देहरादून (विसंके). मूलरूप से पौड़ी जिले के यमकेश्वर विकास खण्ड के कांडी ग्राम निवासी महंत अवेद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने की खबर मिलते ही पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर छा गई. भारतीय धर्म एवं दर्शन के प्रति रूचि के कारण इन्होंने अपना पूरा जीवन अध्यात्म और सामाजिक कार्यों में लगा दिया. किशोरावस्था में ही उन्होंने कैलास मानसरोवर की यात्रा कर ली थी. इस यात्रा से उनका मन बहुत विचलित हो चुका था, वे संसार की नश्वरता के साथ आत्मा की अमरता के ज्ञान की खोज में बेचैन थे. उसी समय उनकी भेंट योगी निवृत्तिनाथ से हुई. योगी निवृतिनाथ के योग, आध्यात्मिक दर्शन और नाथपंथ के विचारों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा. इससे वे नाथपंथ के सामाजिक समन्वयवादी दृष्टिकोण एवं हठयोग साधना की ओर खिंचते चले गये. 1942 में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ ने अवेद्यनाथ को विधिवत दीक्षा देकर अपना शिष्य एवं उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महंत जी के निधन से समाज और राष्ट्र की अपूर्णनीय क्षति हुई है. सूत्रों के मुताबिक मंदिर परिसर में महंत दिग्विजयनाथ की समाधि के पास ही महंत अवेद्यनाथ को समाधि दी जायेगी.