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दस वर्ष में 50 हजार लोग बोलने लगे संस्कृत

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जबलपुर. संस्कृत भारती संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार ज्ञानवर्धन के लिये करती है. आज देश में स्थिति यह है कि जो शिक्षक संस्कृत पढ़ा रहे है, उन्हें ही यह भाषा नहीं आती. इसी कमी को दूर करने का काम संस्कृत भारती कर रही है. यह कहना है संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रचार-प्रसार प्रमुख श्री देवपुजारी का. वे सरस्वती शिक्षा परिषद के भवन में पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा का प्रयोग लिखने-पढ़ने में तो होता है, किन्तु बोलचाल में नहीं होता. यही कारण है कि इस भाषा के साथ अन्याय हो रहा है और यह सिर्फ ग्रन्थों की भाषा बनकर रह गई है. श्री देवपुजारी ने बताया कि पिछले 10 वर्ष में 50 हजार लोग सेंस्कृत बोलने लगे हैं. संस्कृत भारती का कार्य नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल और मेघालय छोड़कर पूरे देश में चल रहा है. इस संस्था का कार्य चार सौ जिलों में दो हजार स्थानों पर चल रहा है.

संस्कृत भारती की जबलपुर में चल रही अखिल भारतीय बैठक में भाग लेने आये श्री देवपुजारी ने बताया कि बैठक में 39 जिलों के लगभग 215 प्रतिनिधि सम्मिलित हो रहे हैं. इस वर्ष संस्कृत भाषा की तरफ रुझान बढ़ाये जाने के लिये जो अभियान चलाया जा रहा है, उसमें भिन्न-भिन्न भाषाओं के लगभग 50 हजार शिक्षार्थियों के जुड़ने की संभावना है. संस्कृत भारती संस्था की योजना बताते हुये आपने कहा कि इस शैक्षणिक वर्ष में पूरे भारत में जनपद सम्मेलनों का आयोजन कर संस्कृत सिखाई जा रही है.

प्रचार-प्रसार प्रमुख ने बताया कि संस्कृत विषय लेकर पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ाने हेतु संस्कृत भारती दूसरी कक्षा से लेकर पाँचवीं कक्षा तक चार परिक्षायें आयोजित करती है. विद्यार्थियों को पढ़ाने की व्यवस्था भी करती है. इससे रूचि जागृत होकर छात्र छठवीं से संस्कृत विषय का चयन करता है. वे आगे की पढ़ाई में भी संस्कृत विषय को अपनाये रखें, इसके लिये संस्कृत भारती प्रयासरत है. इस भाषा को सिखाने के लिये संस्था पत्राचार पाठ्यक्रम भी चलाती है.

 

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