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ग्रामीण भारत – चुनौतियों से उभर रहे अवसर 

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गोपाल गोस्वामी

वर्तमान वैश्विक संकट ने मानव समाज के समक्ष एक भयानक स्थिति का निर्माण कर दिया है, चिंता केवल यह नहीं है कि बीमारी से कैसे बचें, जीवित कैसे रहें. अपितु यह भी है कि कब तक ऐसे जीवित रह सकेंगे ? भोजन व आवश्यक वस्तुओं का भंडार कितने दूर तक साथ देगा ? भण्डारण की हुई वस्तुएं शीघ्र ही समाप्त जाएँगी, उसके उसके पश्चात् का क्या उपाय होगा ? आदि-आदि कई प्रश्न मुँह बाएं खड़े हैं, जिनका शीघ्र ही उत्तर ढूंढा जाना अति आवश्यक हो गया है.

हमें विदित है कि सम्पूर्ण विश्व में पूर्णतः बंदी चल रही है, उद्योग कारखाने बंद हैं, सामाजिक अंतर व विषाणु सुरक्षा उपकरण कारखानों के श्रमिकों के लिए उपलब्ध करवाने में समय लगेगा व बिना सुरक्षा उपकरणों के कार्य करना भयावह व जीवन घातक हो सकता है. बड़े कारखानों को कार्य शैली में परिवर्तन करना होगा, जिससे रोग को फैलने से रोका जा सके. परन्तु श्रमिकों की संख्या को नियंत्रित करने से उत्पादन क्षमता घटेगी व रोजगार भी कम होगा.

भारत में अब भी ६०% रोजगार ग्रामीण व कृषि पर आधारित है, भारत दशकों पूर्व तक कृषि प्रधान देश के रूप में विदित था, परन्तु कृषि उत्पादों का वैश्विक बाजार अब भी भारत की पहुंच से अत्यधिक दूर है, कृषि उत्पादों का समुचित संसाधन न हो पाने के कारण हमारी कृषि व किसान दोनों दयनीय अवस्था में हैं. हमारा अधिकतर अनाज सड़ता है या उसकी समुचित कीमत हम किसान को नहीं दे पाते, जिस कारण कृषि से लोगों की रूचि कम होने लगी है.

एक अवलोकन पश्चिम के खाद्य बाजार पर करें, अमेरिका प्रतिवर्ष १५१ बिलियन डॉलर के कृषि उत्पाद, फल, कॉफी विदेशों से आयात करता है. यूरोपीय देश ११७ बिलियन यूरो के कृषि उत्पाद आयात करते हैं, सऊदी अरब ३५ बिलियन डॉलर के कृषि उत्पाद आयात करता है, यह सूची लम्बी है परन्तु भारत के निर्यात का प्रतिशत यहाँ नगण्य है.

हमारे देश में उत्तम अनाज, खाद्य पदार्थ, सूखे मेवे, फल, मसाले, कॉफ़ी, चाय व औषधीय वनस्पति बहुतायत में होती है, परन्तु निर्यात में हमारी सहभागिता नगण्य ही है. अमेरिका, पश्चिम व मध्य पूर्व के देश जो खाद्य पदार्थ आयात करते हैं, भारत उनका अग्रणी उत्पादक है. परन्तु हमारे किसानों के पास मूल्यवर्धन की अक्षमता के कारण हम इसमें पिछड़ गए हैं. आवश्यकता है, ग्रामीण क्षेत्रों व कृषि को सुदृढ़ कर किसान व ग्रामीण क्षेत्रों को आर्थिक सुदृढ़ता प्रदान करने की व शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के बीच साम्यता लाने की. जिससे शहरों पर दबाव काम किया जा सके व ग्रामीणों के पलायन को भी रोका जा सके.

