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विश्व में भारत पहचान उसके विशिष्ट गुणों से है – डॉ. मोहन भागवत जी

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मुंबई. 06 अक्तूबर को सारस्वत बँक मुंबई ने अपने पूर्वाध्यक्ष स्व. एकनाथ ठाकुर की स्मृति में व्याख्यान माला का आयोजन स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, दादर के सभागृह में किया. इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने ‘एकात्म मानव दर्शन’ विषय पर व्याख्यान दिया. मराठी भाषा के ज्येष्ठ साहित्यकार सर्वश्री माधु मंगेश कर्णिक मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि एकात्म दृष्टिकोण का अर्थ है, मनुष्य, समाज और सृष्टि में समन्वय, प्रकृति की विविधता को स्वीकार करके तालमेल के साथ आगे बढ़ना. सुख केवल शरीर के सुख का नाम नहीं है, बल्कि शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के संयुक्त सुख में ही वास्तविक सुखानुभूति मानव करता है. जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन में सबसे पहले विश्व का, उसके बाद राष्ट्र का, फिर समाज का और सबसे अंत में स्वयं के सुख का विचार होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अपना देश स्वतंत्र होने पर उसकी भावी राह कैसी हो, यह तय करने वाला विजन डॉक्युमेंट हम तैयार नहीं कर सके. बांग्लादेश या चीन जैसे हमारे पड़ोसी देशों ने भी अपने देश के भविष्य का विचार सही समय पर किया, लेकिन ऐसा विचार करने के लिए हमें सात दशकों तक इंतजार करना पडा.

सरसंघचालक जी ने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा स्थापित नीती आयोग ने पहली बार श्रृंखलाबद्ध रूप से विविध पहलुओं का विचार कर डॉक्युमेंट बनाया है. लेकिन देश स्वतंत्र होने पर भारतीय विचारों की नींव पर राजनीतिक चिंतन की जरूरत को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पूरा किया. उन्होंने भारत के गौरवशाली भूतकाल और वर्तमान के बीच सामंजस्य बिठाया. पश्चिमी जगत ने पिछले दो हजार वर्षों में जो विविध प्रयोग किए और भारतीय ऋषियों ने हजारों साल की साधना से जो तत्व अनुभूत किये, उनके गुणों को आत्मसात करने का नाम है एकात्म मानववाद. यह प्रकृति और मानव का सह-अस्तित्व है, इसमें ना तो प्रकृति का शोषण है, ना ही दोहन, प्रकृति को साथ लेकर विकास को साध्य करना ही एकात्म भाव कहलाता है.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत की पहचान उसके विशिष्ट गुणों से है. आज के अफगानिस्तान से लेकर ब्रह्मदेश तक कहीं भी जाने पर आपको इन विशिष्ट गुणों का अनुभव होता है. आज भी ये गुण उतने ही सुसंगत हैं. अत: शिक्षा के माध्यम से ये संस्कार विद्यार्थियों को प्रदान किये जाने चाहिए. देश को ऐसी शिक्षा नीति की आवश्यकता है, जिससे स्वावलंबी, स्वाभिमानी और क्षमता युक्त युवा शक्ति का निर्माण हो, साथ ही हर हाथ को काम देने वाली, कुशलता को अवसर देने वाली और साथ ही स्वावलंबन और अहिंसा को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक नीति भी स्वीकार करने की आवश्यकता पर सरसंघचालक जी ने बल दिया.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में बैंक के वर्तमान अध्यक्ष गौतम ठाकुर ने स्व. एकनाथ ठाकुर की आत्मीय स्मृतियों को स्मरण करते हुए कहा कि स्व. एकनाथ ठाकुर विचार जगत में विचरण करने वाले व्यक्ति थे. अपने अंतिम समय में अस्वस्थ रहते उनके कई ऑपरेशन्स हुए. अंतिम ऑपरेशन के बाद उन्होंने मुझसे सारस्वत बैंक के वार्षिक कार्यक्रम में सरसंघचालक जी को प्रमुख वक्ता के रूप में बुलाने की इच्छा जताई थी, जो आज पूरी हो रही है. वरिष्ठ साहित्यकार तथा बैंक के संचालक मधु मंगेश कर्णिक ने ठाकुर की कर्तव्यपरायणता का उल्लेख किया. निश्छल व्यवहार और सामाजिक वचनबद्धता उन्हें बैंकिंग व्यवसाय से भी अधिक महत्वपूर्ण लगती थी. हमेशा कहा करते थे कि सहकार शब्द में ही सहत्व, एकत्व और देवत्व भी अंतर्भूत होता है, और उसी के अनुसार उनका बर्ताव भी होता था.

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