मुंबई (विसंकें). इतिहास संकलन योजना के केंद्रीय मार्गदर्शन हरिभाऊ वझे जी ने कहा कि सरस्वती नदी की खोज भारत को गौरवशाली सांस्कृतिक वैभव तथा जल समृद्धि की ओर ले जाएगी. हरिभाऊ जी श्रीकृष्ण मंदिर हॉल, श्रीकृष्ण नगर बोरीवली पूर्व में सरस्वती – हिन्दू संस्कृति की खोज विषय पर आयोजित व्याख्यान में उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि हमारा समाज गंगा-जमुना और सरस्वती, इस त्रिवेणी संगम में से सरस्वती नदी को सदियों से भूलता चला गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाबा साहब आप्टे जी तथा मोरोपंत पिंगले जी, ऐसे प्रचारकों के मार्गदर्शऩ में कई शास्त्रज्ञों ने इस नदी के प्रवाह मार्ग के अनुसंधान का कार्य शुरू किया. पिछले 30 वर्षों के अथक प्रयासों के कारण आज वेदकालीन सरस्वती नदी का अस्तित्व, उनके उद्गम स्थान से लेकर पश्चिम समुद्र तक के सफर का मार्ग आज विश्वमान्य हो चुका है.
हरिभाऊ जी ने कहा कि ब्रिटिश इतिहास अभ्यासकों ने हड़प्पा तथा मोहन-जोदारो के अवशेषों की खोज करते हुए उसे सिंधु संस्कृति करार दिया था. तो फिर वेद, रामायण, महाभारत में वर्णित सरस्वती नदी के अस्तित्व का प्रश्न गहन बनता जा रहा था. फिर सेटेलाइट की मदद से भारत की पश्चिम भूमि पर सिंधु नदी जैसी ही ओर एक नदी के अस्तित्व का प्रमाण सामने आया. यह विश्व में एक मात्र उदाहरण था कि इतनी बड़ी नदी का अस्तित्व ही कालगति में लुप्त हुआ हो. सरस्वती नदी के क्षेत्र में आगे के शोध में ऐसे कई प्रमाण मिले, जिससे यह साबित हो सके कि हड़प्पा-मोहन-जोदारो जैसे प्राचीन स्थल सिर्फ सिंधु संस्कृति के नहीं, अपितु सिंधु-सरस्वती संस्कृति के अवशेष हैं.
उन्होंने कहा कि आज भी भारत का इतिहास अधूरा ही बताया जा सकता है, क्योंकि भारत के कई पड़ोसी देशों और स्वयं अपने ही देश में ऐसे कई दस्तावेज मौजूद हैं जो हमारे इतिहास पर विस्तृत रोशनी डाल सकते हैं.