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दिखने लगे षड्यंत्र के सूत्र

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Panchjanyaउग्रवादी संगठन अल कायदा ने पिछले दिनों ‘भारत में जिहादी राजलाने की धमकी दी.’ब्रेकिंग इंडिया’ पुस्तक में इसके बारे में पहले ही बताया जा चुका है. अब अल कायदा की प्रत्यक्ष धमकी के बाद उसमें वर्णित भारत विरोधी षड्यंत्र की कलई खोलने वाले अन्य लेखों की चेतावनियों का महत्व और बढ़ गया है. इस पुस्तक के अनुसार, जिहादियों, चर्च के तत्वों और माओवादियों ने इस देश को आपस में बांट लिया है और बड़े-बड़े क्षेत्रों में बांटकर उसमें एक दूसरे की पूरी शक्ति से सहायता करने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. चर्च, जिहादी एवं माओवादी, इन तीनों घटकों ने पूरे देश में भूमिगत आंदोलन के लिये तैयारी कर रखी है. ये तीनों घटक विश्व में अपनी अधिकाधिक सत्ता बनाये रखने की होड़ में रहते ही हैं, लेकिन उनका यह आपस का बैर काफी पुराना चल रहा है. इसमें अनेक युद्ध भी हुये हैं, फिर भी ये घटक आज एक होकर इस तरह परोक्ष युद्ध की योजना पर अमल करेंगे, इस पर पहले तो विश्वास नहीं होता, लेकिन यह ध्यान आते ही इस पर भरोसा होने लगता है कि इस अलकायदा का गठन कभी अमेरिका के स्वार्थ से हुआ था.

यह पूरे विश्व का अनुभव है कि उग्रवादी संगठन हमेशा स्थानीय उद्देश्य साधने के लिये किसी से भी हाथ मिला लेते हैं. इसके अनुसार,देश में ओडिशा, बिहार, पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे राज्यों और उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में उनकी संयुक्त कार्रवाइयां चल रही हैं. दक्षिण में व्यापक मुहिम नहीं है, लेकिन जो उग्रवादी विस्फोट एवं हमलों की घटनायें घटीं, उनमें उनकी संयुक्त योजना सामने आ चुकी है. अलकायदा की धमकी के संदर्भ में केवल इतना ही मंतव्य निकलता है कि इस धमकी के पीछे केवल पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आने वाले उग्रवादियों की जमात ही नहीं है, बल्कि पिछले 15-20 वर्षों में इन संगठनों ने जो जाल बिछाया है, वह बाहर से आने वाले हमलावरों की क्षमता से अधिक खतरनाक है.

दूसरा यह कि अलकायदा के हमलों का खतरा केवल पिछले 50-60 वर्षों में कश्मीर के संदर्भ में पाकिस्तान की तरफ से छेड़े गये युद्ध एवं पूरे देश में हुये अनेक हमलों एवं उससे फैलने वाले आतंक से मापा जा रहा है. इस तरह का विचार करते समय एक बात हमेशा भुला दी जाती है कि इसी तरह की लड़ाइयां एवं ऐसे हमले होते हुए समाज के बेसुध होने के कारण महाद्वीप की तरह यह देश 800 वर्ष से उग्रवाद का शिकार रहा. गजनी के महमूद से लेकर औरंगजेब के आतंकी राज तक 700 वर्ष, हर दिन देश पर मुंबई में 26/11 के हमले जैसा आतंक मंडराता रहा था. उससे हुआ नरसंहार, हजारों करोड़ रुपयों की लूट एवं लाखों मां-बहनों की बेइज्जती आज भी आकलन नहीं किया गया है. वास्तव में मुगल काल के नरसंहार, महिलाओं की बेइज्जती और लूट की परिसीमा जैसी बातें आज दोहराये जाने जैसा कुछ नहीं है, लेकिन एक हजार चौदह वर्ष बाद, कोई अगर फिर से गजनी के महमूद का इतिहास दोहराने की धमकी दे और उस दृष्टि से पिछले 15 -20 वर्ष से बड़े सलीके से तैयारी होती दिखती हो तो 1000 वर्ष पूर्व की तरह बेसुध बने रहने से काम नहीं चलेगा.

