नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने विश्व के जीवन में से विभिन्न प्रकार के कष्टों के संपूर्ण निवारण के लिये विगत दो हजार वर्ष से चल रहे समस्त प्रयोगों की विफलता का कारण पुरानी, एकांतिक जड़वादी, उपभोग आधारित व स्वार्थ-प्रेरित विचारधारा बताते हुए स्वयं के अंदर से स्वार्थ, भय एवं निपट भौतिक जड़वादिता को पूरी तरह समाप्त कर एक साथ सबके सुख का विचार करने वाली एकात्म व समग्र दृष्टि अपनाने का आह्वान किया है.
शुक्रवार, 3 अक्तूबर को यहां रेशमबाग मैदान में श्री विजयादशमी उत्सव 2014 पर संघ के पारंपरिक वार्षिक उद्बोधन में परमपूज्य सरसंघचालक ने कहा कि “ सब प्रकार के प्रयोग गत दो हजार वर्षों में कर लेने के बाद में भी वही समस्यायें बार-बार खड़ी हो रही हैं तथा मनुष्य की इस तथाकथित प्रगति ने कुछ नई दुर्लंघ्य समस्यायें और खड़ी कर दी हैं. आधुनिक मानवजाति के जानकारी, शास्त्रज्ञान, तंत्रज्ञान व सुख-सुविधाओं में पहले से कहीं अधिक प्रगत होने के बावजूद ऐसा हो रहा है.
उन्होंने कहा कि एकांतिक सामूहिक स्वार्थों के कारण शोषण, दमन, हिंसा व कट्टरता का जन्म होता है. ऐसे ही स्वार्थों के चलते मध्यपूर्व में पश्चिमी देशों के जो क्रियाकलाप चले, उनमें से कट्टरतावाद का नया अवतार आईएसआईएस सारी दुनिया को आतंकित कर रहा है. विश्व के सभी देश तथा अनेक पंथ-संप्रदायों के समूह इस संकट के विरोध में एक सामूहिक शक्ति खड़ी करने की मनःस्थिति में हैं और वैसा करेंगे भी, परंतु बार-बार रूप बदलकर आने वाला यह आतंकवाद जिन एकांतिक प्रवृत्तियों व भोगलालसी स्वार्थों की क्रिया-प्रतिक्रिया के चक्र में से जन्मा है, उस चक्र की गति को मूल से खंडित कर समाप्त किये बिना विश्व में सदियों से चलती आयी हुई आतंकवाद की संकट परंपरा जड़मूल से समाप्त नहीं होगी.
उन्होंने कहा, “एक वर्ष के पश्चात् फिरसे हम सब विजयादशमी के पुण्यपर्व पर यहाँ एकत्रित हैं, परंतु इस वर्ष का वातावरण भिन्न है यह अनुभव हम सभी को होता है. भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा पहिले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में यान का सफल प्रवेश करा कर हमारे संबंध में विश्व में गौरव तथा भारतीयों के मन में आत्मविश्वास की वृद्धि में चार चाँद जोड़ दिये गये हैं.”
परमपूज्य सरसंघचालक ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि भारत अब विश्वगुरुत्व के कगार पर खड़ा है, उस दिशा में कुछ पग बढ़ाना पर्याप्त नहीं है. हम सबको एक साथ एक दिशा में चलना होगा, तभी हम विश्व गुरु का स्थान प्राप्त कर सकते हैं.
संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ दिन पूर्व ही समाज ने देश के सत्ता तंत्र में एक बड़ा परिवर्तन किया है. सरकार द्वारा अल्प समय में आर्थिक सुरक्षा, सीमा सुरक्षा और विश्व नीति के संदर्भ में जो कार्य किये गये हैं, उसे देखकर लग रहा है कि जिन उम्मीदों और आकांक्षाओं को साकार करने के लिये राष्ट्र ने उन्हें चुना है, उन्हें पूर्ण करने में यह सरकार सफल होगी.
उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आयी बाढ़ पर कन्द्र सरकार की तत्परता और राहत पहुंचाने के लिये उसके द्वारा उठाये गये कदमों की सराहना की. जम्मू-कश्मीर की आपदा पर केन्द्र सरकार, संघ के स्वयंसेवकों और अन्य सामाजिक संगठनों की तत्परता पर संघ प्रमुख ने कहा कि ऐसे संकट के समय सब प्रकार के भेदों से ऊपर उठकर सहायता के लिये सबका साथ आना यह भारतीय समाज की सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय एकता को दर्शाता है.
डा. भागवत ने यह भी कहा कि हर समस्या के हल के लिये सिर्फ सत्ता और सरकार के भरोसे नहीं रहा जा सकता. देश को सावधान करते हुए उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के नाते खड़े होने के लिये समाज में आवश्यक प्रामाणिकता व समरस आत्मीयता आवश्यक है, जिसका क्षरण जारी है. इतना ही नहीं, समाज में पारस्परिक विघटन वं ईर्ष्या फैलाने वालीं विदेशी शक्तियां भी सक्रिय हैं, जिन्हें रोकने के लिये समाज के हर वर्ग को सजग और सक्षम होना पड़ेगा.
परमपूज्य ने स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद, स्वामी रामतीर्थ, तिलक,बोस, सावरकर, अम्बेडकर, संघ के व्दितीय सरसंघचालक रहे श्री गुरु जी का स्मरण करते हुये कहा कि इन महापुरुषों ने देश की शिक्षा, संस्कार, अर्थनीति, समाजनीति, सुरक्षानीति के बारे में जो गहन, समग्र, मूलगामी और व्यावहारिक चिंतन किया है, उसको आत्मसात करते हुये नया कालसुसंगत विकासपथ देश के तंत्र में स्थापित करना होगा. देश की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम मनुष्य के जीवन की स्थिति ही इस देश के विकास की निर्णायक कसौटी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि देश की आत्मनिर्भरता ही देश की सुरक्षा और समृद्धि का अनिवार्य घटक होगी.
संघ प्रमुख ने कहा कि संसार के उन्नत देश इस बात के साक्षी हैं कि बिना जगत के सहभागी हुए कोई भी देश सिर्फ सरकार के बल पर आगे नहीं बढ़ सकता. समाज के सक्रिय और जागरूक रहने से ही सरकार की नीतियों को सफल बनाने में सहयोग मिलता है. उन्होंने यह भी कहा कि देश के दक्षिणी भाग में स्थित केरल और तमिलनाडु में जिहादी गतिविधियों में दिखाई दे रही चिंताजनक वृद्धि को रोकने में राज्य सरकारें गंभीर नहीं दिखाई दे रही हैं. साथ ही, दक्षिणी सागर तट से खनिजों की तस्करी हो रही है. पश्चिम बंगाल और असम में घुसपैठ जारी है. राज्य सरकार की लापरवाही के चलते देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है. इस दिशा में केन्द्र और राज्य सरकार को बहुत कुछ करना बाकी है.
परमपूज्य ने कहा कि समाज में चलने वाला संवाद शासन और सेना का बल बढ़ाने वाला होना चाहिये. देश की सेना में अफसरों की भारी कमी है, जबकि हमारे देश में योग्य युवकों की भरमार है. उन्होंने मांस के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि कि गौमांस का निर्यात इस देश में पूरी तरह बंद होना चाहिये. समाज से भेदभाव दूर करने पर जोर देते हुये परम पूज्य सरसंघचालक ने कहा कि भेदभाव दूर करने का कार्य बहुत अधिक प्रमाण में और बहुत अधिक गति से होने की आवश्यकता है. मन से भेद निकालने का काम शासन नहीं कर सकता. इसे तो समाज में जागरूकता लाकर ही किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि शिक्षा सर्वसुलभ, संस्कार प्रदान करने वाली, जीवनसंघर्ष में स्वाभिमान से खड़ा कर सकने का साहस एवं सामर्थ्य दोनों ही देने वाली होनी चाहिये.
समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में साधु वासवानी मिशन के अध्यक्ष दादा वासवानी जी को आमंत्रित किया गया था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से के चलते वे यहां नहीं आ सके. उनका संक्षिप्त भाषण उन्हीं की वाणी से ध्वनिमुद्रित कर समारोह स्थल पर सुनाया गया. विस्तृत भाषण सबके समक्ष पढ़ा गया.