भाऊराव देवरस सेवा न्यास ने किया दो समाजसेवियों का सम्मान
लखनऊ (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि अभावग्रस्त लोगों के लिए खड़ा होने वाले समाज को कोई पराजित नहीं कर सकता. उन्होंने आह्वान किया कि समाज के कमजोर वर्ग के सहयोग के लिए सक्षम वर्ग सामने आए. सह सरकार्यवाह जी निरालानगर स्थित माधव सभागार में भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा आयोजित ‘22वें सेवा सम्मान समारोह’ में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. समारोह में मिजोरम और तमिलनाडु के दो समाजसेवियों का सम्मानित किया गया.
डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि भाऊराव जी लखनऊ आये और उन्होंने यहां संघ कार्य शुरु किया. वर्ष 1937 से 1992 तक इस क्षेत्र में संघ कार्य किया. उत्तर प्रदेश में संघ कार्य का प्रारम्भ भाऊराव जी ने ही किया. उन्होंने एक-एक जिले में, एक-एक गांव में जाकर संघ कार्य को विस्तार दिया. जब संघ को कोई नहीं जानता था, उस समय उन्होंने संघ की शाखाएं आरम्भ कीं. भाऊराव जी ने दीनदयाल उपाध्याय, अशोक सिंहल जैसे स्वयंसेवक तैयार किये. भाऊराव जी ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार, बंगाल, असम में भी संघ कार्य को खड़ा किया. इन क्षेत्रों में आज जो संघ का कार्य है, वह भाऊराव जी के परिश्रम से ही खड़ा हुआ और पुष्पित पल्लवित हुआ है. उन्होंने इस कार्य के लिए अनेक स्वयंसेवकों को जीवन समर्पण के लिए प्रेरित किया.
भाऊराव देवरस न्यास के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश में सामाजिक कामों में जुटे समर्पित लोगों को ढूंढना कठिन कार्य है. यह कार्य न्यास द्वारा गत 23 वर्षों से किया जा रहा है. भिन्न-भिन्न क्षेत्रों और स्थानों पर कार्य कर रहे समर्पित लोगों को ढूंढ कर न्यास उन्हें सम्मानित कर रहा है. न्यास ने बी. लालथ्लेन्गलियाना को मिजोरम में ढूंढा. उनके निवास स्थान तक पहुंचने में चार दिन लगते हैं, वहां तक रेल नहीं जाती, 25-30 किमी पैदल चलना पड़ता है. नदी में अस्थायी नौका केले के पत्ते से बनाकर उनके पास तक पहुंचना पड़ता है. इसी तरह एम.ए.बालासुब्रह्मण्यम को चेन्नई से ढूंढकर सम्मानित किया गया है.
सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि न्यास राष्ट्रीय एकात्म बोध का प्रतीक है. भाऊराव देवरस सेवा न्यास अभी तक 44 समाजसेवियों का सम्मान कर चुका है. उन्होंने मगध और लिच्छवी साम्राज्य के बीच हुए युद्ध का उदाहरण दिया. लिच्छवियों को मगध के लोग सिर्फ इस कारण नहीं जीत पाये क्योंकि वहां अभाव ग्रस्त लोगों का सम्मान किया जाता था. महिलाओं का आदर होता था. उन्होंने कहा कि देश बहुत विशाल है, अनेक लोग अभावग्रस्त हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य और दो समय का भोजन भी बहुत से लोगों को उपलब्ध नहीं है. ऐसे अभावग्रस्त लोगों के पास वह लोग जाएं, जिनके पास क्षमता से अधिक है. उनको अभाग्रस्त लोगों के पास जाकर सहयोग करना चाहिए. आज हमारे पास जो कुछ है, वह हमारा नहीं परमात्मा का है, जो है वह इसी समाज का है. न्यास यही संदेश देता है. आज समाज में ऐसे कार्यों की अधिक आवश्यकता है जो सेवा से जुड़े हैं. हम सब एक मां के बालकों की तरह हैं. इसी तरह के भाव लेकर सैकड़ों बन्धु और खड़े हों. सभी अपने निकट देखें कोई अभावग्रस्त तो नहीं है. यही हमारी संस्कृति है.
समारोह के मुख्य अतिथि हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी जी ने कहा कि 21 वीं शताब्दी सेवा को समर्पित है. सेवा के भाव को लेकर जब सरकार काम करती है, तभी गुड गवर्नेंस होती है. देश को 1947 में अधूरी आजादी मिली. देश की आजादी का सपना पूरा नहीं हुआ था. महात्मा गांधी ने भी कहा था कि जब तक गरीब का उत्थान नहीं होगा, तब तक आजादी अधूरी है. गांधी जी कहा करते थे कि देश को पॉलिटीशियन नहीं, बल्कि स्टेट्समैन चाहिए. पॉलिटीशियन सिर्फ पांच साल के बारे में सोचता है और स्टेट्समैन पीढ़ियों के बारे में सोच विचार करता है. उन्नति महल से नहीं गरीब के घर से होगी. इस अवसर पर राज्यपाल ने भाऊराव देवरस सेवा न्यास के लिए अपनी निधि से 25 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की.
समारोह के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि भाऊराव देवरस कर्मयोगी थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश में आकर संघ कार्य किया. उन्होंने कई कार्य क्षेत्र चुने और उनमें स्वयंसेवकों को भेजकर कार्य आरम्भ किया. इस अवसर पर राज्यपाल ने अपने विवेकाधीन कोष से माधव सेवाश्रम के लिए सात लाख पचास हजार रुपये और कुष्ठ रोगियों के आवास निर्माण और पुराने आवासों की मरम्मत के लिए नौ लाख रुपये देने की घोषणा की.
इसके पूर्व समारोह में समाजिक कार्यों के लिए चेन्नई (तमिलनाडु) के एम.ए. बालासुब्रह्मण्यम और आईजोल (मिजोरम) के बी.लालथ्लेन्गलियाना को शाल, श्रीफल, अंगवस्त्र और 51 हजार रुपये की धनराशि का चेक भेंटकर सम्मानित किया गया. समारोह में गणमान्यजन व नागरिक उपस्थित थे.