भारत जैसे विशाल देश में अलग-अलग मत-पंथों की संस्थायें, संगठन और राजनीतिक दल होना स्वाभाविक है. लेकिन कुछ दल विभाजनवादियों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हाथ मिलाते हैं, यह भूला नहीं जा सकता. आज वातावरण कुछ इस तरह का है कि अलकायदा की धमकी आई है तो सरकार एवं सेना उससे निपटेगी, लेकिन पिछले 15वर्षों में इन उग्रवादियों के एक-दूसरे को सहयोग करने के मामले देखे जायें तो पूरे देश में उनका किया काम अलकायदा के उग्रवादी हमलों के लिये सहयोगी सिद्ध होना स्वाभाविक है. इसलिये उस पर गंभीरता से दृष्टि डालना आवश्यक है. ‘ब्रेकिंग इंडिया’ पुस्तक के मुखपृष्ठ पर छपे जिहादी, माओवादी एवं चर्च संगठनों के आपस में किये बंटवारे के चित्र पर नजर डालना आवश्यक है. उपलब्ध जानकारी के अनुसार, वृहत नागालैंड की स्थापना के पीछे चीन और चर्च का ही षड्यंत्र है. उसकी स्थापना के लिये चल रहे आंदोलन का नाम भी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड है. माओवादी एवं चर्च संगठनों ने पूर्वोत्तर भारत में सोशलिस्ट नागालैंड फॉर क्राइस्ट नामक आंदोलन खड़ा किया है, जिसमें अरुणाचल में उनके प्रयोग शुरू हुये. जिस समय चर्च एवं माओवादियों की दो शक्तियां आपस में एक हुईं तब चीन एवं पश्चिमी देशों के दूर-दूर तक मधुर संबंध नहीं थे. लेकिन एक वहां चर्च पर आधारित सत्ता खड़ी करना चाहता था तो दूसरे काल लक्ष्य भारत  में नक्सलवाद फैलाना था. इन दोनों के एक साथ आने से पूर्वोत्तर भारत लंबे समय तक मुख्य भाग से अलग-थलग रहा.

दुनिया भर में फैले कट्टर इस्लामवादियों ने पहले उल्फा को अस्त्रों की आपूर्ति कर उस इलाके में अपनी उग्रवादी भूमिका स्पष्ट की. माओवादी एवं चर्च को पूरे भारत में उसके एजेंटों ने छिपने के स्थान उपलब्ध कराये. उसी तरह पीपुल्स वार ग्रुप व एलटीटीई जैसे संगठनों ने भी इन गुटों के साथ हाथ मिलाये. कुछ गुटों के नागालैंड, असम, प.बंगाल, बिहार से लेकर ओडिशा तक फैलने और दूसरे गुटों के तमिलनाडु, आंध्र से होकर ओडिशा तक पहुंचने के काम का बंटवारा भी हो गया. ओडिशा में अरबों रुपयों के खनिज निकालना उनका लक्ष्य है और उसी दिशा में वहां कदम उठाये जा रहे हैं. दक्षिण में जिहादी संगठनों ने तमिलनाडु के द्रविड़ राजनीतिज्ञों से हाथ मिलाये. केरल में वहां के मार्क्सवादी संगठनों के साथ मिलकर योजनायें चलाईं. कर्नाटक की जरूरत अलग थी. वहां कुछ राजनीतिकों का चुनाव जीतना आवश्यक था.उसमें उन्हें उनकी मदद मिलने के कारण ही जिहादी कर्नाटक में बम-विस्फोट कर पाये. ये सारे विषय अत्यंत जटिल हैं. लेकिन आने वाले समय में इनमें से हर बिन्दु के गंभीर होने की संभावना है.

