नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि समय बदलता है, परिस्थितियां बदलती हैं. लेकिन मनुष्य के जीवन में बहुत कुछ ऐसा शाश्वत होता है, जिसको कभी बदल नहीं सकते और उस पर ही पैर गढ़ाकर, अड़ाकर बदलते समय के झोकों का सामना करते हुए मनुष्यता आगे बढ़ती है. वो जो शाश्वत है, वही सनातन धर्म है और वही हिन्दुत्व है.
उन्होंने कहा कि हजार वर्षों के परकीय आक्रमणों के बाद भी हिन्दुस्थान है, हिन्दू समाज भी है और आज फिर से अपने पतन के चक्र की गति का पूर्ण विरोध करके अपने उत्थान की गति की ओर जा रहा है. उसको ये गति देने वाले सर्वस्व त्यागी महापुरुषों में मालवीय जी का नाम भी शामिल है और एक प्रकार से ये हमारा दोष-त्रुटि है कि उनको याद करना पड़ता है. वास्तव में हमारी स्वतंत्रता के पीछे यही तो सारी प्रेरणा थी. भारत का पूर्व गौरव प्रगट स्थिति में नहीं था क्योंकि वह ध्वस्त हो गया था. सारी व्यवस्थाएं टूट गई थीं. उसके चलते जीवन में भी बहुत उथल-पुथल था और भारत का गौरव शब्द का उच्चारण करना भी तब के समाज को विचित्र लगता था. ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने विदेश में जाकर भारत के गौरव की घोषणा की. परंतु सारी दुनिया को उस घोषणा पर विचार इसलिए करना पड़ा कि उस गौरव के वर्णन के अनुसार जीवन रखने वाले लोग भारत में तब थे, और तब थे इसलिए आज भी हैं.
सरसंघचालक जी अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के सचिव बाल मुकुंद पांडेय द्वारा लिखित ‘महामना मदन मोहन मालवीय – व्यक्तित्व एवं विचार‘ पुस्तक के लोकार्पण अवसर पर संबोधित कर रहे थे. पुस्तक का प्रकाशन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (नेशनल बुक ट्रस्ट) ने किया है. उन्होंने कहा कि मदन मोहन मालवीय एक दूरदृष्टा थे. जब देश स्वतंत्र हो रहा था, तब उनके मन में भावी भारत का स्पष्ट चित्र था. जिसमें भारत की पहचान और राष्ट्रीयता प्रमुख थी. उनका हर कदम भावी भारत के बारे में एक दृष्टिकोण रखकर चलने वाला होता था. उन्होंने न केवल राजनीति और पत्रकारिता, बल्कि सामाजिक सुधारों में भी अपनी छाप छोड़ी. वह एक गाइड और दार्शनिक थे. उनके अपने विचार थे, लेकिन उन्होंने अपने विचार किसी पर थोपे नहीं.
हमारे राष्ट्र के निर्माण में जैसा विवेकानंद व आंबेडकर जैसे राष्ट्र निर्माताओं का स्थान है, वही स्थान मालवीय जी का भी है. उनकी सक्रियता में शिक्षा, समाज सुधार, राजनीतिक व धर्म नीति के साथ सभी आयाम थे. संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से महामना की मुलाकात के बारे में कहा कि एक बार वह नागपुर की शाखा में आए और हेडगेवार से कहा कि आप का काम अच्छा है, कितना धन चाहिए. तब हेडगेवार ने कहा कि धन नहीं, बल्कि आप चाहिए.
जन्म से कोई ब्राह्मण या शूद्र नहीं होता है, बल्कि वह अपने कर्मों से होता है. महाभारत में इसका तीन जगह उल्लेख है कि कर्म और गुणों से रहित ब्राह्माण को शूद्र से भी कम माना गया है, जबकि कर्म और गुण से युक्त शूद्र भी ब्राह्मण जैसा है. सरसंघचालक जी ने महामना को राष्ट्र निर्माता बताते हुए कहा कि हजारों साल गुलामी के बाद भी आज भारत, हिंदू और हिंदुस्थान है तो इन जैसे संतों के कारण है. जिन्होंने अपने जीवन और कृतित्व से लोगों को प्रेरणा देते हुए निःस्वार्थ भाव से अपना कर्म किया. ऐसे प्रेरणादायी जीवन को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत एकमात्र ऐसी सभ्यता है जो विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों के बावजूद बचा रहा है, जबकि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में सब कुछ नष्ट हो गया. मालवीय जैसे व्यक्तित्वों की वजह से ही भारतीय सभ्यता विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों के बावजूद बची रही है. देश को अब भी मालवीय जैसे व्यक्तित्व की जरूरत है.
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. सतीश चंद्र मित्तल, राष्ट्रीय पुस्तक न्याय के अध्यक्ष डॉ. बलदेव भाई शर्मा व राष्ट्रीय संग्रहालय के महा
निदेशक डॉ. बी आर मणि सहित अन्य विशिष्टजन उपस्थित रहे.