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असम के बोडो क्षेत्र में हिंसा की साज़िश

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असम में चार जिलों कोकराझार, उदालगुडी, चिरांग और बक्सा को मिला कर बोडो क्षेत्र कहा जाता है. लेकिन इस क्षेत्र में अवैध बंगलादेशी घुसपैठ के कारण जनसंख्या संतुलन बिगड़ रहा है, जिस कारण स्थानीय बोडो जनजाति लोगों में और अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों में निरन्तर संघर्ष की स्थिति बनी रहती है. आज तक असम की कांग्रेस सरकार वोट बैंक के लालच में इन अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को प्रश्रय देती रही है. इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद सरकार ने अवैध बंगलादेशीयों को निकालने के लिये कोई सार्थक क़दम नहीं उठाये. बोडो लोगों ने लम्बे संघर्ष के बाद इस क्षेत्र के लिये बोडो क्षेत्रीय परिषद का गठन करने के लिये सरकार को विवश किया था. इस परिषद के लिये बाक़ायदा चुनाव होते हैं. वर्तमान में इस परिषद पर बोडो पीपुल्स फ़्रंट (बी.पी.एफ) का क़ब्ज़ा है और यह पार्टी कांग्रेस के साथ मिल कर असम सरकार में भागीदार हैं. बी पी एफ़ के चंदन ब्रह्म राज्य में परिवहन मंत्री हैं और वे लोकसभा के चुनावों में कोकराझार सीट से प्रत्याशी हैं. इसलिये सोनिया कांग्रेस ने इस सीट पर अपना कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया.

मार्च मास के अन्त में इस क्षेत्र के चिरांग ज़िला में स्कूल में पढ़ने वाली दो बोडो युवतियों के साथ बंगलादेशी बदमाशों ने सामूहिक बलात्कार किया था. बलात्कार के बाद एक युवती की गला रेत कर हत्या कर दी लेकिन दूसरी किसी तरह बच कर अपने गांव पहुँच गई और उसने गांव वालों को घटना की जानकारी दी. पहले तो सरकार इस पूरे मामले में किसी प्रकार की भी कार्यवाही करने से बचती रही लेकिन जब तनाव ज़्यादा बढ़ने लगा तो पुलिस ने चार युवकों को गिरफ़्तार कर लिया. लेकिन संदिग्ध अपराधियों की संख्या सात बताई जाती है. परन्तु पुलिस ने शेष अभियुक्तों को पकड़ने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. इस कारण पिछले एक मास से ही बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रति बोडो समाज में ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था. बीच-बीच में बंगलादेशी मुसलमानों और बोडो समाज में मारपीट और इक्का-दुक्का हत्या की घटनायें भी होतीं रहीं. इसी बीच लोकसभा के चुनावों के कारण स्थिति और भी गंभीर होने लगी. अखिल बोडो छात्र परिषद के अध्यक्ष ने शक ज़ाहिर किया कि इस प्रकार की घटना के पीछे कांग्रेस का हाथ हो सकता है और वह राजनैतिक समीकरण बदलने के लिये यह कर सकती है. ध्यान रहे इससे पहले भी जुलाई 2012 में स्थानीय बोडो समाज और अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों में भयंकर संघर्ष हुआ था, जब कुछ बंगलादेशी मुसलमानों ने बोडो लोगों पर आक्रमण कर दिया था. उस संघर्ष में सैकड़ों लोग हताहत हुये थे. स्थानीय लोगों के इतने तीव्र विरोध को देखते हुये कुछ बंगलादेशियों ने वापिस अपने देश जाना भी शुरु कर दिया था, लेकिन अपनी वोट राजनीति के चलते सोनिया गांधी की पार्टी उन लोगों को लेकर वापिस ही नहीं आई बल्कि उन की आर्थिक सहायता भी की. इससे स्थानीय लोगों और बंगलादेशियों में तनाव और बढ़ा. दरअसल यह तनाव ही कांग्रेस की वोट राजनीति की संजीवनी है. एक कहावत है, यदि ग़रीब नहीं होंगे तो सर्दियों में किन को कम्बल बाँट कर पूँजीपति पुण्य बटोरेंगे? पूँजीपतियों को पुण्य बटोरना है तो ग़रीबों की ग़रीबी भी बनाये रखनी होगी. इसी प्रकार असम में कांग्रेस को अपनी सत्ता बचाये रखनी है तो उसे असम में अवैध बंगलादेशी मुसलमानों को भी बसाये रखना होगा. बोडो क्षेत्रीय परिषद में हिंसा कांग्रेस की इसी सोची समझी नीति का परिणाम है.

