देहरादून (विसंके). मायके की सीमा पार कर नंदा 25 अगस्त को ससुराल क्षेत्र के पहले रात्रि पड़ाव कुलसारी पहुंची. दर्जनों युवतियों और महिलाओं पर देवी अवतरित हुईं. उन्होंने देव छंतोलियों को केवर गधेरे पर बना पुल पार करने से रोका. नंदा के साथ क्षेत्र की महिलायें भी दहाड़ें मारकर रो पड़ीं. महिलाओं ने मंगल गीत गाकर कैलाश के लिये विदा भी किया. चांदपुर, श्रीगुर पट्टी की दर्जनों छंतोलियों और हजारों श्रद्धालुओं ने मां नंदा को ससुराल क्षेत्र की सीमा में प्रवेश कराया. मां नंदा के मायके क्षेत्र से विदाई और अपनों से बिछुडकर रोने का दृश्य मौजूद सभी श्रद्धालुओं को द्रवित कर गया.
सुबह भगोती के केदारू देवता नंदा से मिलने प्राचीन मंदिर में पहुंचे. मां नंदा और केदारू देवता के मिलन को देखने के लिये आस-पास के गांवों से हजारों लोग मंदिर में पहुंचे. यहां से विदा लेकर नंदा केवर गांव के लिये रवाना हुईं. केवर गांव में पूजा अर्चना के बाद नंदा केवर गधेरे में पहुंची. मान्यता है कि प्राचीन समय में केवर क्षेत्र में केले के बागवान (बड़ा बागीचा) हुआ करता था. नंदा जब अपने पति शिव के साथ ससुराल जा रहीं थीं, तो यहां पहुंचकर वह केले के पेड़ों के बीच छुप गई. नंदा बार-बार लौटकर केले के पेड़ों के बीच छिप जातीं. तभी से इस स्थान का नाम केवर पड़ा. तभी से केवर गधेरे को पार करने के दौरान नंदा कई बार वापस मायके की ओर लौटती हैं. महिलाओं के शरीर में अवतरित होकर नंदा देव छंतोलियों और अन्य श्रद्धालुओं को भी गधेरा पार करने से रोकती हैं. तब गांव की महिलायें और नंदा के भाई उन्हें समझा-बुझाकर कैलाश के लिये विदा करते हैं.
नंदा के मायके की ओर जाने और बार-बार लौटकर अपनों से लिपटकर रोने का दृश्य बेहद भावुक करने वाला होता है. सगे-संबंधियों, सखी-सहेलियों और भाई-बहनों को छोड़कर ससुराल जा रहीं नंदा भी खुद को रोने से नहीं रोक पातीं. यहां से पंती, मींग गधेरा, हरमनी, मलतुरा होते हुए यात्रा सातवें रात्रि पड़ाव कुलसारी पहुंची. जहां से बुटोला थोकदारों और सयानों ने यात्रा का आगवानी की. कुलसारी में सुबह से ही नंदा के स्वागत की तैयारियां की गईं. देर शाम श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा के साथ यात्रा का स्वागत किया. कुलसारी सिद्ध पीठ में नंदा के काली स्वरूप की पूजा होती है. देर रात तक श्रद्धालु नंदा की पूजा-अर्चना में जुटे रहे. सोमवार को यात्रा आठवें रात्रि पड़ाव चेपड़ा के लिये रवाना हुई. इस दौरान थराली में विशाल मेला आयोजित किया गया.