भारत के प्राचीन ग्रंथों और आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री अमरनाथ धाम की पवित्र गुफा सम्पूर्ण सृष्टि के आद्य और आराध्य देव भगवान शिव शंकर का निवास है. इस पवित्र गुफा में प्राकृतिक रूप से बनने वाले बर्फ के शिवलिंग में स्वयं भगवान शंकर विराजमान होते हैं, अतः यह अमरनाथ धाम सृष्टि के आदिकाल से ही सम्पूर्ण मानव समाज का आस्था स्थल रहा है.
जब मानव का अस्तित्व हिन्दू, मुसलमान और ईसाई इत्यादि वर्गों में विभाजित नहीं था, तभी से इस धाम का आध्यात्मिक महत्व चला आ रहा है. इसलिए यह अमरनाथ धाम भी जाति, पंथ और क्षेत्र की संकीर्ण दीवारों से दूर सम्पूर्ण जगत से सम्बन्धित है. श्रीनगर के पूर्व में लगभग 140 कि.मी. की दूरी पर स्थित अमरनाथ धाम की पवित्र गुफा लगभग 15000 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है.
50 फीट लम्बी और 25 फीट चौड़ी इस गुफा और तीर्थयात्रा का वर्णन 5 हजार वर्ष पुराने नीलमत पुराण में भी मिलता है. विश्व प्रसिद्ध कश्मीरी इतिहासकार कल्हण ने 12वीं सदी में अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में इसका वर्णन किया है. आइना-ए-अकबर में अबुल फजल ने तथा प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक वाल्टयर लॉरेंस ने भी अपने ग्रंथ ‘द वैली ऑफ कश्मीर’ में इसकी चर्चा की है.
इस स्थान की महानता का पता इसी बात से चलता है कि सुदूर केरल निवासी आदि शंकराचार्य ने यहां पहुंच कर शिवलिंग की पूजा की थी. उनकी स्मृति में श्रीनगर स्थित शंकराचार्य पर्वत पर शंकराचार्य मंदिर भी है. (दुर्भाग्य से कट्टरपंथियों ने इस शंकराचार्य पर्वत का नाम ‘तख्त-ए-सुलेमान हिल’ कर दिया है)
स्वामी रामतीर्थ, स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द यहां पूजा करने आ चुके हैं. भगिनी निवेदिता जो सन् 1898 में स्वामी विवेकानन्द के साथ यहां दर्शनार्थ आईं थीं, उन्होंने भी अपने एक संस्मरण में इस स्थान की पवित्रता, स्नेहिल वातावरण और शांत वादियों का वर्णन किया है.
इस स्थान के अस्तित्व में आने के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव ने अमरनाथ धाम की कथा माता पार्वती को सुनाई थी. इसका रोचक वर्णन मिलता है. देवर्षि नारद ने माँ पार्वती से कहा कि शिव से पूछो कि उनके गले में मुंडमाला का रहस्य क्या है? तब माँ पार्वती के आग्रह पर भोले बाबा ने बताया कि इस माला में तुम्हारे अलग-अलग जन्मों के मुंड हैं. तब माँ पार्वती को अहसास हुआ कि वह भी जन्म मृत्यु के बंधन में है. माँ द्वारा तब अमृत्व के लिए बार-बार आग्रह करने पर भोले शंकर ने अमरनाथ धाम की कथा सुनाना मान लिया.
परन्तु इससे पूर्व भगवान शंकर ने एक गणसेवक प्रकट किया और उसे आज्ञा दी कि आसपास के सारे झाड़ी जंगल जलाकर साफ कर दें, ताकि इस कथा को हम दोनों के अतिरिक्त कोई दूसरा सुन न सके. आज्ञा पाकर गणसेवक ने चारों ओर सफाई कर दी. परन्तु भोले बाबा की मृगचर्म वाली गद्दी के नीचे पड़ा हुआ एक तोते का अंडा उन्हें दिखाई न दिया. भगवान शंकर ने माता पार्वती को कथा सुनानी प्रारम्भ की. कुछ समय तक कथा के बीच में हां-हां कहती माता पार्वती सो गईं, परन्तु भोले बाबा इससे अनभिज्ञ हो कथा सुनाते रहे. इसी बीच अंडा फूट गया और उसमें से उत्पन्न तोता माँ पार्वती के स्थान पर हां-हां करता रहा. इस तरह वह अंडा भी अमरपद को प्राप्त हो गया. महर्षि शुकदेव के रूप में उसे भोले शंकर की कृपा से चारों वेद और 18 पुराणों का ज्ञान प्राप्त हो गया.
ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को बताया जा रहा सृष्टि के निर्माण और विनाश का रहस्य कबूतरों के एक जोड़े ने भी सुन लिया. यह दोनों कबूतर भी अमर हो गए. कहते हैं कि यह कबूतर आज भी बर्फानी शिवलिंग के दर्शन करने प्रत्येक वर्ष आते हैं. कई यात्रियों ने इन्हें देखा भी है.
अमरनाथ यात्रा श्रीनगर से 96 कि.मी. दूर पहलगाम से शुरु होती है. यहां सुन्दर पर्वत श्रृंखलाएं और घने जंगल यात्रियों के मन को मोह लेते हैं. पहलगाम से पवित्र गुफा 46 कि.मी. की दूरी पर है. हालांकि वाहन मार्ग चंदनबाड़ी तक ही है, जो पहलगाम से उत्तर दिशा की ओर 16 कि.मी. की दूरी पर है. चंदनबाड़ी में रात्रि बिताकर लोग आगे बढ़ते हैं. कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने अपनी जटाओं को चंदन से मुक्त किया था, इसलिए इस स्थान का नाम चंदनबाड़ी है. यहां लोग छड़ियां तम्बू किराए पर लेते हैं. यहां की ऊंचाई 7800 फीट है.
यात्रियों का अगला पड़ाव पिस्सू टॉप है. मान्यता के अनुसार देवता लोगों की प्रार्थना पर उन्हें तंग कर रहे दानवों को भोले शंकर ने बुरी तरह से पीस कर रख दिया था. उसी स्मृति में इसे पिस्सू टॉप कहा जाता है. प्रसिद्ध लिद्दर नदी भी इस यात्रा मार्ग के साथ-साथ बहती है. यात्रियों का तीसरा पड़ाव 11 हजार फीट ऊंची शेषनाग की पहाड़ी है. यहां के बारे में प्रसिद्ध है कि भगवान शिव ने अपने शेषनागों की माला को उतारकर तालाब पर रख दिया था तथा मालाओं को यहीं छोड़ दिया.
कुछ दूर जाकर भगवान शिव ने अपने प्रिय पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया. इसी स्थान का नाम गणेश पर्वत है. जिसे कश्मीरी भाषा में महामानुष कहते हैं. आगे चलकर यात्रा पंचतरणी पहुंचती है. इसके बारे में भी मान्यता है कि यहां भोले बाबा और माता पार्वती ने तांडव नृत्य किया था. यहीं पर भगवान शिव की जटाओं से गंगा की पांच धाराएं फूटी थीं. यहां सभी यात्री स्नान करके तरोताजा होकर उत्साहपूर्वक चलते हुए तीन-चार घंटों में अमरनाथ धाम की गुफा में पहुंचकर बाबा बर्फानी के दर्शन करते हैं.
रक्षा बंधन से एक सप्ताह पूर्व श्रीनगर के दशनामी अखाड़े से पवित्र छड़ी मुबारक यात्रा अखाड़े के महंत स्वामी जितेन्द्र गिरी जी महाराज के नेतृत्व में प्रारम्भ होती है, इसी दिन श्रीनगर स्थित शंकराचार्य मंदिर में पूजा अर्चना के बाद यह यात्रा अपने अगले पड़ावों के लिए चलती है. छड़ी यात्रा के साथ हजारों साधु और श्रद्धालु शिवशंकर की जय के उद्घोष करते हुए अमरनाथ धाम की ओर पैदल बढ़ते हैं.
यह छड़ी मुबारक यात्रा मुख्य अमरनाथ यात्रा के सभी पड़ावों पर एक-एक रात्रि रुकती है और वहां पूजा अर्चना के बाद आगे बढ़ती हुई रक्षा बंधन के दिन पवित्र गुफा में पहुंचती है. वहां प्राकृतिक रूप से बने बर्फानी शिवलिंग के पास शिवशक्ति की प्रतीक इस छड़ी को बाकायदा वेदमंत्रों और शिव स्तुति के साथ स्थापित किया जाता है. इसी समय महन्त दीपेन्द्र गिरी सभी साधुओं और श्रद्धालुओं के साथ छड़ी और शिवलिंग की पूजा करते हैं. इस पूजन के बाद अमरनाथ यात्रा सम्पन्न मानी जाती है.
- नरेंद्र सहगल