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जिनके नहीं कोई साथ, वहां पहुंचे सेवा भारती के हाथ…..

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स्वयंसेवकों ने यमुना खादर में 60 परिवारों को पहुंचाया भोजन

नई दिल्ली. देश में कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडॉउन का असर देखा जा रहा है. इस लॉकडॉउन की वजह से गरीब तबके के उन लोगों की जिंदगी थम गई है जो रोज कमाते और खाते थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन सेवा भारती ने इन लोगों के लिए भोजन से लेकर राशन और कपड़ों से लेकर घर की जरूरतों की चीजें पहुंचाने का काम किया. दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लाखों दहाड़ी मजदूरों, झुग्गियों में रहने वाले रहेड़ी-ठेला वालों और बाजारों में रिक्शा चला कर जीवन बसर करने वालों के परिवार के बीच जब सेवाभारती के लोग राशन लेकर पहुंचे तो उनकी आंखे भर आई. लॉकडॉउन की अवधि के दौरान सेवा भारती के स्वयंसेवकों ने कोरोना संक्रमण के पूरे प्रोटोकॉल का पालन करते हुए अपने सेवा कार्यों को निर्बाध गति से जारी रखा. पुलिस और मीडिया के साथियों के जरिए सेवा भारती के लोगों को जहां से भी मदद पहुंचाने का संदेश मिला, वहां जाकर उन्होंने लोगों की सेवा का काम किया. इसी बीच सेवा भारती के स्वयंसेवकों को पता चला कि यमुना के खादर में रहने वाले बहुत से खेतीहर परिवारों के समक्ष इन दिनों खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है. लॉकडॉउन के चलते वह लोग खादर से बाहर भी नहीं निकल पा रहे हैं. ऐसे परिवारों की खबर न तो मीडिया को लगी और न ही पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के पास उनका संदेश पहुंचा. ऐसे में सेवा भारती ने राशन, पानी, भोजन, कपड़े, गैस और दूसरी जरूरत की चीजों को उनके बीच पहुंचाने का बीड़ा उठाया.

यमुना के चिल्ला खादर में रहने वाले 60 परिवारों के पास एक सप्ताह से खाने के लिए कुछ भी नहीं था. लॉकडॉउन के बाद उनका वहां से निकलना मुश्किल हो गया था. ऐसे में सेवा भारती के स्वंयसेवक नाव पर सवार हो चिल्ला खादर पहुंचे. परिवारों ने जब राशन के पैकेज और भोजन सामग्री देखी तो उनकी आंखें भर आईं. लोगों ने बताया कि उनके बच्चों ने दो दिन से कुछ भी नहीं खाया, आज आप लोगों के राशन से हमारे घर में चूल्हा जल पाएगा. परिवार की महिलाओं ने बताया कि उनकी सुध लेने कोई नहीं पहुंचा. हमारे बच्चे पानी और खाने के लिए तरस गए. घर में जो राशन था, वह एक दो दिन में खत्म हो गया. चिल्ला खादर में रहने वाले परिवारों ने बताया कि वह लोग यमुना खादर में खेती करते है और आसपास के इलाके में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते है. मगर लॉकडाउन के बाद उनका बाहर निकलना कठिन हो गया था. इस कारण उनका खाना पानी बंद हो गया था, बच्चे भूख से बेहाल हो चले थे. कार्यकर्ताओं ने चिल्ला के परिवारों को आश्वासन दिया कि भविष्य में भी उन्हें अगर किसी भी तरह की मदद की जरूरत होगी तो स्वयंसेवक उनके बीच खड़े नजर आएंगे.

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