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भारतीय दर्शन का वाहक संविधान है – रामनाथ कोविंद जी

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पटना. राज्यपाल रामनवाथ कोविंद जी ने कहा कि भारतीय वाड्मय का तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ – महाभारत, रामायण और संविधान हैं और तीनों के रचनाकार दलित थे. संविधान वंचितों को संरक्षण के साथ समान अवसर देता है, लेकिन कहीं भी दलित शब्द का प्रयोग संविधान में नहीं किया गया है. वह दलित आख्यान और भारतीय दर्शन विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार के समापन समारोह में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि संविधान भारतीय दर्शन का वाहक है और भारतीय संस्कृति कभी नकारात्मकता को प्रोत्साहित नहीं करती. इसलिए संविधान की सीमा में रहकर खुले मन से चर्चा करने की आवश्यकता है. इंडिया फाउंडेशन के निदेशक और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने आरक्षण की वकालत करते हुए कहा कि यह अतीत की गलती को सुधारने के लिए किया गया है. सोच बदलने की जरूरत है. आज सामाजिक और आर्थिक सुधार के आधार पर समानता नहीं लाई जा सकती. क्योंकि जाति आज पहचान बन गई है. इसको समाप्त नहीं रूपांतरित किया जा सकता है. आज मांग सम्मान की है. सहभागिता की है. सरकार के भरोसे इसको छोड़ने के स्थान पर समाज को सामने आना होगा. राजनीतिक दलों के स्थान पर सामाजिक संगठनों को आंदोलन की कमान संभालनी होगी.

बाबा साहेब ने कहा था – लोकतंत्र के माध्यम से राजनीतिक समानता ला रहे हैं, लेकिन सामाजिक समानता के बिना राजनीतिक समानता का कोई लाभ नहीं होगा. राम माधव ने कहा कि गांधीजी ने मृत्यु से ठीक तीन दिन पूर्व जिन बातों को लिखा था, उसको स्मरण कर उसपर अमल करने की जरूरत है. गांधीजी ने कहा था – देश विभाजित हो गया, कांग्रेस के माध्यम से हमें राजनीतिक स्वतंत्रता मिली है, लेकिन शहरों से दूर लाख गांवों में रहने वालों को आर्थिक सामाजिक और नैतिक स्वतंत्रता की जरूरत है. इसके लिए आंदोलन चलाना होगा. जो राजनीतिक न होकर विशुद्ध सामाजिक होगा. जब तक दलित अपनी पहचान छिपाता रहेगा, तब तक समानता की बात बेमानी है. डेमोक्रेसी को धर्मोक्रेसी बनाना होगा. जहां सबको सम्मान मिले. सबकी सहभागिता हो. सब समद्ध रहे, सत्ता में सबकी भागीदारी हो.

जेएनयू के प्रो विवेक कुमार ने कहा कि भारतीय दर्शन में सदैव दो परंपरा रही. आस्तिक और नास्तिक. जिसे वैदिक और अवैदिक भी कहा जाता रहा है. समाज की इसी विविधता को स्वीकरना होगा. भारतीय सामाजिक संरचना राष्ट्र निर्माण के लिए बने. भाईचारा संरचना के आधार पर ही यह संभव है. भाईचारा के बिना राष्ट्र निर्माण संभव नहीं है. इसके लिए सबको प्रतिनिधित्व देना होगा. सभ्य समाज में सभी का प्रतिनिधित्व होना जरूरी है. दलितों को 1000 साल से प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तो उसके पौरूष का क्या किसी को चिंता है? समूहों की चेतना सृजन परिस्थितियों के आधार पर हुआ है. बाबा साहेब सदैव भाई चारे पर जोर देते थे. और बंधुत्व के लिए भाई चारा की नितांत आवश्यकता है.

कार्यक्रम के संयोजक सचिव डॉ. संजय पासवान ने तीन दिवसीय सेमीनार के सात अलग-अलग सत्रों में निकले विषयों को बताते कहा सेमीनार में श्रम दर्शन, संवाद दर्शन, विविधताओं का दर्शन, दायित्व का दर्शन, वितरण दर्शन, चरित्र दर्शन के साथ सांस्कृतिक दर्शन के विचार का प्रतिपादन हुआ. 70 पेपर की प्रस्तुति हुई, जिसमें 55 पेपर दलित समुदाय के शोधार्थियों द्वारा प्रस्तुत किए गए.

कार्यक्रम में संघ अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन, प्रो. रामाशंकर आर्य (पटना विवि), प्रो. समीर शर्मा, चिति के रामाशीष सिंह, कृष्णकांत ओझा, प्रांत प्रारक प्रमुख राजेश पांडेय, पूर्व मंत्री सुखदा पांडेय, संघ के बिहार-झारखंड के कार्यवाह डॉ. मोहन सिंह, महादलित आयोग के अध्यक्ष हुलास मांझी, हिन्दू जागरण मंच के रामाशंकर सिन्हा, धर्म जागरण के रोहित चन्द्र प्रो. पूनम सिंह (पटना विवि), डॉ. रवीन्द्र कुमार, पद्मश्री उषा किरण खान सहित अलग-अलग विश्वविद्यालयों के व्याख्याता शोधार्थी एवं प्रबुद्ध नागरिकों की उपस्थिति रही.

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