कल ‘भारत के विरोध में आकार ले रहे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र’ वाले आलेख को लेकर अनेक प्रतिक्रियाएं आई.
नब्बे प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने कहा, कि ‘जब सरकार को मालूम है, ये सारे लोग देश के विरोध में बोल रहे हैं, लिख रहे हैं, दुनिया के मंच पर भारत की छवि धूमिल कर रहे हैं, तो फिर सरकार इनके खिलाफ कुछ करती क्यों नहीं..? इनको जेल में डालती क्यों नहीं..?’ दो मिनट के लिए मान लें कि सरकार इनके खिलाफ कठोर कारवाई करती है, तो फिर हम में और अरब देशों में, हम में और चीन में, हम में और रशिया में क्या फर्क रहा? इन देशों में सरकारी अनुमति के बगैर कुछ भी लिखना/ बोलना/ पढ़ना गैरकानूनी है.
किन्तु हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मानने वाले, उस का सम्मान करने वाले लोग हैं. संविधान तो हमारे यहां सन 1947 से है. किन्तु ज्ञात इतिहास से, हम हमेशा से ही दूसरों के विचारों का आदर करने वाले रहे हैं. किसी समय दुनिया को दिशा देने वाले हम, श्रेष्ठ विचारों के, आदर्शों के और जीवनमूल्यों के संवाहक हैं. हमे पूर्ण विश्वास है, हमारे विचारों पर और हमारे मूल्यों पर. हम ‘वयं पंचाधिकम शतम्…’ पर विश्वास करने वाले लोग हैं. महाभारत में जब यक्षों का हमला होता है, तब पांडव कहते हैं, ‘हम पांच या कौरव सौ नहीं हैं. किसी बाहरी शक्ति के सामने हम एक सौ पांच हैं. ‘विदेशों में बाते करते समय हम पूरे एक सौ तीस करोड़ भारतीय होते हैं. नब्बे के दशक में, बाबरी ढांचे के गिरने के बाद, विदेशों में, विशेषतः मुस्लिम देशों में, भारत की धूमिल होती छवि को ठीक करने, प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने, विपक्ष के नेता अटल बिहारी बाजपेयी को उन देशों में भेजा. और अटल जी गए भी. वहाँ बड़ी मजबूती से भारत सरकार का पक्ष रखा. ये है हमारी संस्कृति. और ये गैंग? विदेशों में गलत बयानबाजी कर के भारत को नीचा दिखा रही है.
इसलिए इन बरखा दत्त, अरुंधति रॉय, सागरिका घोष, राजदीप सरदेसाई जैसे गद्दारों पर सरकारी कार्रवाई यह उत्तर नहीं हैं. इसका उत्तर समाज को देना है.
अरुंधति रॉय, जर्मनी की समाचार संस्था को नितांत झूठ बोलकर, कि ‘भारत में मोदी सरकार मुसलमानों का वंशविच्छेद (genocide) कर रही हैं’, हमारे देश की छवि विदेशों में तार-तार कर रही हैं. राणा अय्यूब और सागरिका घोष अमेरिका के समाचार पत्रों में भारत की सरकार पर मुसलमानों की हत्याओं का आरोप लगा रही हैं. ये जानते हुए भी कि भारत में तबलीगी जमात ने, कोरोना के विरोध में चल रही लड़ाई में भयंकर संकट खड़ा कर दिया है, ये गैंग पूरी दुनिया में झूठ फैला रहा है. इनको झूठ बोलना पड़ रहा है, क्योंकि इन के पास हमारे देश का विरोध करने के लिए कोई ठोस कारण ही नहीं हैं, कोई तर्क ही नहीं हैं. ये तो चीन के पैसों पर नाचने वाली कठपुतलियाँ हैं.
इसलिए समाज को आगे आना चाहिए. हमारे देश को कोई भी गालियां देगा, झूठी बातें फैलाएगा, देश में विद्रोह करने के लिए लोगों को उकसाएगा… ये नहीं चलेगा. सारे समाज ने इनका बहिष्कार करना चाहिए. संपूर्ण बहिष्कार. इनसे कोई संबंध नहीं. ध्यान रहे, ये लोग सेलिब्रिटी नहीं हैं, ये तो हमारे देश के लिए कलंक हैं. अत्यंत तिरस्करणीय व्यक्ति हैं. इसलिए चाहे बरखा दत्त हों, अरुंधति रॉय, सागरिका घोष, रविश या राजदीप सरदेसाई… इनके कोई कार्यक्रम हम न देखें. इन में से जो लोग NDTV पर आते हैं, उस चैनल को हम न देखें. इस चैनल पर जो विज्ञापन आते हैं, उन कंपनियों को हम लिखें, कि इस चैनल का हम बहिष्कार कर रहे हैं, कारण ये गैंग इस चैनल को चला रही हैं.
और इनके साथ उन तमाम लोगों का भी बहिष्कार करें, जिनको कभी भारत में रहना असुरक्षित लगता था, लेकिन आज तबलीगी करतूतों से जिनको बड़ा सुकून मिल रहा है. आज संकट की घड़ी में भी, जो ऐसी तबलीगी हरकतों पर मौन हैं… उन सभी का हम बहिष्कार करें…!
ऐसे ‘वैचारिक देशद्रोहियों’ के विरोध में ‘सामाजिक बहिष्कार’ यह अत्यंत पैना हथियार है. इसका उपयोग अवश्य करें.