15 जनवरी से प्रारंभ निधि समर्पण अभियान का आखिरी दिन था – 7 फरवरी. व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए इस दिन का महत्व इसलिए भी था क्योंकि ये मेरे पूज्य गुरुदेव और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के कोषाध्यक्ष पूज्य स्वामी गोविंददेव गिरी जी महाराज का तिथि अनुसार जन्मदिन भी था. पूज्य स्वामी जी ने अपने वीडियो संदेश एवं अन्य भाषणों में झुग्गी-झोपड़ियों में सम्पर्क अभियान के लिए अनेक बार आह्वान किया था. हमने तय किया कि 7 फरवरी को पूज्य स्वामी गोविंददेव गिरी जी के जन्मदिन के निमित्त हम संगमनेर की झुग्गी-झोपड़ियों के 1000 घरों में सम्पर्क अभियान चलाएंगे.
एक दिन पहले ही रामनगर सेवाबस्ती के कुछ युवकों को सम्पर्क अभियान की जानकारी देकर उन्हें हमारी सहायता करने के लिए कहा था. ये युवक बड़े उत्साह से हमारे साथ शामिल हो गए. हम एक-एक घर में जाते और अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर के लिए कुछ न कुछ समर्पण करने का आग्रह करते.
इसी प्रकार घूमते-घूमते हमने एक घर का दरवाजा खटखटाया. बाहर आते ही घर के पुरुष ने हमें बताया कि घर मे एक मरीज है. अनायास ही मेरे मुंह से निकला कि क्या कोविड का मरीज है क्या? उसने कहा – नहीं, एक्सीडेंट का मरीज है. उनके 19 साल के लड़के के पेट पर से बस निकल गयी थी. ये सुनकर ही मेरा कलेजा मुंह को आ गया. उसने कहा कि उसके बेटे के उपचार का खर्च 13 लाख रुपया है. एक ऑपेरशन पुणे के दीनानाथ मंगेशकर में हो चुका है और एक अभी बाकी है. उसकी खुद की महीने की कमाई महज 3000 रुपये है. अनेक लोगों से, संस्थाओं से झोली फैलाकर उसने कुछ रुपये इक्कट्ठा किये और पहला आपरेशन किसी प्रकार करवा लिया.
ऐसा कहकर उसने मुझसे कहा कि आप अंदर जाकर उसे देख सकते हैं. जिसके पेट पर से बस निकल गई हो, ऐसा इंसान किस हाल में होगा…!! मेरी तो हिम्मत नहीं थी, अंदर जाने की. लेकिन तब भी जब मैं अंदर गया तो बिस्तर पर लेटे एक मुस्कुराते चेहरे ने स्वागत किया. 19 साल का वह युवक अपनी इच्छाशक्ति के बल पर मौत को मात देकर अब दूसरों के सहारे से थोड़ा बहुत चलने लगा था. मैंने बस इतना ही कहा कि तुम तो शेर हो, एक दिन जरूर स्वस्थ होकर बाहर निकलोगे.
हमने बिना कुछ मांगे ही आगे जाने का फैसला लिया. किन्तु तभी उस लड़के के पिता ने कहा – मैं पिछले 3 महीने से झोली फैलाए घूम रहा हूँ, लेकिन आप आज उन राम जी के लिए झोली लिए मेरे घर आए हैं, जिन्होंने मेरे बेटे की जान बचाई है. आपको खाली हाथ कैसे जाने दूँ..?
ऐसा कहकर उन्होंने 30 रुपये अपने बेटे रौनक के हाथ में दिए और मुझे देने को कहा. रौनक ने मेरे हाथ में पैसे दिए. मेरी आंखें भर आईं. मैंने अपनी जेब से 500 रुपये निकाले और कहा कि आप हमारी तरफ से रौनक के लिए कुछ फल लेकर आइए. वो लेने को तैयार नहीं थे, लेकिन तब भी हमने उन्हें जबरदस्ती पैसे दिए. मेरे साथी अक्षय थोरात ने उसके पिता को अपना मोबाइल नम्बर देकर सम्पर्क करने को कहा. किरण पल्लेरा ने भी उनकी हिम्मत बढ़ाई और हम दूसरे घर की तरफ बढ़ गए.
जाते समय मुझे मेरी जेब बहुत भारी लग रही थी. शायद, उन 30 रुपये का वजन 3 करोड़ से भी अधिक था. जो उस पिता ने प्रभु श्रीराम के लिए दिए थे. ऐसे ही समर्पण से श्रीराम मंदिर राष्ट्र मंदिर कहलाएगा.
श्रीराम मंदिर निधि समर्पण अभियान समिति (संगमनेर उपखंड, पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत)