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हिन्दू समाज में ‘‘समरसता’’ संघ की प्राथमिकता – विमल जी

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DSC_0511इंदौर (विसंकें). परम्परानुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा शाखाओं पर मुख्य रूप से मनाए जाने वाले छह उत्सवों में से एक ‘‘मकर संक्रांति’’ के निमित्त ‘‘प्रकट उत्सव’’ आयोजित किए गए. इन्दौर महानगर के बद्रीनाथधाम जिले (उत्तरी इन्दौर) के – वीर गोगादेव, दीनदयाल, विश्वकर्मा, माधव, अम्बेडकर व सावरकर 6 नगरों में प्रातः एवं सायंकाल ‘‘प्रकट उत्सव’’ आयोजित किए गए. इन्दौर विभाग के शेष नगरों में आगामी रविवार को कार्यक्रम होंगे. संघ में मुख्य रूप से सार्वजनिक एवं खुले स्थानों पर ही शाखाएं लगाने की परम्परा है तथा समाज के सभी आयु/जाति वर्ग के लिए खुला आमंत्रण होता है. कार्यक्रमों में दैनिक शाखाओं पर होने वाली गतिविधियों सूर्यनमस्कार, योग आसन, दण्ड संचालन, नियुद्ध, खेल, गीत, प्रार्थना का प्रदर्शन किया गया.

DSC_0488बद्रीनाथधाम जिले के माधव नगर में इन्दौर विभाग प्रचारक विमल जी का बौद्धिक हुआ. उत्सव प्रधान भारत का उल्लेख करते हुए कहा कि मकर संक्राति का विशेष महत्व है, प्रकृति में इस दिन परिवर्तन प्रारंभ होता है. इस दिन से दिन तिल-तिल कर बढ़ना प्रारंभ होता है. संक्रांति का अर्थ है, सम्यक दिशा में की गई क्रांति. समाज जीवन में परिवर्तन लाने के लिए अनेक दिशा में क्रांतियां हुईं. भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम, शिवाजी महाराज, चाणक्य आदि द्वारा की गई क्रांतियां, सम्यक क्रांतियां हैं. इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भी समाज जीवन में परिवर्तन लाने हेतु विभिन्न कार्य अपने स्थापना वर्ष से किए जा रहे हैं. हमारा विश्वास स्थाई परिवर्तन में है. क्रांतियों के चार चरण – विचार, योजना, संगठन एवं लक्ष्य होते हैं. संघ ‘‘हिन्दू राष्ट्र’’ के शास्वत विचार को लेकर चल रहा है. हमारा लक्ष्य राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाना है.

संघ का लक्ष्य प्रारंभ से ही तिल-तिल में बंटे हिन्दू समाज को एक करना रहा है. विभिन्न जातियों में बंटे समाज में समरसता स्थापित कर संगठित करने का कार्य संघ परिवार द्वारा किया जा रहा है. 90 वर्ष में संघ ने हिन्दू समाज में आत्मविश्वास पैदा किया है. सत्ता परिवर्तन लक्ष्य न रखकर संघ ने समाज-संगठन एवं समाज-परिवर्तन को प्राथमिक स्थान दिया है. समाज परिवर्तन का कार्य लोगों को अपने घर परिवार से ही आरंभ करना होगा. विभिन्न जातियों में बंटे समाज में सामाजिक समरसता का भाव पैदा करना होगा. राजनीति अपने स्वार्थ हेतु समाज को बांटने का कार्य करती है. संयुक्त परिवार की परम्परा के दर्शन संपूर्ण विश्व में केवल भारत में ही होते हैं.

आधुनिकरण के कारण परिवारों में भी विखण्डन प्रारंभ हो गया है. संस्कारों का ह्रास हो रहा है, समस्याओं का समाधान परिवार से बाहर खोजा जा रहा है. पहले संयुक्त परिवार में ही समाधान हो जाता था. समाज में एकल परिवार की बढ़ती पद्धति ने समस्याओं को बढ़ावा दिया है. इसी कारण संघ द्वारा ‘‘कुटुम्ब प्रबोधन’’ पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. समाज में हिन्दू विचार के विरोध में बढ़ती घटनाएं तथा विगत जनगणना के आंकड़े हिन्दू समाज के लिए चिंता का विषय हैं. हिन्दू समाज की घटती जनसंख्या दर राष्ट्र में असंतुलन पैदा करेगी, आने वाले 30 वर्षों में यहां का मूल समाज अल्पसंख्यक हो सकता है, यह सभी राष्ट्रवादियों के लिए गम्भीर चिंता का विषय होना चाहिए.

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