जालंधर (विसंके).. बाबासाहेब आपटे स्मारक समिति ने यहां 16 नवंबर को भारत के सही इतिहास को प्रकाश में लाने के लिये इतिहास पुनर्लेखन और ज्ञान की समृद्ध परम्परा को पुनर्जीवित करने के संस्कृत भाषा के पठन-पाठन को व्यापक बनाने के शुभ संकल्प को फिर से दोहराया. अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष, विख्यात इतिहासकार और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व प्रमुख डा0 सतीशचंद्र मित्तल ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि इतिहास संकलन योजना के प्रयासों से देश की पाठ्य-पुस्तकों में अनेकों सुधारों को मान्यता मिली है.
उन्होंने बताया कि संघ के प्रथम प्रचारक बाबासाहेब आप्टे ने विदशियों से प्रभावित वास्तिविकता रहित और त्रुटिपूर्ण इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता रेखांकित की थी और उनकी प्रेरणा से ही 1973 में नागपुर में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की स्थापना की गई थी.
उन्होंने कहा इनमें आर्यों का विदेशों से भारत आगमन की भ्रांति को शुद्ध करते हुए यह माना गया है कि आर्य विदेश से भारत न आकर भारत से ही विश्व के दूसरे प्रदेशों में गये. विलुप्त प्राचीन सरस्वती नदी की धारा एवं उसके प्रवाह मार्ग पर शोध.कार्य चल रहा है. भारतीय कालगणना की मान्यता हेतु योजना प्रयासरत है. बाबासाहेब भारतीय संस्कृति की साकार प्रतिमा थे. उनका मानना था कि संस्कृत के माध्यम से देश की संस्कृति का ज्ञान आवश्यक है और इसी के माध्यम से हम भारत की विशाल धरोहर प्राचीनतम वेदों एवं पुराणों का अध्ययन कर सकते हैं. भारतीय पुराणों में देश की आत्मा का निवास, विपुल इतिहास संकलित है. अतएव अपेक्षा की जानी चाहिये कि संस्कृत भाषा का अध्ययन अनिवार्य हो. उनके इन्हीं विचारों को साकार करने के उद्देश्य से ‘संस्कृत भारती’ का गठन किया जो संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में निरंतर कार्यरत है.
श्री मित्तल ने कहा बाबा साहब आप्टे के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे एक कुशल सामाजिक शिल्पी थे. आज देश भर में संघ के विशाल स्वरूप के पीछे बाबासाहेब सरीखे अनेक मनीषियों का तपोबल है. उन्होंने संघ के प्रथम प्रचारक के रूप में देश भर में हज़ारों ऐसे लोग गढ़े जिन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निस्स्वार्थ भाव से अनाम रहकर राष्ट्रसेवा की. बाबासाहेब अपने प्रति अत्यंत कठोर किन्तु अन्यों के लिए अत्यंत मृदु स्वभाव के थे. बाबासाहेब के जीवन का मूल्यांकन कुछ घण्टों के अध्ययन में संभव नहीं है. इस हेतु हमें घोर तप व श्रम करना होगा. भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन एवं शोध-कार्य के लिये हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला में नेरी नामक स्थान पर विशाल शोध, केन्द्र की स्थापना की गई है.
अपने अध्यक्षीय संबोधन में गुरू रविदास आयुर्वेद विश्वविद्यालयए पंजाब के उपकुलपति डा0 ओम प्रकाश उपाध्याय ने भारतीय इतिहास पुनर्लेखन के कार्य में गति लाये जाने पर जोर दिया. उनका मानना था कि आज देश की संस्कृति के उत्थान हेतु संस्कृत भाषा की नितांत आवश्यकता है. इसीके माध्यम से हम अपने प्राचीनतम ग्रंथों एवं वेदों का अध्ययन कर सकते हैं. उन्होंने इतिहास शब्द का विश्लेषण करते हुए इसका विस्तृत विवेचन किया. उन्होंने अपना दृढ़ मत दिया कि भारतीय विचार-पद्धति व जीवन मूल्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पर आधारित हैं. अतः इनकी गणना हमारे इतिहास में भी आनी चाहिये. उन्होंने संस्कृत श्लोक को उद्धृत करते हुए बताया कि वेद का अर्थ ही ज्ञान है तथा इतिहास और पुराणों के संपर्क से ही वेद का ज्ञान प्राप्त हो सकता है. अतएव देश की युवा पीढ़ी को इतिहास से समुन्नत होना चाहिये.
बाबासाहेब आपटे स्मारक समिति (पंजाब) प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम प्रचारक, देववाणी संस्कृत के उत्थान में आजीवन समर्पित बाबासाहेब आपटे की स्मृति में वार्षिक समारोह का आयोजन करती है. इस बार यह समारोह गुरू रविदास आयुर्वेद विश्वविद्यालय, पंजाब के उपकुलपति डा0 ओम प्रकाश उपाध्याय की अध्यक्षता में स्थानीय श्री सत्यनारायण मंदिर के सभागार में सम्पन्न हुआ. समारोह में नगर के विभिन्न संस्थानों वर्गों के प्रमुख व्यक्तित्व, शिक्षा जगत की विभूतियां, राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे.
समारोह में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में कार्यरत संस्थाओं को सम्मानित करने की अपनी परम्परा अनुसार समिति द्वारा विख्यात रामानुज संस्कृत महाविद्यालयए पंजगाईं के स्वामी राममोहनदास को शाल एवं प्रशस्ति पत्र एवं रू. 51,000 की सम्मान राशि भेंट की गई. इससे पूर्व भारतीय इतिहास संकलन समिति, पंजाब के महासचिव डा0 राजेश ज्योति द्वारा संस्कृत भाषा के उत्थान में स्वामी जी के योगदान की सराहना करते हुए उनका विस्तृत परिचय दिया गया.