धमकियों के बावजूद कश्मीर में निकली अभिनव संदेश यात्रा
श्रीनगर. आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति द्वारा कश्मीर शैव दर्शन के आध्याता आचार्य अभिनवगुप्त के संदेश को देशभर में पहुंचाने के उद्देश्य से निकाली गयी अभिनव संदेश यात्रा का श्रीनगर में विधिवत समापन हुआ. कांचीकामकोटि से 31 मार्च 2016 को शुरु हुई यह यात्रा 10 जून को श्रीनगर के प्रसिद्ध खीर भवानी मंदिर पहुंची, जहां कलश पूजन और भव्य स्वागत किया गया.
इसके बाद यह यात्रा शंकरपल, गोपी तीर्थ, पुखरीबल, स्वामी रामजी आश्रम, ईश्वर आश्रम, विताल भैरव मंदिर, शंकराचार्य मंदिर और मंगलेश्वर भैरव मंदिर से होती हुई ज्येष्ठा देवी मंदिर पहुंची. ज्येष्ठा देवी मंदिर के प्रांगण में आयोजित समापन समारोह में देश के विभिन्न स्थानों से सैकड़ों की संख्या में लोग हिस्सा लेने पहुंचे थे. समारोह में आध्यात्म गुरू श्रीश्री रविशंकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी, प्रसिद्ध कथावाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज, पद्मश्री जवाहरलाल कौल, प्रो. रजनीश शुक्ल सहित अन्य विद्वानों ने अपने विचार रखे.
समापन समारोह में आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति के अध्यक्ष श्रीश्री रविशंकर जी ने कहा कि कश्मीर संत-महात्माओं की भूमि रही है. जिस प्रकार कश्मीर की पहचान उसकी प्राकृतिक सुंदरता से होती है, उसी तरह कश्मीरियत की पहचान आचार्य अभिनवगुप्त से होती है. आचार्य अभिनवगुप्त की ज्ञान-परंपरा को भारत ही नहीं पूरे विश्व में पूजा जाता है. उन्होंने कश्मीर में ही रहकर अपने आध्यात्मिक चिंतन के जरिए कला, साहित्य, नाट्य एवं तंत्र जैसे विषयों पर अपने लेखन के माध्यम से एक नई पहचान दी है. प्राणियों के भीतर की चेतना को जगाने की जरूरत है. युवाओं को चाहिए कि वह आचार्य अभिनवगुप्त के संदेश को वैज्ञानिक ढंग से अपने जीवन में अपनाएं व समाज के अन्य हिस्सों में इसे प्रचारित करें. उन्होंने कहा कि अभिनवगुप्त के बारे में देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने की आवश्यकता है.
समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि समाज में कई प्रयास हो रहे हैं, ताकि लोग उचित मार्ग पर चल सकें. यह यात्रा भी इसी उद्देश्य से आरंभ हुई है, जो देश के विभिन्न हिस्सों से होकर इस पवित्र स्थल पर पहुंची है. अभिनवगुप्त के युग में जैसी समस्याएं और चुनौतियां समाज के सामने थीं, वैसी चुनौतियां बौद्धिक और भौतिक स्तर पर आज भी हमारे सामने हैं. इसलिए आश्चर्य नहीं कि अभिनवगुप्त का दार्शनिक चिंतन जैसा प्रासंगिक दसवीं शताब्दी के लिए था, वैसा ही प्रासंगिक इक्कीसवीं शताब्दी के लिए भी है. इसलिए यह समय आचार्य अभिनवगुप्त के दर्शन और ज्ञान परंपरा को स्मरण करने का है.
संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. रजनीश शुक्ल ने आचार्य अभिनवगुप्त के दार्शनिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य अभिनवगुप्त के महाप्रयाण के सहस्राब्दी समारोह के आयोजन का अवसर हमें प्राप्त हुआ है. भारतीय ज्ञान परम्परा के पुरोधा का जीवन हम सबके लिये प्रेरणादायी है. दार्शनिक स्तर पर समन्वय के जो सूत्र आचार्य अभिनवगुप्त ने छोड़े हैं, उनके सिरे पकड़ कर आज उपस्थित दार्शनिक, आध्यात्मिक और लौकिक समस्याओं के समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है. कार्यक्रम का संचालन अभिनव संदेश यात्रा के संयोजक अजय भारती ने किया.
