कुरुक्षेत्र (विसंकें). विद्या भारती के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री यतेंद्र शर्मा जी ने कहा कि व्यक्ति का चरित्र तथा राष्ट्र का चरित्र एक सिक्के के दो पहलू हैं. इसलिए राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए व्यक्तियों का चरित्र निर्माण करना होगा और यह तभी संभव है, जब हम अपने विद्यार्थियों को संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान करेंगे. विद्या भारती इस दिशा में प्रयासरत है. नई पीढ़ी के निर्माण के लिए विद्या भारती ने समाज में बिखरी अपने पूर्व छात्रों की शक्ति को एकत्रित करने का निर्णय लिया है. यतेंद्र जी कुरुक्षेत्र के गीता निकेतन आवासीय विद्यालय परिसर में स्थित सभागार में सृजन कार्यक्रम में विद्या भारती के पूर्व छात्रों को संबोधित कर रहे थे. विद्या भारती द्वारा हरियाणा के विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त पूर्व छात्रों के मिलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था. कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रीय मंत्री हेमचंद्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक बनवीर सिंह जी, प्रांत प्रचारक विजय कुमार जी, विद्या भारती के उत्तर क्षेत्र के महामंत्री सुरेंद्र अत्री जी, संस्कृति शिक्षा उत्थान न्यास के संयोजक एवं श्रीमद्भगवद्गीता विद्यालय के पूर्व प्राचार्य दीनानाथ बत्तरा जी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. इस अवसर पर कार्यक्रम में मौजूद पूर्व छात्रों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.
यतेंद्र जी ने कहा कि 1952 में गोरखपुर में सरस्वती शिशु मंदिर की शुरूआत हुई और 1977 में विद्या भारती का गठन हुआ. आज देश भर में विद्या भारती के 12363 विद्यालय हैं. इनमें 32 लाख विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. देश में विद्या भारती के दो हजार उच्च विद्यालय तथा 3679 संस्कार केंद्र तथा 6127 एकल विद्यालय चल रहे हैं. आज हर क्षेत्र में विद्या भारती के पूर्व छात्र कार्यरत हैं. व्यक्ति, शिक्षा व समाज में परिवर्तन करने के लिए पूर्व छात्रों की बिखरी शक्ति को विद्या भारती द्वारा एकत्रित किया जा रहा है. ताकि पूर्व छात्रों की शक्ति को संगठित कर बुराइयों को खत्म कर नए भारत का सृजन किया जा सके. उन्होंने विद्या भारती के पूर्व छात्रों से आह्वान किया कि वह अपने सामर्थ्य, अपनी शक्ति के आधार पर समाज परिवर्तन में अपना सहयोग करें. सुरेंद्र अत्री जी ने कहा कि विद्या भारती के पांच प्राण तंत्र हैं और इसमें पूर्व छात्र अहम प्राण हैं. शिक्षा ग्रहण करने के बाद छात्र समाज में जाता है, वहीं से उसकी एक पहचान बनती है. उन्होंने कहा कि समाज में परिवर्तन शिक्षा से ही आता है. इसलिए विद्या भारती विद्यार्थियों को संस्कार युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रयासरत है.
बनवीर सिंह जी ने कहा कि समाज में दो ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने से छोटों को प्रगति करते देख खुश होते हैं, वह हैं – पिता व गुरु. हम अपने बच्चों को चाहे कितनी भी शिक्षा दें, लेकिन अगर उन्हें शिक्षा के साथ-साथ संस्कार नहीं दिए तो वह शिक्षा बेकार हो जाएगी. दीनानाथ बत्तरा जी ने पूर्व छात्रों को भगवान श्रीराम के वनवास के एक संस्मरण को याद दिलाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की शोभा उसके चरणों से नहीं, उसके आचरण से होती है. हेमचंद्र जी ने कहा कि केवल बॉर्डर पर जाकर लड़ाई लड़ना ही देशभक्ति नहीं है. अपने कर्त्तव्य का ईमानदारी से पालन करना भी एक तरह से देशभक्ति है. उन्होंने पूर्व छात्रों को एक संगठन का गठन कर देश के लिए कार्य करने की अपील की. भारत को एक बार फिर से विश्व गुरु का दर्जा दिलवाया जा सके.