धर्मशाला (विसंकें). तिब्बतियन पद्धति से कैंसर का इलाज करने वाले पद्मश्री डॉ. यशी ढोडेन का मैक्लोडगंज स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. 92 वर्षीय डॉ. यश पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे. तिब्बतियन डॉ. यशी ढोडेन बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा के निजी चिकित्सक भी रहे. उनके निधन से जहां तिब्बती समुदाय में शोक की लहर है, वहीं जिन कैंसर के मरीजों को डॉ. यशी के इलाज ने नया जीवन दिया, उनकी आंखें भी नम हैं.
डॉ. ढोडेन के परिवार के सदस्य लोबसांग त्सेरिंग ने बताया कि शुक्रवार 29 नवंबर को उनका संस्कार मैक्लोडगंज में किया जाएगा. दो दिन तक उनकी देह की तिब्बतियन परंपरा के अनुसार पूजा होगी. डॉ. यशी कैंसर के अलावा ट्यूमर, एड्स, सुराइसिस, हेपेटाइटिस आदि गंभीर रोगों का भी इलाज करते थे. उनके क्लीनिक में लोग देश-विदेश से पंहुचते थे.
डॉ. यशी का जन्म तिब्बत के लोका क्षेत्र में 15 मई, 1927 को हुआ था. उनका परिवार तिब्बत की चिकित्सा पद्धति के लिए प्रसिद्ध रहा है. 11 वर्ष की आयु में उन्होंने चाकपोरी इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतन मेडिसिन ल्हासा में दाखिला लिया. नौ वर्ष तक आयुर्वेदिक दवाओं पर अध्ययन किया. 1959 में वह दलाईलामा के साथ भारत आए. डॉ. यशी ने 23 मार्च, 1961 को तिब्बत से भारत में शरणार्थी के रूप में आकर धर्मशाला में तिब्बती चिकित्सा पद्धति की नींव रखी. उन्होंने धर्मशाला में तिब्बतियन मेडिकल एंड एस्ट्रो इंस्टीट्यूट की स्थापना कर तिब्बतियन चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाया. वह वर्ष 1980 तक दलाईलामा के निजी चिकित्सक के रूप में कार्यरत रहे. उन्होंने 01 अप्रैल, 2019 को आधिकारिक तौर से चिकित्सा पद्धति से संन्यास ले लिया था.
तिब्बती चिकित्सा पद्धति में बेहतरीन कार्य के लिए उन्हें 20 मार्च, 2018 को राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया था. निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. लोबसंग सांग्ये ने डॉ. यशी ढोडेन के निधन को अपूर्णीय क्षति बताया. तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान ‘मेन ट्सी खंग’ धर्मशाला के महासचिव त्सेरिंग फुंत्सोक ने बताया कि तिब्बती चिकित्सा पद्धति को दुनिया भर में प्रचारित करने वाला बहुत बड़ा नाम चला गया. डॉ. यशी के शिष्य रहे डॉक्टर केलसंग ढोंडेन, डॉक्टर नामग्याल कुसर, डॉक्टर पसांग ग्याल्मो खंगकर ने कहा कि गुरुजी ने अपना पूरा जीवन समाजसेवा में लगा दिया. दवा खाकर कैंसर रोग को मात देने वाले लखनऊ निवासी रवि शुक्ला का कहना है कि डॉ. यशी उनके लिए भगवान बनकर आए थे. कैंसर का रोग ठीक होने पर जब उन्होंने दोबारा टेस्ट करवाए तो भारतीय डॉक्टर हैरान थे. डॉ. यशी ने दलाईलामा के निजी चिकित्सक के रूप में काम करने के बाद मैक्लोडगंज में अपना क्लीनिक खोला था.