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24 मई / जन्मदिवस – समर्पण और निष्ठा के प्रतिरूप के. जनाकृष्णमूर्ति

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा एक ऐसी अद्भुत तथा अनुपम कार्यशाला है, जिससे प्राप्त संस्कारों के कारण व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में रहे, वहीं अपने कार्य और व्यवहार की सुगन्ध छोड़ जाता है. 24 मई, 1928 को मदुरै (तमिलनाडु) के एक अधिवक्ता परिवार में जन्मे के. जनाकृष्णमूर्ति जी ऐसे ही एक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने संघ के साधारण स्वयंसेवक से आगे बढ़ते हुए भारतीय जनता पार्टी जैसे विशाल राजनीतिक संगठन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया.

प्राथमिक शिक्षा मदुरै में पूरी कर वे चेन्नई आ गये और वहां के विधि महाविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वे मदुरै में ही वकालत करने लगे. वर्ष 1940 में मदुरै में संघ का कार्य प्रारम्भ हुआ, तो वे भी शाखा जाने लगे. वर्ष 1945 में उन्होंने तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर मदुरै में ही नगर प्रचारक का दायित्बव मिला. वर्ष 1951 के बाद वे फिर वकालत करने लगे. इस दौरान उन पर प्रान्त बौद्धिक प्रमुख का दायित्व भी रहा.

जनसंघ की स्थापना के बाद उत्तर भारत में तो वह फैल गया, पर दक्षिण भारत अछूता था. तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी की इच्छा पर वे 1965 में जनसंघ से जुड़े और उन्हें तमिलनाडु का राज्य सचिव बनाया गया. दीनदयाल जी के देहान्त के बाद अटल जी के आग्रह पर 1968 में उन्होंने वकालत छोड़ दी और ‘भारतीय जनसंघ’ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गये. अब वे तमिलनाडु के संगठन महासचिव बनाये गये. वर्ष 1975 में आपातकाल लगने पर उन्होंने तमिलनाडु में इस आन्दोलन की कमान संभाली.

1977 में जनता पार्टी का गठन होने के बाद उन्हें इसकी तमिलनाडु इकाई का महासचिव तथा राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया. 1980 में  भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद वे इसके संस्थापक महासचिव तथा 1985 में उपाध्यक्ष बने. इस दौरान दक्षिण के चारों राज्यों तमिलनाडु, आन्ध्र, केरल और कर्नाटक में  भारतीय जनता पार्टी के आधार को विस्तृत करने में उनकी बड़ी भूमिका रही. वर्ष 1993 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी के अनुरोध पर वे दिल्ली आ गये और यहां उन्होंने पार्टी के बौद्धिक प्रकोष्ठ तथा आर्थिक, सुरक्षा, विदेश मामलों आदि का काम संभाला.

1995 में श्री जनाकृष्णमूर्ति भारतीय जनता पार्टी मुख्यालय के प्रभारी और दल के प्रवक्ता बने. स्वभाव से हँसमुख, वाणी से विनम्र और व्यक्तित्व से अत्यन्त सरल श्री कृष्णमूर्ति कार्यकर्ताओं और दल के सहयोगियों में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गये. उनके गहन अध्ययन और अनुभव के कारण छोटे-बड़े सभी नेता प्रायः उनसे विभिन्न विषयों पर परामर्श करते रहते थे. उनकी योग्यता देखते हुए सभी नेताओं ने 14 मार्च, 2001 को एकमत से उन्हें भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना. श्री कामराज के बाद तमिलनाडु से किसी राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष बनने वाले वे दूसरे नेता थे. इस पद पर उन्होंने सवा साल काम किया. फिर उन्हें राज्यसभा में भेजा गया. सदन में विद्वत्तापूर्ण भाषण के कारण विरोधी सांसद भी उनका सम्मान करते थे. श्री वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वे एक वर्ष तक विधि विभाग के कैबिनेट मंत्री भी रहे.

श्री जना कृष्णमूर्ति समर्पण की साक्षात प्रतिमूर्ति थे. पहले संघ और फिर भारतीय जनता पार्टी में जो काम उन्हें सौंपा गया, उन्होंने उसे पूर्ण निष्ठा से निभाया. 25 सितम्बर, 2007 को चेन्नई के एक चिकित्सालय में उनका देहान्त हुआ. उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ठीक ही कहा कि श्री जना कृष्णमूर्ति के निधन से एक समर्पित, संस्कारित, कर्मठ, कुशल प्रशासक और संवेदनशील व्यक्तित्व हमारे बीच से उठ गया.

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