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‘वैश्विक चुनौतियाँ और शिक्षा’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

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जयपुर (विसंकें). विद्या भारती द्वारा ‘वैश्विक चुनौतियाँ और शिक्षा’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 10, 11 फरवरी को जयपुर के कृषि अनुसंधान केन्द्र में किया गया. कार्यक्रम का उद्द्याटन शनिवार 10 फरवरी को हुआ, जिसमें बीकानेर से पूज्य संत संवित् सोमगिरि जी महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारीणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी, कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री अवनीश भटनागर जी, अध्यक्ष राजस्थान सरकार के शिक्षा राज्यमन्त्री मंत्री वासुदेव देवनानी जी थे.

अवनीश जी ने कहा कि विश्व की कोई भी चुनौती क्यों न हो, उसका समाधान शिक्षा से ही सम्भव है. चुनौतियों का समाधान न हो पाना चिंता का विषय है. किन्तु, हम इसकी अतल गहराइयों में जाकर समाधान ढूँढेंगे और राष्ट्र की संस्कृति से संतुलन बनाकर विकसित राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं. एत्दर्थ शिक्षा के तीन उद्देश्यों की ओर ध्यान देना होगा.

इन्द्रेश कुमार जी ने कहा कि जिन व्यक्तियों में सद्गुण व सद्विचार होते हैं, वे मरने के बाद भी जीवित रहते हैं. आयु को जीने वाला कभी भी महान कार्य करने वाला नहीं बन सकता. अतः हमें आयु से बड़ी चीज के लिए जीना है. शंकराचार्य, विवेकानन्द, दयानन्द, चन्द्रशेखर, भगतसिंह आदि आयु से बड़ी चीज के लिए जीये. जिसके कारण विश्व उन्हें आज भी याद करता है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति आचरण से सन्त होता है और ज्ञान से विद्वान् होता है. शिक्षा वही है, जो माँ, मातृभूमि के लिए श्रद्धा उत्पन्न करे. हमें जीवन में तप को धारण करना पड़ेगा, क्योंकि उसके बिना ज्ञान उत्पन्न नहीं होता.

संवित् सोमगिरि जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति कालजयी है. हमारे जीवन रूपी ताले की चाबी आज कहीं खो गई है. जिस प्रकार हथोड़े के प्रहार से ताला नहीं खुल पाता, किन्तु; उसकी चाबी से सहज ही खुल जाता है. उसी प्रकार हमारे जीवन की शिक्षा रूपी चाबी को हमें ग्रहण करना ही पड़ेगा. जिससे इस जीवन की चुनौतियों का हम सहज ही सामना कर सकें.

वासुदेव देवनानी जी ने कहा कि शिक्षा के समक्ष अभी दो बड़ी चुनौतियाँ हैं, संकीर्ण सोच और असहिष्णुता. इस कारण लोकतन्त्र की अवधारणा में गिरावट आ रही है. इनका समाधान शिक्षा से ही संभव है. भारत ऐसा देश है, जिसके पास इन सबका समाधान है. लेकिन हमें भारतीयता का भाव भी जगाना होगा. इससे अधिकांश चुनौतियों का स्वतः समाधान हो जाएगा.

राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन 11 फरवरी को हुआ. जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र संघचालक डॉ. भगवती प्रकाश जी ने कहा कि शिक्षा किसी भी देश की संस्कृति, आर्थिक परिवेश और वहाँ के दर्शन से प्रभावित होती है. पं. दीनदयाल के अनुसार शिक्षा समाज का दायित्व है. हमें उनके एकात्म मानववाद दर्शन को शिक्षा से जोड़ना होगा. उन्होंने शिक्षा में तीन आयामों को अपनाने की बात कही. गुणवत्ता, नैतिकता और शोधपरकता. ये तीन शिक्षा के आयाम हैं – इनमें संतुलन होना चाहिए. शिक्षा के सभी क्षेत्रों तकनीकी, प्रौद्योगिकी, कृषि आदि में इनका समावेश होना चाहिए.

संगोष्ठी को विभिन्न सत्रों में अनेक विषयों पर अन्य वक्ताओं ने भी सम्बोधित किया. इनमें डॉ. विमल प्रसाद अग्रवाल, डॉ. परमेन्द्र दसोरा, नन्दसिंह नरूका और वासुदेव प्रजापति, प्रो. जे.पी. सिंघल, अतुल भाई कोठारी, डॉ. राघव प्रकाश, डॉ. मंगल मिश्र, प्रो. मोहनलाल छींपा, डॉ. दामोदर शर्मा शामिल थे.

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