करंट टॉपिक्स

10 जनवरी / पुण्यतिथि – साहसी न्यायाधीश डॉ. राधाविनोद पाल जी

Spread the love

1111नई दिल्ली. अनेक भारतीय ऐसे हैं, जिन्हें विदेशों में तो सम्मान मिलता है. पर, अपने देशवासी उन्हें प्रायः स्मरण नहीं करते. डॉ. राधाविनोद पाल वैश्विक ख्याति प्राप्त विधिवेत्ता तथा न्यायाधीश थे, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के विरुद्ध चलाये गये अन्तर्राष्ट्रीय मुकदमे में मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध निर्णय देने का साहस किया था, जबकि उस समय विजयी होने के कारण मित्र राष्ट्रों का दुःसाहस बहुत बढ़ा हुआ था. मित्र राष्ट्र अर्थात अमरीका, ब्रिटेन, फ्रान्स आदि देश जापान को दण्ड देना चाहते थे, इसलिये उन्होंने युद्ध की समाप्ति के बाद ‘क्लास ए वार क्राइम्स’ नामक एक नया कानून बनाया, जिसके अन्तर्गत आक्रमण करने वाले को मानवता तथा शान्ति के विरुद्ध अपराधी माना गया था.

इसके आधार पर जापान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री हिदेकी तोजो तथा दो दर्जन अन्य नेता व सैनिक अधिकारियों को युद्ध अपराधी बनाकर कटघरे में खड़ा कर दिया. 11 विजेता देशों द्वारा 1946 में निर्मित इस अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (इण्टरनेशनल मिलट्री ट्रिब्यूनल फार दि ईस्ट) में डॉ. राधाविनोद पाल को ब्रिटिश सरकार ने भारत का प्रतिनिधि बनाया था. इस मुकदमे में दस न्यायाधीशों ने तोजो को मृत्युदण्ड दिया, पर डॉ. राधाविनोद पाल ने न केवल इसका विरोध किया, बल्कि इस न्यायाधिकरण को ही अवैध बताया. इसलिए जापान में आज भी उन्हें एक महान् व्यक्ति की तरह सम्मान दिया जाता है.

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के लगभग 20 लाख सैनिक तथा नागरिक मारे गये थे. राजधानी टोक्यो में उनका स्मारक बना है. इसे जापान के लोग मन्दिर की तरह पूजते हैं. यासुकूनी नामक इस समाधि स्थल पर डॉ. राधाविनोद का स्मारक भी बना है. जापान के सर्वोच्च धर्मपुरोहित नानबू तोशियाकी ने डॉ. राधाविनोद की प्रशस्ति में लिखा है कि – हम यहां डॉ. पाल के जोश और साहस का सम्मान करते हैं, जिन्होंने वैधानिक व्यवस्था और ऐतिहासिक औचित्य की रक्षा की. हम इस स्मारक में उनके महान कृत्यों को अंकित करते हैं, जिससे उनके सत्कार्यों को सदा के लिये जापान की जनता के लिये धरोहर बना सकें. आज जब मित्र राष्ट्रों की बदला लेने की तीव्र लालसा और ऐतिहासिक पूर्वाग्रह ठण्डे हो रहे हैं, सभ्य संसार में डॉ. राधाविनोद पाल के निर्णय को सामान्य रूप से अन्तर्राष्ट्रीय कानून का आधार मान लिया गया है.

डॉ. पाल का जन्म 27 जनवरी, 1886 को हुआ था. कोलकाता के प्रेसिडेन्सी कॉलेज तथा कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा पूर्ण कर वे इसी विश्वविद्यालय में वर्ष 1923 से 1936 तक अध्यापक रहे. वर्ष 1941 में उन्हें कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया. वह तत्कालीन अंग्रेज शासन के सलाहकार भी रहे. यद्यपि उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय कानून का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, फिर भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब जापान के विरुद्ध ‘टोक्यो ट्रायल्ज’ नामक मुकदमा शुरू किया गया, तो उन्हें इसमें न्यायाधीश बनाया गया.

डॉ. पाल ने अपने निर्णय में लिखा कि किसी घटना के घटित होने के बाद उसके बारे में कानून बनाना नितान्त अनुचित है. उनके इस निर्णय की सभी ने सराहना की. अपने जीवन के अन्तिम दिनों में डॉ. पाल ने निर्धनता के कारण अत्यन्त कष्ट भोगते हुए 10 जनवरी, 1967 को यह संसार छोड़ दिया.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *