चित्रकूट. राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख ने 1968 में पं. दीनदयाल उपाध्याय के निर्वाण के उपरांत दीनदयाल स्मारक समिति बनाकर उनके अधूरे कार्यो को पूर्ण करने के लिये दिल्ली में नींव रखी थी. श्रद्धेय नानाजी ने 42 वर्ष में दीनदयाल स्मारक समिति से लेकर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना तक के सफर में पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन के विचारों को व्यावहारिक रूप से धरातल पर उतारने का काम सामूहिक पुरूषार्थ से करके दिखा दिया.
25 सितम्बर को उनके जयंती वर्ष पर दीनदयाल परिसर, उद्यमिता विद्यापीठ चित्रकूट के दीनदयाल पार्क में एक वृहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक मदन दास देवी जी, कामतानाथ प्रमुखद्वार के मदनगोपाल दास जी महाराज, जगतगुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश चन्द्र दुबे जी विशेष रूप से मंचासीन रहे. प्रातःकाल से ही संस्थान के विविध प्रकल्प गुरुकुल संकुल, उद्यमिता विद्यापीठ, सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय, रामदर्शन एवं आरोग्यधाम तथा खादी ग्रामोद्योग आयोग प्रशिक्षण केन्द्र के प्रशिक्षणार्थी एवं माता-पिता सहित कार्यकर्ताओं द्वारा पं. दीनदयाल पार्क उद्यमिता परिसर में स्थापित पं. दीनदयाल जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन किया गया. पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन से जुड़े प्रेरणादायी प्रसंगों का मंचन भी किया गया.
मुख्य वक्ता मदन दास देवी जी ने कहा कि मानव जीवन का सम्पूर्ण प्रकृति के साथ एकात्म संबंध स्थापित करना ही एकात्म मानव दर्शन कहलाता है. मानव का सर्वांगीण विचार उसके शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संकलित विचार है. हमारा जीवन दर्शन परस्पर पूरक एवं परस्परावलम्बी हैं. अतः विकास के लिये सहकार और सहयोग का आधार लेना होगा. इसी चिंतन का नाम है एकात्म मानव दर्शन.
कामतानाथ प्रमुखद्वार के मदनगोपाल दास जी महाराज ने कहा कि पं. दीनदयाल जी का विचार दर्शन और जीवन हम सबके लिये प्रेरणादायी है. दीनदयाल जी के विचार दर्शन पर कार्य करने वाले प्रत्यक्ष युगदृष्टा कोई थे तो वे श्रद्धेय नानाजी देशमुख थे. पं. दीनदयाल जी के विचारों से संकल्पित नानाजी ने जो कार्य खड़ा किया है, वह हमारे सामने है, समर्पित भाव से समाज के प्रभावी आन्दोलन के रूप में अपने जीवन को नानाजी ने समर्पित किया है.
जगतगुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश चन्द्र दुबे जी ने कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान के सभी प्रकल्पों का अपना-अपना उद्देश्य होगा, लेकिन अंत में सारे उद्देश्य एक जगह आकर मिलते हैं. गुरुकुल संकुल के प्रभारी संतोष मिश्र जी ने कहा कि पं. दीनदयाल जी का बहुत बड़ा संकल्प था, जितने समय वे जिये उतने समय तक उन्होंने समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के लिये काम किया. आज हम उस पूर्णता की ओर अग्रसर हैं, पहुंच रहे हैं.