी 1963 में नेहरूजी ने संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में आमंत्रित किया. 17 दिनों तक दिल्ली की ट्रैफिक संभालने वाले संघ के कार्यकर्ताओं का योगदान किसी से छिपा नहीं है. असम, गुजरात, हैदरावाद, पंजाब में संघ के कार्यकर्ताओं ने देश की एकता और अखंडता के लिये सकारात्मक प्रयास किया. राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिये संघ अपने स्थापना काल से ही निरन्तर कार्य कर रहा है. संघ ने शाखाओं के माध्यम से व्यक्ति निर्माण की जो प्रक्रिया अपनाई, वह अद्भुत है. संघ का मानना है कि यदि व्यक्ति राष्ट्र के प्रति सकारात्मक सोच से अभिभूत हो और अपने संस्कार और संस्कृति के प्रति अटूट श्रद्धा का भाव रखता है तो वह राष्ट्र सदैव समृद्धि के सोपान पर आरूढ़ होगा. 1925 से लेकर आज तक स्वयंसेवक नि:स्वार्थ भाव से बगैर किसी भेदभाव समाज सेवा में लगा है. हम इस भारत भूमि को जमीन का टुकड़ा या भोगभूमि नहीं मानते, बल्कि यह तो हम सब की पवित्र मातृ-पितृ भूमि है.

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