कोरोना महामारी में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में आये श्रमिक वर्ग का बृहद रूप से मोहभंग हुआ है, असुरक्षा की भावना प्रबल हुई है जो अब उन्हें वापस नगरों की और लौटने से रोकेगा. अतः यह एक उत्तम समय है, उनको ग्रामीण जीवन में पुनः प्रतिस्थापित करने का, उनके रोजगार के साधन खड़े करने का, जिससे कि उनका जीवन यापन ठीक से हो सके. भारत का कृषि व ग्रामीण भाग आने वाले दिनों में उचित संधान कर विश्व के कृषि बाजार पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकता है, हमारे पास साधन हैं, भूमि है, किसान हैं व नगरों से लौटे कुशल श्रमिक हैं. जिनको छोटे छोटे कुटीर व गृह उद्योगों में कृषि उत्पादों के मूल्यवर्धन के काम में लगाया जा सकता है. जिसकी पूरे विश्व में मांग है.

भारत के आर्थिक चिंतकों, सामाजिक संस्थाओं, कृषि विशेषज्ञों, प्रबंधन के ज्ञाताओं, तकनीकी शिक्षा के बड़े संस्थानों (IIT /IIM /Agri-Uni ) को चाहिए कि इस समय में हम किस प्रकार अपने बेरोजगार हो रहे श्रमिक वर्ग को उसके पारम्परिक कृषि व ग्रामीण व्यवसाय (ताम्रकार,लुहार,मोची,तेली आदि) में तकनीकी सहातया कर उसकी गुणवत्ता, क्षमता व बाजार तक पहुँचने में सहायता कर सकते हैं.

मूल्यवर्धित कृषि पदार्थों के उत्पादन के नए स्वरुप व तकनीकी उन तक पहुंचा सकते हैं, सस्ती गुणवत्ता वाली मशीनें, गाँव से सीधे नगरों में उपभोक्ता तक पहुँचने में सप्लाई चैन व्यवस्था खड़ी कर सकते हैं.

पश्चिम ने कोरोना से बहुत नुकसान उठाया है, उनकी तुलना में भारत की स्थिति अच्छी है. उसका कारण हमारा खान पान है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में अत्यधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ है. भारतीय हल्दी, अदरक, लहसुन, काली मिर्च, इलायची, मुलेठी, अश्वगंधा इत्यादि की बड़ी मांग पश्चिम से होगी जो भारत के लिए एक वरदान साबित हो सकती है, यदि हम इस चुनौती को अवसर में बदल पाएं तो. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में उत्तम प्रकार के मसाले, औषधियां, जड़ी बूटियां बहुतायत में होती हैं, जिनका मानक फार्मूला बना कर गृह उद्योगों में इनका मूल्यवर्धन कर निर्यात किया जा सकता है.

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल पर्यटन के नए अपारम्परिक मॉडल विकसित किये जा सकते हैं. यूरोप के बूढ़े हो रहे लोगों को मानसिक व शारीरिक देखभाल की आवश्यकता पड़ेगी क्योंकि वहां उनकी देखभाल करने वाली नयी पीढ़ी नहीं है, हमारा ग्रामीण क्षेत्र उनको यह विकल्प दे सकता है. जहाँ उनको आयुर्वेदिक व परंपरागत चिकित्सा व देखभाल मिल सकती है व हमारा एक बड़ा उद्योग खड़ा हो सकता है. जिसके मूर्त प्रारूप विकसित करने के व्यक्तिगत व सामूहिक प्रयास हो रहे हैं.

चीन विश्व का सबसे बड़ा कपास का आयातक व निर्यातक है, हम कपास के बड़े उत्पादक हैं. उसकी पूरी मूल्यवर्धित व्यवस्था विकसित कर अपने किसानों को समृद्ध कर देश के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान दे सकते हैं, आवश्यकता है इस विषय को गंभीरता से लेकर इसके मूर्त रूप विकसित किये जाने की, जिस पर भी गुजरात के कई समूह काम कर रहे हैं.

ग्रामीण क्षेत्र में बहनों द्वारा स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सेनेटरी नैपकिन्स व टिश्यू नैपकिन का उत्पादन कर नगरीय उपभोक्ताओं को उसकी आपूर्ति की जा सकती है. इसी प्रकार परंपरागत ताम्र, पीतल, कांसा, चमड़ा, देशी औषधियां, व खाद्य पदार्थों का उत्पादन में हमारी विशेषज्ञ टीमों द्वारा आधुनिक तकनीकी सहायता प्रदान हो तो हमारा भारत पुनः अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था व ग्रामीण जीवन को वैभवशाली बना सकता है.

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