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धर्म के आचरण से व्यक्तित्व का निर्माण होता है – इंद्रेश कुमार जी

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वाराणसी (विसंकें). काशी हिन्दू विश्वविद्यालय संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के सभागार में धर्म संस्कृति संगम काशी एवं काशी विद्वत परिषद के संयुक्त तत्वाधान में ‘‘सर्वधर्म समभाव एवं विश्व शांति’’ विषयक संगोष्ठी सम्पन्न हुई. साथ ही 06 मेधावी छात्र-छात्राओं को अतिथियों द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की गई. कार्यक्रम में विद्वतजनों को सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है. वसुधैव कुटुम्बकम् का सन्देश भारत ने ही दिया. भारत दुनिया में शांति का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम है. इस रचनात्मक सृष्टि में सभी धर्म एक हैं. यहां रामकृष्ण, अल्लाह, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, आदि पंथ अनेक हैं, लेकिन धर्म एक है, भगवान एक है. सभी धर्मों का उपदेश लगभग एक समान होता है. जैसे चोरी नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, हिंसा नहीं करना आदि. धर्म के अनुसार आचरण संस्कृति है. धर्म के अनुसार आचरण संस्कृति है. सभी की अपनी-अपनी पूजा पद्धति है. पूजा पद्धति कट्टर नहीं होनी चाहिये. धर्म की ऐसी पद्धति हो, जिससे शांति मिले. धर्म के आचारण से व्यक्तित्व का निर्माण होता है, हम नेक मानव बन सकते हैं.

मुख्य अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी जी ने कहा कि धर्म का मूल सत्य है. धर्म के मूल को स्थापित करना है. विशिष्ट अतिथि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. यदुनाथ दूबे जी ने कहा कि अनेकत्व में जब एकत्व आता है, वही समभाव है. भारतीय संस्कार को देखना और संवारना होगा, भारत ही सर्वस्व है. जिसमें अनेकत्व में एकत्व है. अतः मानवता की रक्षा के लिए सभी धर्मों के लोग आपस में मिलकर कार्य करें. विशिष्ट अतिथि आचार्य भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी जी ने कहा कि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महामहोपाध्याय आचार्य भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी जी ने कहा कि संस्कृत भाषा का विस्तार नहीं हो रहा है, इसलिए अपनी संस्कृति का विस्तार नहीं हो पा रहा है. सांस्कृतिक आक्रमण को हमें संस्कृति से ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए. हमें यहां अपने गुणों को ही नहीं दोषों को भी देखना चाहिए. विशिष्ट अतिथि प्रो. अशोक कुमार जैन जी ने कहा कि धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल कार्य है, जो सीधा कार्य करे धर्म है, जो काटने का कार्य करे अधर्म है. जैन संस्कृति में समभाव है, जो विश्व शांति के हेतु योगदान दे सकती है. इस अवसर पर हाजी मुख्तार अहमद महतो (अध्यक्ष, सदर बावनी पंचायत, मदनपुरा-वारणसी) ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

धर्म संस्कृति संगम काशी का परिचय देते हुए प्रो. जय प्रकाश लाल जी ने धर्म संस्कृति संगम का परिचय देते हुये कहा कि 2006 में धर्म संस्कृति संगम की नींव पड़ी. सन् 2008 में अंतरराष्ट्रीय संस्कृति संगम काशी सम्मेलन का आयोजन हुआ. जिसमें विभिन्न देशों के अनेक विचारधाराओं के लोग उपस्थित रहे. स्वागत भाषण सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय पूर्व छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष डॉ. रमेश कुमार द्विवेदी ने दिया. विषय स्थापना प्रो. चन्द्रमा पाण्डेय ने किया.

वैदिक मंगलाचरण पाणिनी कन्या महाविद्यालय के छात्राओ ने किया. पौराणिक मंगलाचरण श्रीअन्नदा कन्या गुरूकुल की छात्राओं ने किया. पालि मंगलाचरण बौद्ध भिक्षुओं ने किया. स्वागत गीत श्रीअन्नदा कन्या गुरूकुल की छात्राओं ने गाया. समारोह का संचालन प्रो. रमेश कुमार द्विवेदी तथा अतिथियों को सम्मान धर्म संस्कृति संगम की मंत्री माधवी तिवारी ने किया. समारोह का शुभारम्भ वैदिक एवं पालि मंगलाचरण से हुआ. इस अवसर पर काशी विद्वत परिषद् की ओर से इंद्रेश जी को संस्कृति पुरोधा सम्मान और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी जी को विद्वत मणि सम्मान से सम्मानित किया गया. कार्यक्रम में 06 छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की गई. इस अवसर पर सैकड़ों गणमान्य जन उपस्थित थे. कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम गीत एवं राष्ट्रगान से हुआ.

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