यात्रा से जुड़े रोचक तथ्य
देश की एकता और अखंडता को एक सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से 31 मार्च 2016 को कांचीकामकोटि के शंकराचार्य आश्रम और गोवा के प्रसिद्ध मंगेशी मंदिर से अलग-अलग दो समूहों में यात्रा का शुभारम्भ हुआ था, जो भारत के विभिन्न मंदिरों और महानगरों से होती हुई 10 जून को कश्मीर पहुंची. इस यात्रा में कश्मीर की मिट्टी से भरे कलश का जगह-जगह पूजन और विभिन्न पवित्र नदियों के जल से जलाभिषेक कराया गया. पहले चरण में यात्रा चैन्नई, तिरुवरुर, बेंगालूरु, हैदराबाद, नागपुर, बिलासपुर, जबलपुर, भोपाल और झांसी होते हुए फरीदाबाद पहुंची. जबकि इसी चरण में दूसरा समूह गोवा, पुणे, मुम्बई, अहमदाबाद, वड़ोदरा, उज्जैन, देवास, ग्वालियर होते हुए फरीदाबाद पहुंचा. इसके बाद यात्रा दिल्ली और एनसीआर होते हुए हरियाणा, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश होते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवेश की. इस दौरान कलश पूजन के साथ ही कई सार्वजनिक कार्यक्रमों और संगोष्ठियों का आयोजन भी हुआ. पूरे भारत में यह यात्रा जहां -जहां गयी, लोगों में जबरदस्त उत्साह दिखा.
कौन थे आचार्य अभिनवगुप्त
ऐसी मान्यता है कि आचार्य अभिनवगुप्त का जन्म दसवीं शताब्दी के मध्य कश्मीर में हुआ. वे कश्मीर शैव दर्शन के प्रखर विद्वान और भारत के एक महान दार्शनिक थे. आगम एवं प्रत्यभिज्ञा-दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य होने के साथ ही वे साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे. परमार्थसार, प्रत्यभिज्ञा विमर्शिनी, गीतार्थ संग्रह जैसे ग्रंथों की रचना करने के साथ ही उन्होंने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र तथा आनंदवर्धन के ध्वन्यालोक पर टीका भी की जो आज कालजयी कृतियों में गिनी जाती है.
इतना ही नहीं अभिनवगुप्त को मंत्र-सिद्ध साधक और भैरव का अवतार माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि आज से एक हजार साल पहले अभिनवगुप्त अपने 1200 शिष्यों के साथ शिव-स्तुति करते हुए कश्मीर में बड़गाम के निकट बीरवा नामक ग्राम में स्थित एक गुफा में शिवलीन हुए थे. उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इटली, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस सहित विश्व के पचास से भी अधिक विश्वविद्यालयों में अभिनवगुप्त पर बहुत पहले से शोध कार्य चल रहा है. इसके अलावा उनकी कृतियों का विश्व के अनेक देशों में संबंधित भाषा में अनुवाद हुआ है.
क्यों उपजा यात्रा को लेकर विवाद
आचार्य अभिनवगुप्त के शिवलीन होने के एक हजार साल पूरे होने पर पूरे भारत में उनका सहस्राब्दी समारोह मनाया जा रहा है और उनके अवदान को देशभर में प्रचारित करने के लिए कांचीकामकोटि से कश्मीर तक एक यात्रा का आयोजन किया गया. इस यात्रा को लेकर जम्मू-कश्मीर राज्य का सियासी पारा थोड़ा गर्म रहा. एक तरफ अलगाववादी नेता अपने बयानों से राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे रहे तो दूसरी तरफ भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार भी कुछ ठोस निर्णय लेने की स्थिति में नहीं दिखी. इतना ही नहीं कश्मीर के अलगाववादी व मजहबी संगठनों ने इस यात्रा को इस्लाम विरोधी करार देते हुए इसका विरोध करना शुरू कर दिया. साथ ही अलगाववादी नेताओं ने मीडिया के जरिए बयान जारी कर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी. यात्रा को लेकर राज्य सरकार और अलगाववादी नेताओं के रुख का विधानसभा में भाजपा के कई विधायकों ने विरोध भी किया.
