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कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरा करते

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शिवा पंचकरण

धर्मशाला

कोरोना के काल में जहाँ पूरी दुनिया थम सी गयी है, वहीं सोशल मीडिया में एक वर्ग अफवाहें फैलाने के मामले में ज्यादा सक्रिय हो गया है. अभी हाल ही में कुछ लोगों द्वारा भारत के गृहमंत्री अमित शाह की बीमारी की एक झूठी खबर चलाई गयी. वायरल होने में भले ही इसने समय लिया हो, परन्तु कई वर्षों से इस प्रकार की खबर के इंतज़ार में बैठे हुए कुछ विशेष लोगों को तो मानो संजीवनी मिल गयी हो, वह इस झूठी खबर से इतने उत्साहित थे जैसे पाकिस्तान ने अभी कोरोना की दवाई ढूंढ निकाली हो और पहला टीका उन्हीं को लगना है. खैर सोचने का दाम नहीं लगता तो जिसे जो सोचना है वह सोचे. परन्तु तकनीकी के दौर में आज सोच कब एक विचार और विचार से हकीकत बन जाए इसका भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. एक अफवाह कैसे एक खबर बन गयी, जिसका स्पष्टीकरण खुद गृहमंत्री अमित शाह को ट्वीटर पर आकर देना पड़ा तो इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मामला कितना गंभीर था.

लेकिन एक प्रश्न उठता है, आखिर इतने दिन अमित शाह थे कहाँ? 2019 में गृहमंत्री बने अमित शाह अपने अनोखे अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं. चाहे 370 को हटाने की बात हो या नागरिकता कानून, सब फैसलों में अमित शाह की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी. किन्तु कोरोना के काल में अमित शाह का मीडिया से दूर होना सबके मन में एक संशय लेकर आया कि आखिर अमित शाह हैं कहाँ? लेकिन इसकी सच्चाई यह थी कि गृहमंत्री परदे के पीछे रह कर अपना काम कर रहे थे. चाहे मंत्रिमंडल की बैठक हो, वुहान वायरस काल में कोरोना वारियर्स के विरुद्ध हो रहे हमलों को लेकर कानून बनाना हो, गृहमंत्री बिना किसी बात की चिंता किये अपना काम कर रहे थे. परन्तु काम करते हुए बाकी चीज़ों से दूर रहने का फायदा उठाया कुछ तथाकथित पत्रकारों ने. सोशल मीडिया के माध्यम से गृहमंत्री के फेक अकाउंट द्वारा यह अफवाह फैलाई गयी कि भारत के गृह मंत्री का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इसीलिए अमित शाह गायब हैं. फेक ट्वीट को पढ़ कर आग में घी डालने का काम किया कुछ तथाकथित पत्रकारों ने. इसमें सबसे पहला नाम आया पत्रकार कम आप प्रवक्ता ज्यादा विजया लक्ष्मी नागर का. इन्होंने भारत के गृहमंत्री को कैंसर होने की कामना कर डाली. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की पूर्व पत्रकार लेखा कामना कर रही थी कि भारत के गृहमंत्री को कोरोना और कैंसर दोनों हो जाए. एक और तथाकथित पत्रकार शाहीद सिद्दीकी तो इस अफवाह से इतने उत्साहित हो गये थे कि उन्होंने भारत सरकार से मंच पर आ कर अमित शाह के बारे में बताने को कहा. राणा आयूब, शमिया लतीफ़ आदि पत्रकारों ने भी इस झूठी अफवाह को अपने-अपने अनुसार लोगों को परोसा. आप से कांग्रेस में आई अलका लाम्बा भी इसमें पीछे नहीं रही और उन्होंने भी तंज़ कसते हुए गृहमंत्री के जल्द स्वस्थ होने की कामना की.

पर, कहते हैं ना,’कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते, सांप के काटने से मोर नहीं मरते’. अभी हाल ही में गृहमंत्री ने इस सारे मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ी. उनके शुभचिंतकों के बार-बार आ रहे संदेशों से व्यथित हो कर अपने स्वस्थ होने की जानकारी ट्विटर के माध्यम से दी.

ऐसा पहली बार नहीं है, जब इस प्रकार कुछ लोगों ने अपनी कुंठा का प्रदर्शन किया हो, इससे पहले भी कई तथाकथित बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री को भी कोरोना होने तक की कामना कर चुके है. पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई.कुरैशी प्रधानमंत्री को अप्रत्यक्ष रूप से कोरोना होने की कामना कर चुके हैं. मौत का सौदागर आदि नामों की संज्ञा तो पहले से ही दी जाती थी, परन्तु अब कुछ लोग भारत के प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री की मौत की कामना भी करने लगे हैं. कुछ लोग ऋषि कपूर की मृत्यु पर कहते हैं कि इनकी जगह भगबान मोदी या शाह को ले जाता तो अच्छा होता.

नफरत और प्रेम दोनों राजनीति में साथ-साथ चलते हैं. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी कहते थे कि राजनीति में मतभेद तो हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए. लेकिन आज की राजनीति इन सब बातों को पीछे छोड़ चुकी है. सत्तारूढ़ पार्टी पर यूँ तो कई तरह के झूठे आरोप लगाये जाते हैं, पर इस तरह के मसलों पर सब खामोश हो जाते हैं.

इस बीच एक महत्वपूर्ण खबर यह भी है कि जिन लोगों द्वारा ये अफवाह सबसे पहले फैलाई गयी थी, उन लोगों को गुजरात पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया गया है. सूत्रों के अनुसार इसके पीछे चार लोग फ़िरोज़ खान, सरफ़राज़, साजिद अली, और सिराज हुसैन थे जो गृहमंत्री के बीमार होने से सम्बंधित झूठी अफवाह फैला रहे थे.

 

 

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