शिवा पंचकरण
धर्मशाला
कभी मीडिया द्वारा हिन्दू–पारसी, पारसी–सिक्ख, युहुदी–पारसी या इस तरह की कोई तहज़ीब बताई गयी है? अगर नहीं तो स्वागत है आपका गंगा–जमुनी तहज़ीब के सेक्युलर भारत में. यहाँ आपको हर रोज झूठी अफवाहों और झूठे नेरेटिव का प्रचार प्रसार करते हुए कई लोग मिलेंगे, जिनका एकलौता मकसद है झूठी खबरों की आड़ में विशेष समुदाय का चेहरा बुर्के के पीछे ले जाना. खैर सोशल मीडिया के आने से पहले इस जादुई कला का काफी इस्तेमाल होता था, जिसमें एक विशेष समुदाय के चेहरे को चमकाने के लिए काफी सारा मेकअप किया जाता था, लेकिन आज दौर बदला है, आज यहाँ असली चेहरा छिपाए नहीं छिपता. इस जादुई कला का चक्रव्यूह इतना खतरनाक है कि सेक्युलर विषाणु कब आपकी मति हर लेंगे आपको पता तक नहीं चलेगा.
ऐसा ही चक्रव्यूह कुछ दिन पहले रचा गया द टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा. कुछ दिन पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा एक खबर चलायी गयी थी, जिसमे बताया गया था कि तेलंगाना के एक हिन्दू ऑटो ड्राईवर वेणु मुदिराज, जिसकी मृत्यु टी.बी द्वारा बताई जा रही थी, उसके परिवार के पास पैसा न होने के कारण उसका अंतिम संस्कार विशेष समुदाय के लोगों द्वारा किया गया और इसके अलावा उन शांति के फरिश्तों द्वारा गरीब परिवार के लिए भोजन व कुछ धन भी उपलब्ध करवाया गया था. खबर में यह भी लिखा गया था कि गाँव व व्यक्ति के पड़ोसियों द्वारा ऑटो ड्राईवर से दूरी रखी जा रही थी क्यूंकि उनके अनुसार व्यक्ति कोरोना संक्रमित था. लेकिन विशेष समुदाय ने इन सारी बातों की परवाह न करते हुए गंगा–जमुनी तहज़ीब की लाज रखते हुए ये सारा कार्य किया. देखते ही देखते इस खबर से भारत के सेकुलरिज्म में चार चंद लग गए और ये खबर वायरल हो गयी.
लेकिन जब इस खबर की पुष्टि के लिए वेणु मुदिराज के परिवार से बात की गयी, तो कहानी कुछ और ही निकली. वेणु के छोटे भाई विनोद ने बताया कि उनके नाम से टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने लिखा कि ‘वेणु क्षय रोग से पीड़ित थे और लॉकडाउन के समय उनकी स्थिति और भी खराब हो चुकी थी. उनकी मौत के बाद उनके परिवार का ख्याल रखने वाला कोई नहीं था क्योंकि उनके माता पिता कुछ साल पहले मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे’ यह सरासर झूठ है.
विनोद बताते हैं कि उनके भाई की मृत्यु 16 अप्रैल को शाम 5 बजे हुई थी, जिसके बाद अस्पताल से हम पार्थिव देह को घर ले आए थे. उसी रात 10 बजे 5 मुस्लिम जो खुद को वेणु का दोस्त बता रहे थे, उनके घर आए. विनोद उन में से मोहोम्मद अहमद को तो जानता था, लेकिन बाकी सभी से अपरिचित था. उन सब ने आकर सांत्वना दी और जाने से पहले कुछ भोजन के पैकेट दिए.
अगली सुबह उन पांचों लोगों को मैंने शमशान घाट में देखा. जब हमारे लोग सब कार्य कर रहे थे, तब उन में से कुछ ने भी मदद करने के लिए पूछा और हमने हाँ कहा. मुझे कोई आईडिया नहीं था, कब उन्होंने वो चित्र लिए, ऐसे समय में आस–पास क्या हो रहा होता है, इस पर ध्यान रखना मुश्किल होता है.
विनोद ने बताया कि 18 अप्रैल को वे लोग फिर आए और उससे आग्रह किया कि फ़ोन पर पत्रकार से बात करे जो इस घटना को रिपोर्ट करेगा और सरकार द्वारा आर्थिक मदद मिलने की सम्भावना बनेगी. विनोद ने पत्रकार से बात की और फिर अपने दैनिक कार्यों में उलझ गया.
दो दिन बाद टाइम्स ऑफ इंडिया की कबर के बारे में जानकारी मिलने पर हैरानी हुई. पूरे समाज में उनकी किरकिरी हुई वो अलग. लोग उन्हें तंज़ कसते हुए पूछ रहे हैं कि क्या उनके पास 4 लोग भी नहीं थे अर्थी को कन्धा देने के लिए जो उन्हें दूसरे समुदाय पर निर्भर होना पड़ा. क्या उसका भाई लावारिस था?
विनोद के अनुसार उनका परिवार बहुत बड़ा है, लेकिन लॉकडाउन के कारण केवल 20 लोगों को ही बुलाया था. विनोद ने अपनी बचत के 35,000 खर्च किये, लेकिन उसका सारा श्रेय वो 5 लोग ले गए.
{स्वराज्य पत्रिका के रिपोर्टर द्वारा ये सारी बाते रिकॉर्ड की गयी है}
इसके अलावा वेणु के पुत्र सचिन ने भी इस बात को झूठा ठहराते हुए बताया कि उनके पिता की मृत्यु टी.बी से नहीं अपितु लो बीपी के कारण हुई थी. जो चित्र अखबार में लगाया गया है, उसमे आगे चल रहे दोनों व्यक्ति उनके मामा है और पीछे चल रहे व्यक्तियों को वह नहीं जानता.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की पत्रकार प्रीती विश्वास से जब पूछा गया कि परिवार ने आपकी इस झूठी रिपोर्ट का खंडन किया है तो प्रीती कहती हैं कि “वेणु के भाई विनोद ने उन्हें बताया था कि उन बच्चों के पास कोई आर्थिक सहारा नहीं है. वे पांचों लोग उनके घर आए थे, भोजन का प्रबंध किया और शमशान घाट तक गए थे.
इसी बीच में मृतक के एक घर वालों ने फेक न्यूज़ पर कानूनी कार्यवाही करने का निर्णय लिया है क्यूंकि इस खबर ने उनके परिवार की इज्ज़त को क्षति पहुंचाई है.