जबलपुर. संस्कृत भारती कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं है. यह सामाजिक संस्था है. इसका मुख्य कार्य उन लोगों को संस्कृत भाषा सिखाना है जो स्कूल कालेज आदि में पढ़ाई नहीं करते. इस संस्था की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि यह लोगों को बिना किताब के ही बोलना सिखाती हैं. यह कहना है संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री देव पुजारी का.
उन्होंने विश्व संवाद केन्द्र से विशेष बातचीत में बताया कि संस्कृत भारती के प्रयासों से आज राजगढ़ जिले के ग्राम झिरी के सभी लोग संस्कृत में बाते करते है. इस भाषा को सिखाने के लिये कोई अलग से स्कूल या कॉलेज नहीं चलाया जाता. बल्कि 15-20 लोगों का समूह बनाया जाता है और जहां जगह मिलती है, वहीं पर बैठ कर पढ़ाना शुरू कर दिया जाता है. लगातार बीस दिन तक एक घंटे पढ़ने से व्यक्ति संस्कृत बोलना सीख जाता है. आगे और दक्षता हासिल करने के लिये वर्ग लगाकर तैयारी कराई जाती है. इस तरह के वर्ग प्रांत में सन् 2000 से लग रहे है. अखिल भारतीय योजना के अनुसार 2014 में जिला स्तरीय सम्मेलन हो रहे हैं. 2015 में प्रांत स्तर के और 2016 में अखिल भारतीय सम्मेलन होंगे.
श्री देवपुजारी ने बताया कि संस्था को शिक्षण पूर्णतः निःशुल्क है. भाषा को पत्राचार के माध्यम से भी सिखाने की व्यवस्था की गई है. इस भाषा के प्रति रूचि जगाने के लिये कक्षा दूसरी से ही इसे पढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल और मेघालय को छोड़कर शेष भारत में संस्कृत भारती का काम अच्छा चल रहा है. थोड़ी बहुत कठिनाई आ रही है पंजाब प्रांत में. यहां के निवासियों को संस्कृत के शब्दों का उच्चारण करने में कठिनाई होती है. तमिलनाडु में डीएमके पार्टी इस भाषा का विरोध करती है और सरकार भी इसकी अनुमति नहीं देती. जबकि छात्र केन्द्र सरकार की नौकरी पाने के लिये इस भाषा को पढ़ाये जाने के लिये राज्य सरकार पर दबाव बना रहे हैं.
उन्होंने बताया कि संस्कृत भारती ने 7 से 13 अगस्त तक संस्कृत सप्ताह मनाया था. इसमें पूरे देश से सबसे ज्यादा प्रविष्टियां तमिलनाडु से आईं थीं. आज संस्कृत भाषा का प्रभाव दूसरे देशों में भी देखने को मिल रहा है. यही कारण है कि हमने अपने ही देश में इन विदेशियों को संस्कृत भाषा सिखाने की व्यवस्था कर रखी है. इसके तहत दिल्ली में हर महीने की 1 से 14 और 16-29 तारीख तक में भाषा ज्ञान कराया जाता है. इसके अतिरिक्त बंगलुरु में भी उक्त भाषा सिखाने की व्यवस्था की गई है. हर वर्ष लगभग 40 विदेशी (इसमें महिला और पुरुष दोनों हैं) संस्कृत सीखने आते हैं. श्री देवपुजारी ने बताया कि संस्कृत भारती का काम देश के साथ साथ विदेशों में अमेरिका, यू.ए..ई. इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में भी चलता है.
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Anish Desai