करंट टॉपिक्स

कर्तव्यों के प्रति सजग होने पर ही अधिकारों की रक्षा : होसबाले

Spread the love

photo-1गोरखपुर. व्यक्ति के चरित्र से ही राष्ट्र के चरित्र का निर्माण होता है. मातृभूमि के प्रति समर्पण भाव का जागरण राष्ट्र की संकल्पना का आधार तत्व है. हमारे अधिकारों की रक्षा तभी संभव है, जब कर्तव्यों के प्रति सजग आचरण हो. ऐसे में समेकित विकास के लिये भारतीय पुरुषार्थ के चार सूत्र धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष स्वयं में एक संदेश देते हैं. यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने व्यक्त किये. वे विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में विश्व संवाद केंद्र व प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित ‘एकात्म मानव दर्शन और उसकी प्रासंगिकता’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आर्थिक चरित्र की रूपरेखा राष्ट्रीय जीवन के अनुकूल होनी चाहिये. वर्तमान युग भोगवाद की पीड़ा से ग्रस्त है. जहां केवल अर्थमूलक समाज की कल्पना हावी हो रही है जो व्यापक स्तर पर अमानवीय संघर्षो और शक्ति के दुरुपयोग की कहानी कह रही है. मानव शरीर, मन,बुद्धि और आत्मा का समुच्चय है. ऐसे में उसके सर्वांगीण विकास के लिये एकांगी नहीं समेकित दृष्टि की आवश्यकता है. होसबाले जी ने कहा कि एकात्म मानव दर्शन व्यष्टि से समष्टि में समरसता तथा समन्वय का क्रियान्वयन करता है. त्यागपूर्ण उपभोग की ईशावास्योपनिषद की अवधारणा को धारण करने वाली अर्थव्यवस्था से ही राष्ट्र का कल्याण संभव है और ऐसी अर्थव्यवस्था विकास की वर्तमान अपेक्षाओं की अभिपूर्ति का मार्ग है. एकात्म मानव दर्शन कर्मप्रधान पुरुषार्थ पर बल देता है जो कि त्याग व तपोमयी आचरण पद्धति की सांस्कृतिक विरासत धारण करता है. अंत्योदय तभी संभव है, जब राष्ट्रीय चरित्र की रूपरेखा भोगमयी न होकर योगमयी यानी त्याग की भावना से परिपूर्ण और विकेंद्रित हो.

photo-2 photo-4

विशिष्ट अतिथि पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि एकात्म मानव दर्शन का प्रतिपादन पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने ग्वालियर में हुए जनसंघ अधिवेशन में किया था. भय, भूख और भ्रष्टाचार से ग्रस्त मानवता को एकात्म दर्शन की आज महती आवश्यकता है. प्रो. विनोद सोलंकी ने कहा कि एकात्म मानव दर्शन एक गहन अनुभूति का दर्शन है जो संतुलित विकास के लिये अपरिहार्य है. इसके पूर्व विश्व संवाद केंद्र की वार्षिक पत्रिका ‘पूर्वा संवाद’ तथा जागरण पत्रिका ‘ध्येय मार्ग’ का लोकार्पण भी हुआ. कार्यक्रम का संचालन डॉ. ओम उपाध्याय तथा आभार ज्ञापन प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने किया. प्रश्नोत्तर सत्र में संघ के सह सरकार्यवाह ने भारत को विभिन्न धर्मों का समुच्चय बताते हुए यहां की विविधता में एकता की विशेषता को विशेषत: रेखांकित किया.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *