जयपुर. सांगानेर विधायक अशोक लाहोटी ने हाल ही में मुख्यमंत्री के साथ वीडियो कान्फ्रेंस में एक आशंका जताई थी – जयपुर शहर कहीं अगला न्यूयॉर्क या इटली तो नहीं बनने जा रहा है! उनकी जताई आशंका को एक राजनैतिक आशंका कहकर खारिज नहीं किया जा सकता. पिछले एक महीने के आंकड़े उनकी आशंका को सही साबित करते हैं. उनकी आशंका में जयपुर शहर में कोरोना से निपटने में सरकार की लापरवाही और दिशाहीनता साफ साफ नजर आती है. 26 मार्च से लेकर 16 अप्रैल के बीच जयपुर में कोरोना संक्रमण 483 गुना हो गया है. इनमें 95 फीसदी मरीज शहर के रामगंज क्षेत्र से हैं.
कोरोना के जयपुर में शुरुआती संक्रमण की बात करें तो जयपुर में प्रदेश का पहला कोरोना मरीज दो मार्च को सामने आया था लेकिन वह विदेशी पर्यटक था और स्थानीय लोग इससे संक्रमित नहीं हुए. लेकिन रामगंज इलाके की रहमानिया मस्जिद के पास ओमान से आए एक व्यक्ति को जब 26 मार्च को कोरोना पॉजिटिव पाया गया तो हालात बिगड़ने लगे. हालात बिगड़ने के पीछे की बात की पड़ताल करना जरूरी है. पहला ओमान से आये उस व्यक्ति की स्वास्थ्य विभाग ने जांच की. लक्षण नहीं पाए जाने पर उसे क्वारांटाइन में रहने को कहा गया. वह नहीं माना. बाहर निकलता रहा. सामूहिक नमाज में जाता रहा. रिश्तेदारों से मिलता रहा. फिर आए तबलीगी जमातियों ने सरकार के तमाम प्रयासों पर पानी फेर दिया. उन्होंने अनेक लोगों को संक्रमित किया. फिर इस इलाके के लोगों की सामूहिक मानसिकता ने इसे और भी बढ़ा दिया. इस सामूहिक मानसिकता को समझना बहुत मुश्किल है. जब इन इलाकों में लॉकडाउन बेअसर हो गया तो प्रशासन को जबरन यहां पहले कर्फ्यू और फिर महाकर्फ्यू लगाना पड़ा. हालात इतने मुश्किल हो गए कि 27 मार्च को परकोटे के साथ थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया और परकोटे में किसी भी तरह की एंट्री बंद कर दी गई. इस इलाके में ढाई लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. इनमें नब्बे फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोग हैं. फिलहाल कोरोना नामक अदृश्य और खतरनाक विषाणु रामगंज के आग्रही वाहकों के माध्यम से शहर के कई दूर-दराज के क्षेत्रों में भी पसरने लगा है. और विशेषज्ञ आशंका जाहिर कर रहे हैं कि जयपुर सामुदायिक संक्रमण के किनारे पर पहुंच गया है. शहर के दूर दराज के क्षेत्रों में भी अब कोरोना संक्रमित आने लगे हैं. प्रदेश के कुल संक्रमितों में से लगभग आधे जयपुर से हैं, और उनमें भी 95 फीसदी रामगंज और आसपास के क्षेत्रों से हैं. जिस लॉकडाउन में जयपुर में 14 अप्रैल के बाद ढील मिलने की संभावना थी, अब लगता नहीं है जयपुर अगले एक महीने तक उससे उबर पाएगा.
कोरोना रोकने के भीलवाड़ा मॉडल की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. राज्य सरकार भीलवाड़ा मॉडल के जरिए कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में वाहवाही लूट रही है. इसमें कोई शक नहीं है कि भीलवाड़ा ने अपने पुरुषार्थ से कोरोना पर विजयी पाई है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी भीलवाड़ा प्रशासन की प्रशंसा की है. इसके लिए भीलवाड़ा जिला प्रशासन, वहां के स्वास्थकर्मियों, सफाईकर्मियों और सबसे ज्यादा वहां के आम नागरिकों की प्रशंसा करनी चाहिए. लोगों ने प्रशासन द्वारा लागू शर्तों का पूरी तरह पालन किया और कोरोना को फैलने से रोका. मगर सवाल यह है कि खुद सरकार की नाक के नीचे, जहां मुख्यमंत्री, सचिवालय और सैकड़ों आईएएस अधिकारी बैठते हैं, वहां कैसे कोरोना वायरस का संक्रमण मात्र 22 दिनों में एक से बढ़कर 485 तक हो जाता है. पहले लॉकडाउन, फिर कर्फ्यू और आखिर में महाकर्फ्यू के बावजूद सरकार का कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए आधा दर्जन से ज्यादा आइएएस अधिकारियों का बनाया वार रूम भी नियंत्रित करने में विफल साबित हुआ है.
यह सही है कि सरकार और प्रशासन की इच्छा शक्ति मजबूत हो तो कोरोना जैसे वायरस का प्रसारण रोका जा सकता है. लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. तमाम प्रयासों के बावजूद जयपुर के रामगंज और परकोटे में भीलवाड़ा मॉडल काम क्यों नहीं कर पा रहा है. इसका जबाव रामगंज के डीएनए में से ढूंढना पड़ेगा. यह थोड़ा कड़वा है. लोग उसमें सांप्रदायिकता भी ढूंढ सकते हैं. मगर कोरोना जैसे खतरनाक वायरस से मुकाबले के लिए किसी को भी अंधेरे में नहीं रहना चाहिए. भीलवाड़ा जिले में लोगों ने ( जिले में बहुसंख्यक हिंदु समुदाय-लगभग 93 प्रतिशत) ने स्वतः स्फूर्त कोरोना से लड़ने के लिए मुश्किलों के बावजूद प्रशासन का सहयोग किया. नियम-कानून- कायदों का पालन किया. इसकी नतीजा यह जिला देश भर में एक मॉडल के तौर पर उभरा. इधर रामगंज में लोग प्रशासन की कड़ी सख्ती से पहले तक घर में रहने और नमाज नहीं पढ़ने के संबंध में निर्देशों के लिए शायद फतवे का इंतजार करते रहे. प्रशासन के निर्देशों को हवा हवाई समझते रहे और आपस में मिलते रहे. कोरोना वायरस को अपने ही लोगों के बीच फैलाते रहे. आश्चर्य की बात शहर के तमाम मौलवियों ने भी सरकारी आग्रह से पहले तक उन्हें इन तमाम गतिविधियों से रोकना उचित नहीं समझा. इतने चाक चौबंद इलाके से कोरोना वायरस का वाहक बनकर अब्दुल रहमान बाड़मेर तक पहुंच जाता है. सोचने की बात है कि यहां भीलवाड़ा मॉडल कैसे लागू किया जा सकता है?
अब्दुल रहमान प्रकरण से प्रशासनिक लापरवाही और सामुदायिक उत्तरदायित्व के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार को समझा जा सकता है. राजस्थान के एपीसेंटर बने जयपुर के रामगंज जयपुर के रहने वाले अब्दुल रहमान बाड़मेर जिले के धोरीमन्ना तहसील के भलीसर विद्यालय में बतौर प्रधानाचार्य कार्य रहा है. मगर लॉकडाउन के दौरान ही कुछ दिन पूर्व अपने ‘प्रबंधन’ से निजी वाहन से जयपुर चला गया था. उसकी कार्यशैली से वाकिफ कुछ ग्रामीणों ने प्रशासन को उसकी इस हरकत से अवगत भी करवाया कि वह अभी जयपुर गया हुआ है और उसके वापस लौटने की भी संभावना है.
छह अप्रैल तक बाड़मेर प्रदेश के उन जिलों में शामिल था, जो कोरोना से पूरी तरह मुक्त था. मगर अब्दुल रहमान रामगंज में महाकर्फ्यू को तोड़ते हुए छह अप्रैल को बाड़मेर पहुंचा. और कोरोना पॉजीटिव के रूप में बाड़मेर का पहला केस बना. बड़ा सवाल यह है कि वह कैसे कर्प्यूग्रस्त रामगंज से छह जिलों की सीमाओं को तोड़ता हुआ, पुलिस और प्रशासन की मिली भगत या आंखों में धूल झौंकता हुआ वापस तीन अन्य लोगों के साथ अपने निजी वाहन से बाड़मेर लौट आया. मगर एक नर्सिंग कर्मी के संदेश के आधार पर उसकी जांच हुई और वह जिले का पहला कोरोना पॉजीटिव निकला. अभी और कितने निकलेंगे, कहा नहीं जा सकता. फिलहाल उसके खिलाफ बाड़मेर जिला प्रशासन ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है.
उधर, दिल्ली सरकार की तर्ज पर सरकार की प्रतिदिन जारी होने वाली कोरोना मामलों की रिपोर्ट में से तबलीगी जमात का कॉलम हटा दिया गया. लेकिन इससे सच नहीं छिप सकता. सरकारी सूत्रों के मुताबिक जयपुर में 95 प्रतिशत संक्रमित मुस्लिम समुदाय से हैं. समस्या यह भी है कि समुदाय का समझदार तबका भी इस महामारी के समय सिर्फ इसी बात से परेशान है कि लोग कोरोना के बहाने समुदाय को निशाना बना रहे हैं. वह भी सच्चाई को स्वीकारने में हिचक रहा है.
यह सही है कि भीलवाड़ा मॉडल कोरोना रोकने के लिए एक बेहतरीन मॉडल साबित हो सकता है. मगर उसके लिए उसी तरह की सख्ती, नागरिकों में कानूनों का पालन करने की प्रवृति और प्रशासन में कानून का पालन करवाने की इच्छा शक्ति की जरूरत होती है. अब सवाल यह है कि क्या सरकार की इच्छा शक्ति कोरोना एक एपिसेंटर रामगंज में लोगों में नागरिक कर्तव्य पालन की भावना जगा पाएगा? क्या प्रशासन जयपुर को इटली और न्यूयॉर्क होने से रोक पाएगा? क्या तुष्टिकरण की आड़ में कानून पालन में अब भी शिथिलता बर्दाश्त की जाएगी? क्या तीन मई तक कोरोना को काबू कर सामान्य जनजीवन शुरू किया जा सकेगा? राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर बड़ी जिम्मेदारी है.