लेकिन चुनावों के कारण इस बार मामला और भी भड़क गया. बी पी एफ़ के चंदन ब्रह्म राज्य में परिवहन मंत्री हैं और वे लोकसभा के चुनावों में कोकराझार सीट से प्रत्याशी हैं. इसलिये कांग्रेस ने इस सीट पर अपना कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया. उसका मानना है कि यदि चंदन जीतते हैं तो यह सीट भी दिल्ली में उसी की गिनती में जायेगी. लेकिन कांग्रेस के दुर्भाग्य से, मतदान के बाद आम धारणा यह बनती जा रही है कि चंदन ब्रह्मा हार सकते हैं और उनके मुक़ाबले में खड़े निर्दलीय हीरा शरणिया जीत सकते हैं. वैसे शरणिया उल्फाई माने जाते हैं. असम में कांग्रेस की सरकार है और इस पार्टी के तरुण गोगोई राज्य के मुख्यमंत्री हैं. बोडो क्षेत्र में बोडो समाज ओर बंगलादेशी मुसलमानों के बीच बढ़ते तनाव को रोकने के लिये सरकार ने बंगलादेशियों को नियंत्रण में रखना जरुरी नहीं समझा. कांग्रेस और असम सरकार शायद दोनों ही जानतीं थीं की बोडो बालिका की संदिग्ध बंगलादेशियों द्वारा अमानुषिक हत्या के बाद यह क्षेत्र बारूद का ढेर बनता जा रहा है. लेकिन सरकार स्वयं ही बारूद का यह ढेर संभाल कर रखना चाहती थी ताकि चुनाव के दिनों में सुविधानुसार वक़्त वेवक्त काम आये. यदि सरकार की ऐसी मंशा न होती तो वह निश्चय ही संदिग्ध बंगलादेशी मुसलमानों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्यवाही करके बोडो समाज का आक्रोश शान्त करने की कोशिश करती. असम में सौभाग्य से कांग्रेस और बोडो पीपुल्स फ्रंट मिल कर सरकार चला रहे हैं, इसलिये यह करना और भी आसान था. परन्तु सरकार शायद यह करना नहीं चाहती थी और इस बारूद के ढेर को चुनाव की हवा देख कर अपने राजनैतिक लाभ के लिये प्रयोग करना चाहती थी. और लगता है उसने ऐसा किया भी.
अब जब चुनाव के सात चरण पूरे हो गये. देश के अधिकांश हिस्सों में चुनाव सम्पन्न हो गया और सोनिया गांधी की पार्टी की पराजय के संकेत भी स्पष्ट दिखाई देने लगे तो पार्टी के पास शायद इस ढेर को आग लगाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था. कोकराझार, चिरांग और बक्सा में लोग बंगलादेशी मुसलमानों से दुखी हैं हीं. इसलिये एक चिंगारी की जरुरत थी. वह चिंगारी सरकार ने पहले ही संभाल कर रखी हुई थी. अपराध कर्म के बाद भी खुले घूम रहे बंगलादेशी मुसलमानों के रुप में. इस आग से कांग्रेस को दो लाभ हो सकते थे. मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रहे इस दंगे को आसानी से नरेन्द्र मोदी के नाम मढ़ा जा सकता था. यह कहा जा सकता था कि मोदी मुसलमानों के ख़िलाफ़ बोलते हैं, इसलिये हिन्दुओं का उन पर हमला करने का साहस हुआ. इससे  देश में जिन स्थानों पर अभी चुनाव होना है, वहाँ के उन संवेदनशील स्थानों पर जहाँ मुसलमानों की जनसंख्या पर्याप्त है, सोनिया कांग्रेस को लाभ हो सकता है. बोडो क्षेत्र में लगी आग के सहारे सोनिया कांग्रेस मुसलमानों में भय उत्पन्न कर देश के दूसरे हिस्सों में उनके वोट अपनी ओर खींच सकती है. देश के जिन हिस्सों में बंगलादेशी नाजायज़ रुप से बसे हुये हैं, वे भी कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं. कश्मीर घाटी की शेष सीटों पर, प्रयास करके इसे मुसलमानों को भड़काने के लिये भी इस्तेमाल किया जा सकता था. नैशनल कान्फ्रेंस में बाप बेटे ने यही काम किया भी.
और लगभग सारा कांड हुआ भी इसी तर्ज़ पर. जैसे ही कोकराझार और चिरांग में बोडो और बंगलादेशी मुसलमानों में हिंसा भड़की और कुछ लोगों की मौत हो गई, उसके बाद बिना एक क्षण भी गँवाये, कांग्रेस के छोटे बड़े सभी नेताओं ने पाठ पढ़ना शुरु कर दिया कि बंगलादेशी मुसलमानों को बाहर निकालने की बात मोदी जगह जगह कह रहे हैं , इसलिये लोगों का ग़ुस्सा इन अवैध बंगलादेशियों के ख़िलाफ़ भड़क रहा है और इसी कारण इसलिये मोदी को ही इन दंगों का दोषी ठहराया जाना चाहिये. इतना ही नहीं वे भाग-भाग कर चुनाव आयोग के आगे भी मोदी को सज़ा देने की माँग करते हुये ठुमके लगाने लगे. कुछ ने तो इससे भी आगे बढ़कर कहा कि चाहे उनकी जान चली जाये लेकिन वे अवैध बंगलादेशी मुसलमानों को देश से बाहर नहीं निकलने देंगे. कांग्रेस का इशारा साफ़ है. यदि पार्टी ग़ैरक़ानूनी तरीक़े भारत में घुसे मुसलमानों के लिये इतना कर सकती है तो भारत के अपने मुसलमानों के लिये तो वह और भी कर सकती है. वोटों की हवस में कांग्रेस और कुछ दूसरे ठिगने दल मुसलमान तुष्टीकरण में किस सीमा तक जा सकते हैं, यह इसका छोटा सा उदाहरण है.

 

–डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

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