इसमें से पश्चिम बंगाल में आंदोलन,झारखंड में आंदोलन,बिहार में विभाजनवादी आंदोलन के रास्ते एक से अधिक उग्रवादी संगठनों का एक साथ आना शुरू हुआ. उसी समय अमेरिका में कुछ विश्वविद्यालयों ने भी वंचित वर्ग के कुछ संगठनों को जोड़कर ‘दलितस्तान’ की घोषणा की. इसी से अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भारत में वंचित विभाजनवाद की भाषा शुरू करने के आदेश निकलने लगे. इसे जिहादी आंदोलन कब सहयोग करने लगे, इसकी कोई तिथि उपलब्ध नहीं है, लेकिन लगता है, अलकायदा के आरंभ से ही यह होता आया है. बाद में अलकायदा और अमेरिका के बीच निकटता समाप्त हुई और कठोर शत्रुता शुरू हुई. इसलिये इराक एवं अफगानिस्तान के नक्शे तक बदले. आज अलकायदा पश्चिमी देशों का शत्रु है, लेकिन आने वाले समय में हो सकता है, अलकायदा द्वारा भारत को लक्ष्य करना पश्चिमी देशों को अनुकूल लगे. उसी तरह भारत के टुकड़े कर अपने-अपने हिस्से लेने की उनकी अपेक्षा पर गौर किया जाये, तो उनकी एक दूसरे को सहायता करने की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना दिखाई दे  जायेगी. हाल के दिनों में ओडिशा में इन तीनों उग्रवादी संगठनों द्वारा एकजुट होकर चलाया षड्यंत्र देखने को मिला. एक तो तीनों संगठनों के एक साथ काम करने की आवश्यकता को सार्वजनिक तौर पर बोलने वाले डॉ. विशाल मंगलवाडी और अरुंधती राय जैसे तथाकथित बुद्धिजीवियों की एक जमात सामने आई. ओडिशा में आतंक फैलाने में इन तीनों संगठनों का संयुक्त सहभाग है. इसी के एक भाग के रूप में यह प्रयोग नेपाल में किया गया. चीन में आज ये तीनों संगठन कार्यरत हैं. भारत में चल रहीं उग्रवादी गतिविधियों को ये मदद भी कर रहे हैं, लेकिन नेपाल की सत्ता कब्जे में लेने के उनके उद्देश्य पर पानी फिर गया है. बारह वर्ष पूर्व कंधार में हवाई जहाज अपहरण का जो मामला हुआ था, वह यद्यपि जिहादियों का काम दिखता है, लेकिन तीनों उग्रवादी संगठनों ने उसमें बराबर की मदद की थी. नागालैंड से शुरू हुए उग्रवादी संगठनों द्वारा एक साथ काम करने का मामला ओडिशा के कितना आगे जा चुका है, यह कुछ घटनाओं के घटने के बाद ही समझ आयेगा. अनेक स्थानों पर ऐसे संयुक्त उपक्रम जारी हैं, यह आज स्पष्ट हो रहा है. दक्षिण भारत में जो बम हमले हुये वे संयुक्त मुहिम से हुये थे, यह आज साफ हो चुका है. ‘ब्रेकिंग इंडिया’ पुस्तक में इसके सैकड़ों उदाहरण तो हैं ही, लेकिन संयुक्त मोर्चे को वे किस तरह पहचानते हैं, इसकी पद्धति भी उसमें दी गई है.

अलकायदा की धमकी एवं इस संदर्भ में ‘ब्रेकिंग इंडिया’ पुस्तक के दो लेखकों द्वारा पिछले 10 वर्षों के परिश्रम के बाद एकत्र की जानकारी का एक साथ विचार किया जाये, तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि आज तक अंग्रेजों और खैबर से आने वाले जिहादी आक्रांताओं के अलग-अलग हमले हुये. लेकिन दोनों आक्रमणों के समय इस देश के बेसुध रहने के कारण अनेक सदियों की गुलामी सहनी पड़ी. आज ये हमले उग्रवादियों की मदद से हो रहे हैं. इसलिये उनके प्रतिकार के लिये अधिक गंभीरता से तैयारी करनी होगी. अल कायदा की धमकी केवल बम विस्फोट कराने की होती तो आज तक की अन्य धमकियों की तरह ही प्रतीत होती. लेकिन उन्हें पाकिस्तान से म्यांमार तक जिहादी राज कायम करना है. पिछले 50-60 वर्ष में ब्रिटिश, यूरोपीय एवं अमेरिकियों की आक्रामक नीतियों से किसी ना किसी कारण से परिचय हो चुका है. डॉलर का वर्चस्व, विश्व बैंक, तकनीक में पराधीनता, भारतीय युवाओं में पश्चिमी दुनिया का आकर्षण और विदेशी कर्ज जैसी बातें पश्चिमी आक्रमण की प्रतीक हैं. भारत पर ब्रिटिशों का राज करीब 150 वर्ष रहा, इसलिये उनकी आक्रमण पद्धति जानी जा चुकी है. उससे पूर्व जिहादियों ने यहां 800 वर्ष तक गुलामी लादी थी. उनका उग्रवाद वैसा नहीं रहा था, जैसा आज दिखाई देता है. इस बारे में आम नगारिक क्या भूमिका अपनायें, इस पर देश के विशेषज्ञ अपना दृष्टिकोण रखेंगे ही, लेकिन किसी भी देश की स्वतंत्रता वहां के नागरिकों की तैयारी पर निर्भर रहती है. इस बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि आने वाला समय देश के सभी नागरिकों के लिये अधिक सतर्क एवं अधिक तैयार रहने का होगा.

-मोरेश्वर जोशी                                               

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