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61 वर्ष पूर्व सीमा पर बलिदान हुए रणबांकुरों को समर्पित पुलिस स्‍मृति दिवस

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भारतमाता का वीर सपूत मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणार्पण का संकल्प बचपन में ही – प्रभो देश रक्षा बलं मे प्रयच्छ के मन्त्र से लेता है. हमारी सेना, सशस्त्र सुरक्षा बल और पुलिस के कर्तव्य में समर्पण और बलिदान का भाव विद्यमान होता है.  21 अक्तूबर का दिन भारत में पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसके पीछे देश की सीमा की सुरक्षा करते हमारे जांबाज रणबांकुरों की शौर्यगाथा और उनका अद्वितीय बलिदान है. वर्ष 1959 में 21 अक्तूबर के  दिन भारत के 10 पुलिसकर्मी जम्मू कश्मीर स्थित पूर्वी लद्दाख में तिब्बत बॉर्डर पर देश की सीमा की रक्षा करते हुए बलिदान हुए थे.

उल्लेखनीय यह है कि उस कालखंड में सीमा पर निगरानी और सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआरपीएफ के हाथों में थी. तब तिब्बत के साथ भारत की 2,500 मील लंबी सीमा की निगरानी की जिम्मेदारी सीआरपीएफ की तीसरी बटालियन की एक कंपनी को दी गयी थी जो उत्तर पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में तैनात थी. गश्त लगाने के लिए आगे गए जवानों की दो टुकड़ियां तो लौट आई थीं, लेकिन तीसरी टुकड़ी के पुलिसकर्मी नहीं लौटे. इसमें दो पुलिस कॉन्स्टेबल और एक पोर्टर शामिल था. फिर शेष जवानों ने उनकी तलाश शुरू की. गुमशुदा पुलिसकर्मियों की तलाश में तत्कालीन डीसीआईओ करम सिंह के नतृत्व में एक टुकड़ी 21 अक्तूबर को अभियान के लिए निकली, इस टुकड़ी में 20 पुलिसकर्मी शामिल थे. करम सिंह घोड़े पर और बाकी पुलिसकर्मी पैदल आगे बढ़ते गए. तीन टुकड़ियों में बंटे हुए सभी सदस्य अपने-अपने रास्ते में आगे बढ़ रहे थे, तभी अचानक चीनी सैनिकों ने घात लगाकर इन पर हमला बोल दिया. ड्रैगन आर्मी के जवान संख्या में बहुत अधिक थे और आधुनिक हथियारों से भी पूरी तरह से लैस थे. चीनी सैनिकों के ज्यादा संख्या में होने के बावजूद सीआरपीएफ के हमारे महायोद्धाओं ने धैर्य और साहस से शत्रु सेना के साथ मुकाबला किया. किन्तु ज्यादा संख्या और आधुनिक हथियारों का फायदा उठाकर चीन की सेना के हाथों सीआरपीएफ के 10 पुलिसकर्मी बलिदान हो गए थे और सात बुरी तरह घायल हुए ..शेष तीन वहां से निकलने में कामयाब हुए थे. घायल पुलिसकर्मियों को चीन की सेना ने बंदी बना लिया, बाद में भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद उन्हें छुड़ाया गया.

ठीक 61 वर्ष पूर्व भारत की सीमाओं की रक्षा करने वाले उन पुलिसकर्मियों के साहस और बलिदान की याद में ही नेशनल पुलिस डे या पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है. संयोग से तब भी चीन के साथ बेहद तनाव की स्थिति थी, जगह भी पूर्वी लद्दाख थी और आज भी ड्रैगन इसी क्षेत्र में अपनी सेना और हथियार लिए खड़ा है. 61 वर्ष पूर्व के भारत और आज 21वीं सदी के भारत में जमीन आसमान का अंतर है. आज हमारी सैन्य शक्ति, युद्ध के आधुनिक उपकरण और सीमा पर तैयार आधारभूत संरचना के साथ मजबूत और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले राजनीतिक नेतृत्व ने ड्रैगन को दांतों तले उंगली दबाने को विवश कर दिया है.

पुलिस बल को समर्पित दिल्ली के पुलिस स्मारक में पुलिस स्मृति दिवस पर बलिदानी जांबाजों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “पुलिस स्‍मृति दिवस पर हम पूरे भारत में कार्यरत पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. हम कर्तव्य निर्वहन के दौरान शहीद हुए सभी पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देते हैं. उनके बलिदान और सेवा को हमेशा याद किया जाएगा. आपदा प्रबंधन में सहायता से लेकर कोविड-19 से लड़ने तथा भयावह अपराधों को सुलझाने से लेकर कानून और व्यवस्था को बनाए रखने तक,  हमारे पुलिसकर्मी हमेशा बिना हिचके अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं. हमें उनके परिश्रम और नागरिकों की सहायता के प्रति तत्परता पर गर्व है.” पुलिस स्मृति दिवस पूरे देश के पुलिसकर्मियों और उनके परिवार के प्रति आभार प्रकट करने के लिए है. हम ड्यूटी करते हुए बलिदान हुए सभी पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देते हैं.

वास्तव में 1959 में भारतमाता की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले पराक्रमी और अमर बलिदानी रणबांकुरे सुरक्षा सैनिकों के समर्पण को कृतज्ञ राष्ट्र कभी विस्मृत नहीं कर सकता. पुलिस स्मृति दिवस पर देश की सीमा सहित आंतरिक व्यवस्था में अपना कर्तव्य निभाते हुए प्राणों की आहुति देने वाले पुलिसकर्मियों के प्रति भी सादर नमन और वन्दन.

सूर्य प्रकाश सेमवाल

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