मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत का व्यापार समृद्ध होगा तो विश्व का भी समृद्ध होगा. इसके लिए कुछ बदलाव भी करने होंगे. रोजगार को बढ़ावा देना होगा. व्यापार का हर एक सदस्य परिवार का हिस्सा समझकर चलना होगा. व्यापार करते समय अपनी पूंजी पर ध्यान देना होगा. साहस, बुद्धि, शक्ति, धैर्य, प्रयास, विजीगिषु वृत्ति यह हमारी पूंजी है. तथा निद्रा, तंद्रा, क्रोध, आलस यह हमारे शत्रु हैं, इनका त्याग कर व्यवहार करना चाहिये. आगे बढ़ते समय ये ध्यान में रहे कि विश्व को समृद्ध बनाने वाला वैभव संपन्न भारत हमें बनाना है. भारत कृषि प्रधान देश है. कृषि के साथ व्यापार उत्पादन बढ़ेगा तो कृषि का भी विकास होगा. समग्र विचार कर, व्यापार में विकास करने के प्रतिमान हमें निश्चित करने होंगे. उसी के साथ नीतिमत्ता का भी ध्यान रखना होगा खोई हुई समृद्धता देश को वापस करना यह हमारा राष्ट्रीय मिशन है. यह मिशन हर भारतीय के जीवन का हिस्सा हो, और हर व्यापारी इसी को सामने रख कर व्यवहार करे, यह अपेक्षा है. सरसंघचालक जी चेंबर ऑफ कॉमर्स इंडस्ट्री (आईएमसी) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) की ओर से Nationalism and Ethical Practices in Business विषय पर संबोधित कर रहे थे. मंच पर आईएमसी के अध्यक्ष डॉ. ललित कनोडिया जी, बीएसई के निदेशक जनरल अरविंद प्रधान जी तथा व्यवस्थापकीय संचालक – मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष कुमार चौहान जी उपस्थित थे.
सरसंघचालक जी ने व्याख्यान में कहा कि व्यापार में मूल्य (एथिक्स) होने चाहिए या नहीं? देखा जाए तो ज्ञान को अलग मूल्यों की जरूरत नहीं, वह स्वयं पूर्ण हैं. वह जैसा है, वैसा ही प्रकट होता है. ज्ञान की इस विशेषता के सामने आज दुनिया झुक गयी है. भारत आज तक मूल्यों को साथ लेकर व्यापार करता आया है.
उन्होंने कहा कि भारतीय अध्यात्म धर्म पर आधारित है. स्वामी विवेकानंद ने कहा है – ‘भारत में जब तक धर्म शेष है, तब तक भारत मिट नहीं सकता.’ हमारे अस्तित्व का प्रयोजन धर्म के नाते दुनिया को जोड़ना ही है. “वसुधैव कुटुंबकम्” यह सत्य जानकर वैसा ही व्यवहार पूरे विश्व के साथ करना जरूरी है. व्यापार का उपयोग सबको जोड़ने के लिए करना है. हम व्यापार धर्म के आधार पर करते हैं. इसे ही तो मूल्य कहते हैं. हम जो कमाते हैं, उसका समाज के प्रति उपयोग होना चाहिए. आज भी जीडीपी, इकॉनॉमिक इंडेक्स के आधार से हम दुनिया के पहले पांच देशों में गिने जाते हैं. लेकिन विश्वास बहाली के सूची में सर्वप्रथम कौन है, इससे व्यापार की परिभाषा अब बदल गई है. आज भारत पर विश्व का विश्वास है. भले आज हम भौतिक संपत्ति से अमीर नहीं हैं, भले ही हमारे टेंडर्स थोड़े कम मूल्य के हों, लेकिन फिर भी इस विश्वास के बल पर अनेक देश आज भारत से व्यापार करने में उत्सुक हैं.
एक कथा सुनाते हुए कहा कि देवों के राजा इंद्र एक दिन महान विष्णु भक्त तथा असुरों के राजा प्रह्लाद के पास याचक बन कर चले गए और उनसे सत्व मांग लिया. सत्व के साथ प्रह्लाद का बल, तेज और उसके साथ राज लक्ष्मी भी इंद्र के पास चली गयी. तात्पर्य जिसके पास सत्व, बल और तेज है, उसी के पास लक्ष्मी बसती (रहती) है. युद्ध होता है, तब प्राण हानि होती है, पर अनेक सालों तक इस्लामी आक्रमण से लड़ते हुए भी हमारा देश दुनिया का सबसे संपन्न देश ही रहा था. अंग्रेजों ने जब भारत को अपने कब्जे में लिया, तब उन्होंने हमारा सत्व हमसे छीन लिया. हमारा सत्व, बल और तेज जो हमने न जाना, वो पहचानकर उन्होंने भारत पर इतने साल राज किया. इस बात की ओर सरसंघचालक जी ने सबका ध्यान आकर्षित किया.