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कारगिल युद्ध के महानायक कैप्टन हनीफुद्दीन

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पुण्य स्मरण

06 जून को कारगिल युद्ध के महानायक कैप्टन हनीफुद्दीन की 20वीं पुण्यतिथि है. कारगिल युद्ध के शुरूआती दिनों में जिन शूरवीरों ने सबसे अदम्य साहस का परिचय दिया, उसमें कैप्टन हनीफुद्दीन का नाम सबसे ऊपर है.

 ऑपरेशन थंडरबोल्ट

कारगिल युद्ध के प्रारंभिक दिन थे. उस वक्त पाकिस्तान से आए घुसपैठियों के बारे में कम जानकारी उपलब्ध थी. 06 जून 1999 को लद्दाख के तुरतुक एरिया में 18000 फीट की ऊंचाई पर ऑपरेशन थंडरबॉल्ट शुरू हुआ. इस ऑपरेशन के लिए 11वीं राजपुताना राइफल्स की एक टुकड़ी तैनात की गई थी. जिससे क्षेत्र में भारतीय सेना की पकड़ मजबूत हो सके. आर्मी को दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी करने में सहायता मिल सके. इस पूरे ऑपरेशन को कैप्टन हनीफुद्दीन ने लीड किया. कैप्टन ने एक जूनियर कमीशन अधिकारी और 3 अन्य रैंक के अधिकारियों के साथ ऑपरेशन शुरू किया. उन्होंने 04 और 05 जून की दरिम्यानी रात को अहम कदम उठाते हुए पास की जगहों को दुश्मन सैनिकों से मुक्त करा लिया. कैप्टन हनीफुद्दीन अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहे थे. 18,500 फीट की उंचाई और माइनस में तापमान भी उनके साहस को डिगा नहीं पाया. इसी बीच दुश्मन ने कैप्टन हनीफुद्दीन की गतिविधियों को समझ लिया और अचानक गोलीबारी शुरू कर दी.

गोला बारूद खत्म होने के बाद भी किया मुकाबला

बर्फ से ढकी चोटियों पर दुश्मन को मार गिराने के लिए हनीफ तोपों की गोलाबारी के बावजूद आगे बढ़ते रहे. गोलाबारूद खत्म होने बावजूद हनीफ आखिरी दम तक दुश्मन से संघर्ष करते रहे. कैप्टन समझ गए कि दुश्मन की तादाद ज्यादा और उनकी टीम छोटी है. यहां सिर्फ मातृभूमि के प्रति अमर अनुराग ही काम आ सकता है और हुआ भी वही. कैप्टन ने अपने साथियों की चिंता की और उनको सुरक्षित जगह पर निकालने के लिए दुश्मन का ध्यान भटकाया. शत्रु उन पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगे. इस बीच कैप्टन हनीफुद्दीन अपना सबसे बड़ा बलिदान देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन अपने प्राण न्यौछावर कर साथियों की जान बचाने में कामयाब रहे. जिस पोस्ट को वो हासिल करने के लिए गए थे, उससे 200 मीटर की दूरी पर उन्होंने शहादत को गले लगाया.

 कैप्टन हनीफुद्दीन का जीवन-परिचय

देश की राजधानी दिल्ली के रहने वाले हनीफुद्दीन का जन्म 23 अगस्त 1974 को हुआ था. 08 साल की कम उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया. हनीफुद्दीन के नफीस और समीर दो भाई थे. उनकी मां हेमा अज़ीज़ एक शास्त्रीय संगीत गायिका हैं और उन्होंने दिल्ली में संगीत नाटक एकेडमी और कथक केन्द्र के लिए भी काम किया था.

गायक भी थे कैप्टन हनीफुद्दीन

राजधानी दिल्ली के शिवाजी कॉलेज से स्नातक करने वाले हनीफुद्दीन एक अच्छे गायक भी थे. यह गुण उन्हें अपनी मां से विरासत में मिला था. कॉलेज के दिनों में हनीफ अपने दोस्तों के बीच काफी मशहूर थे. हनीफुद्दीन छात्र जीवन से ही बहुत खुश मिजाज इंसान थे. भारतीय सेना में जाने के बाद अक्सर वे अपने सैनिक साथियों का गाकर हौंसला बढ़ाते थे. वे हमेशा अपना म्यूजिक सिस्टम अपने साथ रखते थे. संगीत का शौक उन्हें दूसरे साथी सैनिकों से अलग भी करता था.

 गायकी नहीं, करनी थी मातृभूमि की सेवा

शिवाजी कॉलेज से स्नातक करने के बाद हनीफुद्दीन बाकी सभी नौकरियों को छोड़कर सेना में भर्ती की तैयारी में जुट गए. बिना किसी मार्गदर्शन के उन्होंने परीक्षा पास की और ट्रेनिंग में भी अच्छे अफसरों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए. 07 जून, 1997 को उन्हें राजपुताना राइफल्स की 11वीं बटालियन सियाचिन में कमीशन किया गया. बाद में, कारगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन को लद्दाख के तुरतुक में तैनात किया गया था.

वीर चक्र से सम्मानित

कैप्टन हनीफुद्दीन को इस अदम्य साहस के लिए भारत सरकार ने वीर चक्र से सम्मानित किया. ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ के बीज मंत्र को कैप्टन हनीफुद्दीन ने पूरी तरह चरितार्थ किया. कारगिल युद्ध के 20 बरस बाद आज हम सबके बीच में कैप्टन हनीफुद्दीन नहीं हैं, लेकिन उनके घर में उनके मेडल और सम्मान से सजा पूरा कमरा है जो उनकी शौर्य गाथा का बखान करता है. उनकी वीरता के किस्से अभी भी जीवित हैं.

दिल्ली के मयूर विहार में कैप्टन हनीफुद्दीन मार्ग

राजधानी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में एक सड़क का नाम उनके सम्मान में कैप्टन हनीफुद्दीन रखा गया है. कैप्टन हनीफुद्दीन राजपूताना राइफल्स के अफसर बनने से पहले मयूर विहार में ही पले बढ़े थे. कैप्टन हनीफुद्दीन के नाम पर मयूर विहार में एक सरकारी स्कूल भी है.

कैप्टन हनीफुद्दीन के नाम पर पड़ा सब-सेक्टर का नाम

सेना ने उनके सम्मान में तुरतुक का नाम हनीफुद्दीन सब सेक्टर रखा है. हनीफुद्दीन उसी दिन वीरगति को प्राप्त हुए जिस दिन दो साल पहले उन्हें सेना में कमीशन मिला था. ‘एक पल में है सच सारी ज़िन्दगी का, इस पल में जी लो यारों, यहां कल है किसने देखा ये पंक्तियां हनीफुद्दीन के छोटे भाई समीर ने लिखी थीं और अक्सर हनीफ इन्हें गुनगुनाते थे. लेकिन ये चंद शब्द हनीफुद्दीन के जीवन की सच्चाई बन गए. पूरा देश कारगिल के इस महानायक को आज याद कर रहा है, उन्हें नमन कर रहा है.

बृजेश द्विवेदी

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