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पर्व मनाना यानि नई पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर सौंपना

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लाहौल स्पिति (विसंकें). लाहौल स्पीति के तांदी (केलांग) में आयोजित चंद्रभागा संगम पर्व में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर जी ने कहा कि इस पर्व का आयोजन लाहौल की संस्कृति को अपनी नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सुंदर अवसर है. ऐसे आयोजनों के माध्यम से हम निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर सौंप कर जाएंगे. नई पीढ़ी के लोग देश में दूर दराज के क्षेत्रों में काम के लिए, शिक्षा के लिए जाते हैं. वर्षों अपनी सांस्कृतिक जड़ों और परम्पराओं से दूर रहते हैं. उन्हें अपने रीती-रिवाज, भाषा, परम्पराओं और संस्कृति से जोड़ना आवश्यक है. तभी समाज विकास करता है.

उन्होंने कहा कि यह संगम केवल चन्द्र व भागा दो नदियों का ही संगम नहीं है, अपितु बौद्ध और सनातन परम्पराओं का संगम भी है. प्राचीन सभ्यताएं नदियों के किनारे बसती थीं, क्योंकि जल जीवन का आधार है. इसलिए हमारे पूर्वजों ने नदियों को माँ के रूप में मानते हुए अपने जीवन में स्थान दिया था. नदियों के प्रति पवित्रता का भाव संजोया है. नदियों की पवित्रता बनाए रखना हम सब की जिम्मेदारी है. जबकि आज आवागमन के साधनों को ध्यान में रख नगर सड़कों के किनारे बसे हैं. नरेंद्र जी ने कहा कि आने वाले समय में चंद्रभागा संगम पर्व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा और पर्यटकों को लाहौल की संस्कृति को जानने के लिए आकर्षित करेगा.

चंद्रभागा संगम पर्व समिति के अध्यक्ष डॉ. चंद्रमोहन परशीरा ने दूर दराज से आए ग्रामीणों को इस पर्व के लगातार तीसरे आयोजन पर बधाई देते हुए कहा कि ऋग्वेद में, पुरानों, अरबी ग्रन्थों, चीनी यात्रियों के वृतांत में भी इस पवित्र चंद्रभागा नदी का वर्णन मिलता है. सप्त सिन्धु की पवित्र नदियों में से यह एक है. उन्होंने कहा कि अरबी में इस नदी को आब-ए-चीन कहा गया है. आगे इसे चिनाब कहा जाने लगा. वैदिक काल में असिक्नी कहा गया.

स्थान के महत्व को दर्शाते हुए डॉ. परशीरा ने बताया कि चंद्रभागा नदी के किनारे पर ऋषि वशिष्ठ का विवाह सम्पन्न हुआ था, द्रोपदी का दाह संस्कार भी इसी के किनारे हुआ था. यह देवी संध्या की तपस्या स्थली भी है.

अस्थि विसर्जन की परंपरा

इस पर्व के आयोजन के प्रारम्भ होने की जानकारी देते हुए डॉ. चंद्रमोहन जी ने बताया कि 100 वर्ष पूर्व तक प्रचलित ‘छाछा’ बौद्ध परम्परा की पुनः शुरुआत करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के शीर्षस्थ नेता स्वर्गीय अशोक सिंघल जी का अस्थि विसर्जन उनके संतमय जीवन के कारण बौद्ध रिमपोचे के समान इसी स्थान पर 29 जून 2016 में किया गया था. उन्हीं की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 29 जून को यहाँ चंद्रभागा संगम पर्व मनाया जाता है.

इस आयोजन को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताते हुए गोशाल ग्राम पंचायत प्रधान सुशीला राणा ने कहा कि भंडारे के लिए सभी ग्रामीण अपने साथ अन्न आदि वस्तुएं लाते हैं, जिससे बने भंडारे में हजारों लोग श्रद्धाभाव से प्रसाद ग्रहण करते हैं. आसपास के गांवों से सैकड़ों लोगों ने संगम पर्व महोत्सव में भाग लिया. स्थानीय कलाकारों ने लोकनृत्य व लोकगीतों के माध्यम से सारे वातावरण को आनन्द से भर दिया.

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