जबर्दस्त धमाके के साथ भारतीय राजनीति में दस्तक देने वाले अरविन्द केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को लेकर केवल राजनीतिक पंडितों में ही नहीं बल्कि खासो-आम में जिज्ञासा है. सामाजिक नेता अन्ना हजारे के कंधे पर चढ़ कर दिल्ली की विधानसभा में 28 सीटों से राज्य की सत्ता में पदार्पण करने वाले केजरीवाल के क्रिया-कलापों का समाजशास्त्रीय अध्ययन किये जाने की चर्चा चल पड़ी है. वैसे केजरीवाल के राजनीति में आने के उद्देश्य को तलाश करने में कोई खास माथा-पच्ची करने की जरुरत नहीं, क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुये रेल भवन पर धरना पर बैठ कर खुद केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया था कि देश “राजनीति में अराजकता” फैलाना ही उनका उद्देश्य है.
”अराजकता की राजनीति’’ करने वाले केजरीवाल की पोल खोलने के लिये हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के धर्मशाला परिसर के निदेशक रहे डॉ. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने ”आम आदमी पार्टी के भारतीय राजनीति में आने के मायने’’ तलाश करने की कोशिश में अपने सम्पादित 9 लेखों का विस्तृत आलेख पाठकों के हाथों में पहुंचाया है.
केजरीवाल एंड कम्पनी की ”अराजकता की राजनीति’’ की पोल खोलने वाले प्रसिद्ध लेखक और मासिक पत्रिका ‘संगत संसार’ और ‘नवोत्थान लेख सेवा’ के सम्पादक डॉ. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री के इन आलेखों के साथ राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास के न्यासी और हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी सहकारी संवाद समिति के केन्द्रीय मार्गदर्शक लक्ष्मीनारायण भाला के आलेखों का संयोजन संजीवनी प्रकाशन से हाल ही प्रकाशित ‘अराजकता की राजनीति’ की पुस्तक में किया गया है. लेखक-द्व ने केजरीवाल और उनकी “आम आदमी पार्टी” (आआपा) की पृष्ठभूमि और उनकी पीठ पर हाथ रखने वाली विदेशी एजेंसियों सीआईए के मंसूबों को पेश किया है. पुस्तक में ‘आआपा’ को समर्थन देने वाली कांग्रेस की पोल खोलने में भी कोताही नहीं बरती है. कांग्रेस और ‘आआपा’ के बीच की सांठ-गांठ से पर्दा उठाते हुये पुस्तक में लिखा गया है कि “भुतपूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भ्रष्टचारों का सैकड़ों पन्नों का पुलिंदा हाथ में होने की गर्जना करने वाले ने सत्तासीन होते ही उस व्यवस्था में बंधकर कहना प्रारंभ का दिया कि विरोधी दल, अर्थात “भाजपा” उन तथ्यों को विधानसभा में पेश करे. इस प्रकार कांग्रेस और ‘आआपा’ ने थूककर चाटने का घिनौना प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया.
ये आलेख दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद लिखे गये थे. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के पूर्व डीन डॉ. सुदेश कुमार गर्ग के अनुसार इन आलेखों के माध्यम से डॉ. अग्निहोत्री और लक्ष्मीनारायण भाला ने ‘आआपा’ और दिल्ली में उसकी आंशिक सफलता से दूसरे राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को सहज, प्रवाहमयी भाषा में टटोलने का प्रयास किया है. पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों के परिणाम आने के बाद लिखे गये लक्ष्मीनारायण भाला के दस आलेख पुस्तक के प्रथम भाग में ”कांग्रेस मुक्त भारत के लिये मतदाताओं की दांडी यात्रा’’ शीर्षक से शामिल हैं. विभिन्न समाचारपत्रों में प्रकाशित इन आलेखों में केजरीवाल की राजनीति और कांग्रेस के उससे संबंधों के अतिरिक्त ‘आआपा’ की बाजीगरी की पड़ताल करने की कोशिश की गई है. भाला के आलेखों में केजरीवाल और उनकी ‘आआपा’ के गठन और नाटकीय ढंग से दिल्ली राज्य की सत्ता का भार संभालने और उस भार से मुक्ति पाने की यात्रा रेखांकित की गई है, जबकि दूसरे भाग में डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने ‘आम आदमी पार्टी’ के भारतीय राजनीति में आने के मायने” खोजने की कोशिश की है. डॉ. अग्निहोत्री ने सीधी और सपाट शैली में ‘आम आदमी पार्टी’ को लेकर किये गये गलत आकलन, भाजपा को रोकने के लिये केजरीवाल को शक्तिशाली बनाने के लिये किये गये प्रयास, विदेशी पैसे का प्रभाव, सोनिया गांधी की पार्टी के हारने के बाद की वैकल्पिक व्यवस्था, अरविन्द केजरीवाल, उनके एनजीओ और फोर्ड फाउंडेशन के संबंध, नरेन्द्र मोदी का प्रभाव और सोनिया कांग्रेस के गिरते ग्राफ आदि का लेखा-जोखा देने के साथ ही केजरीवाल के शिकार करने के तरीकों को भी बताया है. पुस्तक के पुरोकथन में प्रसिद्ध पत्रकार रामबहादुर राय ने केजरीवाल और ‘आआपा’ की राजनीति का खुलासा करते हुए इस पुस्तक का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा है कि ”देश को जब नये राजनैतिक दर्शन और नेतृत्व की जरूरत है, वैसे समय में ‘आआपा’ का उदय कुहासे की राजनीति को घना करने वाला है. इसे जितना जल्दी समझा और समझाया जा सके, उतना ही देश और समाज के भले में होगा. इस पुस्तक में यही प्रयास किया गया है.”