विवादों के बीच आये प्रमुख बयान
अभिनवगुप्त की गुफा हिंदुओं के लिए पवित्र स्थान है और यहां जाने से उन्हें रोका नहीं जा सकता है. इस यात्रा को लेकर घाटी में अलगाववादियों द्वारा लोगों को भ्रमित किया जा रहा है. यह यात्रा कश्मीर घाटी में आपसी भाईचारा और सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने के लिए है, न कि शांति भंग करने के लिए. यात्रा कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी है. जो इसका विरोध कर रहे हैं, वे कश्मीरियत का विरोध कर रहे हैं. – हरिन्द्र गुप्ता (प्रदेश महासचिव, भाजपा)
कश्मीरी लोग हमेशा सैलानियों और धार्मिक यात्राओं का स्वागत करते हैं, लेकिन यह कथित यात्रा आरएसएस के दिमाग की उपज है, जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ दो समुदायों में झगड़ा फैलाना है. हम अपनी सांस्कृतिक पहचान से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं कर सकते, इसलिए हम ऐसी किसी यात्रा का स्वागत नहीं करते, जिसकी कोई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि नहीं हो. – सईद अली गिलानी (हुर्रियत नेता)
अभिनवगुप्त की कहानी ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है, न ही इसका कोई सबूत है, यह पूरी तरह से मनगढ़ंत है. यह गुफा मुस्लिम संत मिया शाह साहब का इबादत स्थल है. हमारी मांग है कि इस यात्रा को हमारे ऊपर जबरदस्ती न थोपा जाए, अगर इसे फिर भी आयोजित किया जाएगा तो इससे भाईचारे को धक्का लग सकता है. – मौलाना सैयद अब्दुल लतीफ बुखारी (संरक्षक, अंजुमन मजहरूल हक़)
आचार्य अभिनवगुप्त की यात्रा का कार्यक्रम बहुत पहले से ही तय था. इसमें अभिनवगुप्त के समाधि स्थल, बीरवाह जाने की योजना थी ही नहीं. यह समझ से परे है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी इस मसले पर जवाब दिया और विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा. अनायास ही इस मुद्दे को तूल दिया जा रहा है. हमारा कार्यक्रम पहले से ही क्षीर भवानी और ज्येष्ठा माता मंदिर का था. – शिवप्रसाद रैना (अध्यक्ष, आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति, जम्मू-कश्मीर)
भारत ज्ञानी-विज्ञानी संत आचार्यों का देश रहा है. यहां कई ऐसे सन्त-महात्मा हुए हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान-दर्शन से समाज को नई दिशा देने का काम किया है. ऐसे ही हजार वर्ष पूर्व आचार्य अभिनवगुप्त नाम के एक महान संत पैदा हुए. ऐसे महान संत की सहस्राब्दी मनाने के लिये भारत एकजुट हो रहा है. निश्चित रूप से भारत में एक नई आध्यात्मिक क्रांति होने जा रही है, जिसका पूरी दुनिया को लाभ मिलने वाला है.
श्रीश्री रविशंकर (अध्यक्ष, आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति)
रत्नगर्भा कश्मीर ने प्राचीन काल से ही विश्व को असंख्य अनमोल रत्न दिये, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक ज्ञान, साधना की पराकाष्ठा तथा प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर समूचे विश्व को नई दिशा दी. आचार्य अभिनवगुप्त इस श्रृंखला की एक अति महत्वपूर्ण कड़ी हैं. वैचारिक कट्टरता के इस युग में समस्त विश्व को इस महापुरूष के जीवन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है. – सुरेश भय्याजी जोशी, (सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)
साभार – न्यूज भारती