भारतीय मनीषा में पर्वों-उत्सवों का अपना विशेष सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आधार है. विशेषकर जयंती मनाने के पीछे आदर्श, मूल्य, धरोहर और सामाजिक उपादेयता का अधिक महत्व होता है. हम राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर से लेकर भगवान विश्वकर्मा और अन्य सभी महापुरुषों की जयंती प्रेरणा स्वरूप मनाते हैं. रामनवमी या कृष्ण जन्माष्टमी समाज को ऊर्जा देने वाले सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आयाम हैं.
विश्वकर्मा जयंती, राष्ट्रीय श्रम दिवस को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है. विश्वकर्मा का व्यक्तित्व एवं सृष्टि के लिये किये गये कार्यों को बहुआयामी अर्थों में लिया जाता है. आज के वैश्विक सामाजिक-आर्थिक चिंतन में विश्वकर्म को बड़े ही व्यापक रूप में देखने की जरूरत हैं, कर्म ही पूजा है, आराधना है. इसी के फलस्वरूप समस्त निधियां अर्थात ऋद्धि- सिद्धि प्राप्त होती हैं. कर्म अर्थात योग: कर्मसु कौशलम् योग का आधार कौशल युक्त कर्म, क्वालिटी फंक्शनिंग है. बाह्य और आंतरिक ऊर्जा के साथ गुणवत्ता पूर्ण कार्य की संस्कृति.
‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा’ परिणाम तो कर्म का ही श्रेष्ठ रूप में आता है, अकर्म का नहीं. फिर विश्वकर्म अर्थात संर्पूणता में कर्म, वैश्विक कर्म, सर्वजन हिताय कर्म और कर्म के लिये सर्वस्व का न्योछावर. विश्वकर्मा समस्त सृष्टि के लिये सृजन के देव हैं. उन्होंने सार्वदेशिक शोध आधारित सृजन की पृष्ठभूमि ही नहीं तैयार की, अपितु सबके लिये उपादेय वस्तुओं का निर्माण किया. गीता में कृष्ण ने कर्म की सतत प्रेरणा दी है. निष्काम कर्म आज भी वही सफल है, जो कर्म को तकनीक आधारित अर्थात कौशल युक्त कर्म करता हुआ आगे आता है.
विश्वकर्मा उसी कर्मजीवी समाज के प्रेरक देवता हैं. परंपरागत रूप में प्रत्येक शिल्प, हस्तशिल्प, तकनीक युक्त कार्य, वास्तु सहित छोटे-बड़े सभी शिल्पों से जुड़े समाज के लोग विश्वकर्मा जयंती को आस्थापूर्वक मनाते हैं. इस दिन देश भर के प्रतिष्ठानों में अघोषित अवकाश रहता है. यही एक अवसर है, जब देश के प्रत्येक प्रतिष्ठान में समवेत पूजा होती है. यहां सर्व धर्म समभाव का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है.
गांवों के देश भारत में कार्य की विशिष्ट सहभागी संस्कृति है. यद्यपि आधुनिकीकरण, मशीनीकरण से ग्रामीण कौशल में कमी आयी है, पर आज भी बढ़ई, लोहार, कुंभकार, दर्जी, शिल्पी, राज मिस्त्री, स्वर्णकार अपने कौशल को बचाये हुये हैं. ये विश्वकर्मा पुत्र हमारी समृद्धि के कभी आधार थे. आज विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर इनकी कला को समृद्ध बनाने के संकल्प की जरूरत है.
ग्रामीण ढांचागत विकास, गांव की अर्थव्यवस्था, जीविका के आधार, क्षमता वृद्धि, अर्थोपाय सबके बीच विश्वकर्मण के मूल्यों, आदर्शों की देश को जरूरत है. 17 सितंबर विश्वकर्मा जयंती के माध्यम से यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस दौर में भारतीय देशज हुनर, तकनीक को समर्थन, प्रोत्साहन मिला तो मौलिक रूप से देश उत्पादक होगा, समृद्ध होगा, सभी के पास उत्पादन का लाभ पहुंचेगा. विश्वकर्मा पुत्र निहाल होंगे और भारत उत्पादकता में पुनर्प्रतिष्ठित होगा. विश्वकर्मा जयंती से कौशल युक्त श्रम का संदेश सभी तक पहुंचे और उत्पादक संस्कृति विकसित हो. भारत सहभागी उद्यमिता विकास में आगे आये. श्रम आधारित समद्धि में जन-जन को अवसर मिले, विश्वकर्मा जयंती समाज-राष्ट्र को इसकी प्रेरणा दे.
(लेखक अयोध्या नाथ मिश्र नेता प्रतिपक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के आप्त सचिव हैं)