नागपुर. नागपुर में सप्तसिंधु जम्मू कश्मीर लद्दाख महोत्सव में तीसरे दिन जम्मू-कश्मीर के विविध विषयों पर सेमिनार आयोजित किए गए. महोत्सव में दो स्थानों पर समानांतर सत्र आयोजित हुए, जिसमें देशभर से आए विद्वानों ने हिस्सा लिया. सभी सेमिनार उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, इंदिरा गांधी कला केन्द्र दिल्ली और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किए गए.
सुबह के सत्र में ‘जम्मू-कश्मीर की भाषा एवं बोलियां’ विषय पर चर्चा आयोजित की गई. मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष और भाषाविद् डॉ. राजनारायण शुक्ला जी ने कहा कि जम्मू कश्मीर में 42 भाषा-बोलियां हैं, जिन्हें संरक्षित किए जाने की जरूरत है. कश्मीरी, डोगरी, शीना में साहित्य प्रकाशन को प्रोत्साहन की जरूरत है. इन भाषाओं की कहावतों, कहानियों, कविताओं और साहित्य का प्रकाशन, संवर्धन अहम हो गया है क्योंकि इनकी जगहों पर उर्दू और अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ रहा है. इसलिए जम्मू कश्मीर की इन भाषाओं और बोलियों को बचाने की जरूरत है. अहमदाबाद से भाषाविद् प्रो. नीरजा अरुण जी ने कहा कि देश की समृद्ध भाषाओं में जम्मू कश्मीर की भाषाएं रही हैं. कश्मीरी, डोगरी, शीना, शारदा और बल्ती ने अपनी महक से तमाम विद्वान और लेखक देश को दिए हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र नागपुर इकाई की अध्यक्ष मीरा खडक्कार जी ने कहा कि जम्मू कश्मीर को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर किए जाने की जरूरत है.
शाम को ‘गिलगित-बाल्टिस्तान का भू-स्त्रातजिक महत्व’ विषय़ पर आयोजित सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में रक्षा विशेषज्ञ कैप्टन आलोक बंसल जी ने हिस्सा लिया. आलोक बंसल जी ने कहा कि गिलगित दुनिया का एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां 6 देशों की सीमाएं लगती हैं. भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, तिब्बत की सीमाएं गिलगित से लगती है. सामरिक दृष्टि से भी बेहद अहम है. सैन्य सुरक्षा की नजर से भी ये इलाका काफी अहम है. जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, तब ज्यादातर व्यापार इसी रूट से होता था, इसलिए ये व्यापार की दृष्टि से भी काफी अहम है. गिलगित में जल संसाधन, हीरा, सोना, तांबा, अभ्रक, यूरोनियम 235, खनिज के प्रचुर भंडार मौजूद हैं.
रायसोनी लॉ कॉलेज में धारा-370 पर एक विशेष सेमिनार आयोजित किया गया. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के वकील और जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की लीगल टीम के सदस्य दिलीप कुमार दुबे जी ने मुख्य वक्ता के रूप में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 का प्रावधान अस्थाई रूप से किया गया था और धारा 370 राज्य को स्पेशल राज्य का दर्जा नहीं देता है क्योंकि 370 के प्रावधान लाते समय संविधान के अध्याय-21 में स्पेशल शब्द ही नहीं था. जम्मू कश्मीर में पीआरसी (परमानेंट रेजीडेंट सर्टिफिकेट) के चलते बड़ी संख्या में शरणार्थियों को उनके मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया गया है. पीआरसी के चलते उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी छात्र स्वीपर जैसे काम करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि पीआरसी के चलते इन छात्रों को सिर्फ स्वीपर, साफ सफाई का काम करने लिए मजबूर किया जा रहा है.