नई दिल्ली. ‘एकात्म मानववाद – नव उदारवाद का प्रत्युत्तर’ विषयक संगोष्ठी की सभी वक्तृताओं का स्वर यही था कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने उत्कृष्टतम भारतीय मनीषा में छिपे समूचे विश्व के लिये कल्याणकारी एकात्म मानव दर्शन को ढूंढ निकाला और अब इसके अनुसार राष्ट्र जीवन का निर्माण आज की सबसे बड़ी चुनौती है.
भारत नीति प्रतिष्ठान ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में भारतीय जनसंघ के विख्यात विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 98वें जन्मदिन पर 25 सितम्बर को दिन भर की गोष्ठी का आयोजन किया. इस संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक राकेश सिन्हा ने कहा कि व्यक्तिवाद, उदारवाद, पूंजीवाद और साम्यवाद सब पश्चिम की अवधारणायें हैं जो अभी भी भारत के मन-मस्तिष्क पर छायी हुयी हैं. इस वजह से देश का एक बड़ा वर्ग किसी भी सही चर्चा से दूर है. नव उदारवाद, जिसका जन्म उदारवाद और पूंजीवाद से हुआ है, एक ऐसे नवजात बच्ची की तरह है, जो गर्भ के साथ पैदा हुई है. उस दृष्टि से पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद संपूर्ण विचार के साथ हमारी पुरातन बुद्धिमत्ता है, लेकिन सभी आधुनिक बातों का जवाब इसमें निहित है.
पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने पश्चिमी विचारधारा को खाँचो में बंटा हुआ बताया. उन्होंने आज की समस्यायों के लिये परिवार के विघटन को जिम्मेदार बताया जो जलवायु परिवर्तन से लेकर, आर्थिक संकट तक के लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद ही भारत की सार्वभौमिक विचारधारा है. यही वसुधैव कुटुम्बकम है और यही सर्वे भवन्तु सुखिनः की बात है.
एक अन्य विद्वान डॉ गौतम सेन ने कहा कि एकात्म मानववाद आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद की परंपरा पर आधारित है. उन्होंने कहा की एकात्म मानववाद भारत के मूल्य आधारित नियमों पर आधारित है. वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय ने भारत में एक वैकल्पिक राजनितिक व्यस्था की बात कही क्योंकि पश्चिमी विचारधारा किसी न किसी रूप में उपभोक्तावाद का एक या दूसरा पक्ष है. ये लोगों की परेशानियों के निदान में पूरी तरह से असफल रहे हैं. दूसरी ओर एकात्म मानववाद के पास उपभोक्तावाद से पैदा हुई समस्याओं का समाधान है.
प्रसिद्ध टेलीविजन पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने कहा कि एक के बाद एक सरकारें जनता की किसी भी समस्याओं का समाधान करने में विफल रहीं हैं. इतना ही नहीं, 1991 के उदारीकरण के बाद राजनीतिक वर्ग की पकड़ भी कमजोर हुई है और ये लोग पूंजीपतियों के गुलाम बन कर कर रह गये हैं, क्योंकि पूंजीपतियों का कोई देश नहीं होता और ये लोग सिर्फ फायदे और नुकसान के बारे में सोचते है. विख्यात शिक्षाविद् प्रो. अशोक मोदक ने जोर देकर कहा कि पूरे विकास के परिदृश्य को राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत करने की सख्त जरूरत है. मराठी साप्ताहिक विवेक के पूर्व संपादक रमेश पतंगे ने राष्ट्रवाद को सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत पर जोर दिया जो सिर्फ एकात्म मानववाद में निहित है. प्रो राजकुमार भाटिया, अध्यक्ष, एन डी टी एफ ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा के साथ न्याय नहीं हुआ.
श्री पुष्पेश पंत ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर इस विचारधारा को पूरी तरह से नष्ट किये जाने का खतरा बढ़ जायेगा. उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होने पर ही भारत में एकात्म मानव दर्शन को व्यावहारिक बनाया जा सकता है.
ऑर्गनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि वामपंथी या दक्षिणपंथी विचारधारा का कभी कोई महत्व नहीं रहा है. पश्चिम के विचारक हमेशा विघटनकारी आधार से ही सिद्धांत का प्रतिपादन करते रहे हैं, जबकि भारत की विचारधारा लोगो को जोड़ती है. एकात्म मानववाद यही है. आर्थिक विचारक गोपाल अग्रवाल ने पश्चिमी विचारधारा जैसे मुक्त बाजर और पूंजीवाद को थोपा हुआ बताया.
जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि उपनिवेशवाद की मानसिकता राजा राम से शुरू होकर जवाहरलाल नेहरू से आगे तक जाती है. यदि भारत को विकास पथ पर अग्रसर करना है तो इस बंधन को तोड़ना होगा.
इस अवसर पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पुनर्प्रकाशित उपन्यास ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ लोकार्पण भी किया गया. इस कार्यक्रम में लगभग 500 लोगों ने हिस्सेदारी की.