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साम्राज्यवादी इतिहासकारों ने इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया – डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय जी

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20160821_151202वाराणसी (विसंकें). काशी हिन्दू विश्वविद्यालय इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय में आयोजित इतिहास दृष्टि, इतिहास लेखन, एवं इतिहास के स्रोत पर दो दिनों तक चली राष्ट्रीय महिला इतिहासकार संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य वक्ता अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय जी थे.

उन्होंने कहा कि इतिहास के साथ कोई दुराग्रह, कोई भी पूर्वाग्रह नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि वह पवित्रता एवं ज्ञान का प्रतीक है. उन्होंने इतिहास को मानव शास्त्र कहकर सम्बोधित किया. इसका सम्बन्ध मानव जीवन से है, जिसका आधार ममत्व एवं संवेदना है और क्योंकि भारतीय नारी मां सरस्वती का स्वरूप, ममत्व, संवेदना एवं वाणी की स्वामिनी है, इसलिये भारतीय नारी को इतिहास लेखन के कार्य से अलग नहीं किया जा सकता. हिस्ट्री एवं इतिहास में वही अन्तर है जो गंगा एवं गटर में है. साहित्य लोककला एवं संस्कृति हमारे इतिहास लेखन के मुख्य स्रोत होने चाहिये. वर्ष 1950 के बाद भारत में जो भी इतिहास लेखन किया गया है, उसे साम्राज्यवादी इतिहासकारों ने कहीं ज्यादा तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है.

इसके साथ ही इतिहास लेखन में लेखन की दृष्टि पर बल देते हुए उन्होंने भारतीय दृष्टि एवं भारतीय चैतन्य के प्रकाश में भारत के इतिहास को लिखे जाने पर बल दिया. इसी दृष्टि से हमें एक नये भारत का निर्माण एवं एक नये युग का निर्माण कर सकते हैं.

समापन सत्र में उपस्थित अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के मार्ग दर्शक मधु भाई कुलकर्णी जी ने देश के विभिन्न भागों से आई महिला इतिहासकारों का मार्गदर्शन किया. सत्र में उपस्थित अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश मित्तल जी एवं उपाध्यक्ष ईश्वर शरण विश्वकर्मा जी एवं डॉ. देवी प्रसाद सिंह जी ने स्थानीय कार्यकर्ताओं का अभिनन्दन किया.

संगोष्ठी की संयोजिका एवं इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. अरूणा सिन्हा जी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया. प्रतिवेदन इतिहास विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जयलक्ष्मी कौल ने प्रस्तुत किया. सत्र का संचालन डीएवी पीजी कालेज वाराणसी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उर्जस्विता सिंह ने की. दो दिनों तक चली राष्ट्रीय महिला इतिहासकार संगोष्ठी में चार सत्र आयोजित किये गये. जिनका विषय क्रमशः इतिहास दृष्टि विभिन्न आयाम, स्वरूप, लेखन पद्धति, व्यावहारिक एवं दार्शनिक पक्ष – इतिहास लेखन में नकारवाद एवं इतिहास में उपयोग किये गये शब्द एवं उनके अर्थ-इतिहास के स्रेात उनके अनुवाद एवं उनपर की गयी टिप्पणियां, व्याख्यायें एवं इतिहास के अध्ययन हेतु समुचित प्रविधि रही.

प्रथम सत्र की मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण नई दिल्ली की अध्यक्ष प्रो. सुस्मिता पाण्डेय जी ने वैज्ञानिक इतिहास लेखन, वेदान्त एवं पुराणों के इतिहास लेखन में क्वांटम थ्योरी के प्रयोग पर बल दिया साथ ही यह भी कहा कि इतिहास दर्शन को अन्य विधाओं से मिक्स नहीं करना चाहिये क्योंकि ये हमारे संस्कृति से जुड़ा हुआ है. भौतिकवादी इतिहास लेखन सभी पक्षों को उत्पादन से जोड़ता है, बौद्ध धर्म का विकास भी इसी की पहचान है.

इस सत्र में उपस्थित पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा जी ने कहा कि भारत का इतिहास एवं संस्कृति विश्वगुरू बनने के लिये अग्रसर है तथा राष्ट्रीय महिला इतिहास संगोष्ठी एक नींव का पत्थर साबित होगी. विशेषज्ञ की भूमिका में  विवेकानंद कॉलेज नई दिल्ली से एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. युथिका शर्मा जी रही. सत्र की अध्यक्षता जम्मू विश्वविद्यालय से प्रो. अनीता बिल्लावरिया ने की.

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