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समरस समाज के निर्माण की कुंजी मातृशक्ति के पास होती है – मधुभाई कुलकर्णी

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य मधु भाई कुलकर्णी जी ने कहा कि जन्म से कोई भी मनुष्य उच्च अथवा नीच नहीं होता. हम सब अपनी मातृभूमि भारत माता की संतान हैं. चाहे वो राम हो, कृष्ण हो, रहिमन हो या कबीर. क्योंकि सभी के अन्दर आत्मा है. आज आवश्यकता है अपने अन्दर अपनत्व का भाव जगाने की. समाज को एक करने वाला तत्व अपनत्व ही है और भारत का तत्व ज्ञान जो सबको एक करता है वो अपनत्व है. जब समाज एक होता है, तभी समरस समाज का निर्माण होता है. मधुभाई दिल्ली के रामकृष्ण मिशन में सामाजिक समरसता मंच, दिल्ली द्वारा आयोजित महिला समरसता सम्मेलन- 2017 में संबोधित कर रहे थे.

सम्मलेन में उपस्थित मातृशक्ति को संबोधित करते हुए मधु भाई ने कहा कि समाज में समरसता लाने के लिए सबसे बड़ा गुण वत्सलता होती है. जो समाज में सिर्फ मातृशक्ति के पास होती है. आज के समाज में एक-दूसरे के बीच वत्सलता की अहम् जरूरत है, क्योंकि वत्सलता ही वो कुंजी है जो समाज को हरेक प्रकार के भेदों से अलग करके सभी को एक कर सकती है. जब समाज एक होता है, तभी समाज का सर्वांगीण विकास होता है और समाज के सर्वांगीण विकास से ही देश का विकास होता है. विकास से मतलब सिर्फ आर्थिक उन्नति, शिक्षा, मकान से ही नहीं है. इसके साथ-साथ समाज में एकता, आस्था, अखंडता, अपनत्व, आदर्श की स्थापना भी है. तभी जाकर समाज से गरीबी, छुआछूत, अंधकार, वैमनस्यता दूर होती है और वह समाज समरस समाज बनता है. समाज में अगर समरसता का भाव लाना है तो सबसे पहले घर में आदर्श स्थापित करना होगा. जिसे मातृशक्ति ही कर सकती है. समरस समाज के निर्माण की कुंजी मातृशक्ति के पास होती है.

उन्होंने कहा कि अगर आजादी के 70 साल के बाद भी भारतीय समाज में समरसता नहीं है तो इसके लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है. इसके लिए हम नागरिक भी सरकार के बराबर ही जिम्मेदार हैं. जरूरत है, परिवार और समाज में अपनत्व और बंधुत्व के भाव को जगाने की. जिस दिन अपने अन्दर, परिवार और समाज के अंदर अपनत्व और बंधुत्व का भाव जगा दिया, उस दिन हमारा भारतीय समाज समरस समाज बनकर पूरी दुनिया के सामने आदर्श स्थापित करता नजर आएगा.

केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की उच्च अधिकारी मुख्य अतिथि लता गौतम जी ने कहा कि सिर्फ नारी को पूजने से समाज में समरसता नहीं आती है. समाज को समरस बनाने के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देना पड़ता है, क्योंकि समाज की नींव नारी ही परिवार में रखती है और हर नींव रखने के पीछे एक आदर्श पुरूष का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान होता है. चाहे पिता, भाई, पति के या बेटे के रूप में क्यों न हो.

उन्होंने महिलाओं से आह्वान करते हुए कहा कि समाज को समरस बनाने के लिए हम सभी महिलाओं को एक मुठ्ठी के रूप में संगठित होकर कार्य करना होगा. समाज में हम महिलाएं हाथ की एक-एक ऊंगली के समान हैं. जिसे संगठित होने के साथ व्यवस्थित भी होना होगा. ऐसा इसलिए कि स्त्री से परिवार बनता है, परिवार से समाज और समाज से देश. जैसा परिवार बनेगा, वैसे समाज का निर्माण होगा. अतः समाज में समरसता स्थापित करने के लिए हम महिलाओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी.

दिल्ली प्रांत के सह संघचालक आलोक कुमार जी ने कहा कि समाज में विषमता आज भी विद्यमान है. जिसे खत्म करने के लिए शिक्षा को रोजगार परक बनाना होगा, तो दूसरी ओर समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा देना होगा. मैं मानता हूं कि जबतक समाज में विषमता है, तब तक समाज के उन सभी वंचित वर्गों के लिए आरक्षण होना चाहिए, जो आज भी मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके हैं. सिर्फ आरक्षण से ही समाज में समरसता नहीं आएगी. समरसता के लिए समाज को संस्कार, विचार, शिक्षा, कार्य कुशलता, रोजगार पर भी मेहनत करनी होगी. कार्यक्रम में सामाजिक समरस्ता मंच के अखिल भारतीय सह संयोजक श्याम प्रसाद जी, सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

 

 

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