नई दिल्ली. भारतीय प्राचीन वांगमय और शास्त्रों में विश्व को सिखाने की पात्रता थी, आज भी हम विश्व को ज्ञान प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं किन्तु इसके लिए संस्कृत को वही स्थान दिलाना होगा जो प्राचीन समय में था क्योंकि संस्कृत भाषा में जीवन व्यवहार के सभी विषय या पक्ष निहित हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त ने विश्व हिन्दू परिषद् के स्वर्ण जयंती कार्यक्रमों की श्रंखला में इन्द्रप्रस्थ संस्कृत आयाम की ओर से उदासीन आश्रम पहाड़गंज में संस्कृत गोष्ठी एवं विद्वत्सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में यह विचार प्रकट किये. डॉ. गुप्त ने बताया की देश में भारतीयता और भारतीय भाषाओं के पक्ष में जो वातावरण बन रहा है उसमें संस्कृत की भी विशिष्ट भूमिका रहेगी.
दिल्ली संस्कृत अकादमी के पूर्व सचिव और उत्तराखंड संस्कृत संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. श्रीकृष्ण सेमवाल ने गोष्ठी में बताया कि केन्द्र सरकार संस्कृत को सम्मानजनक ढंग से प्रतिष्ठापित कर रही है, आवश्यकता है कि परंपरागत गुरुकुलों से लेकर विश्वविद्यालय और शोध स्तर तक संस्कृत को प्रोत्साहित किया जाये. दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव (राजभाषा) श्री आनन्द कुमार सोनी ने कहा कि विश्व में हिन्दी बोलने वाले और संस्कृत को प्रतिष्ठा देने वाली सर्वाधिक जनसंख्या है. संस्कृत के विद्वानों को इसे रोजगारपरक और जनभाषा बनाने का अभियान चलाना चाहिये. समारोह की अध्यक्षता करते हुये विहिप के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुप्रसिद्ध उद्योगपति डॉ. रिखबचंद जैन ने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीयों की आस्था और आत्मा से जुड़ी हुई है. विहिप इसके प्रचार-प्रसार के लिये कृतसंकल्प है. इन्द्रप्रस्थ संस्कृत आयाम की ओर से 12 संस्कृत सेवा सम्मान प्रदान किया गया.
संस्कृत विद्वत्सम्मान प्राप्त करने वालों में अलीगढ़ के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. महेन्द्र मिश्र, श्रीलाल बहादुर संस्कृत विद्यापीठ दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय, कवि डॉ. क्षेमचन्द्र शर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्राध्यापिका डॉ. धर्मा, विद्याभारती के पूर्व शिक्षाधिकारी वैदिक गणितज्ञ आनन्द बेताल, पीजीडीएवी महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. दिलीप कुमार झा, राणा डिग्री कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष व कवि डॉ. वागीश दिनकर, बसंत ग्राम आदर्श संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य शिव नारायण झा, महर्षि वेदव्याय गुरुकुल बक्करवाला के प्राचार्य आचार्य राकेश द्विवेदी, एससीईआरटी के पूर्व प्राध्यापक डॉ. रामकरण डबास, इंदिरागांधी कलाकेन्द्र के उप अनुसंधाता डॉ. कीर्तिकान्त शर्मा व दूरदर्शन के संस्कृत समाचारवाचक श्री सुनील जोशी प्रमुख हैं.
संस्कृत सेवा सम्मान पूर्व शिक्षाधिकारी श्री विष्णुलाल टमटा, पूर्व डीएसपी श्री अवतार कृष्ण रैना और इतिहासकार एवं लिपिवेत्ता श्री नरेन्द्र पिपलानी को प्रदान किया गया. सम्मान स्वरूप शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिह्न प्रदान किये गये.
गोष्ठी में भारत संस्कृत परिषद के अध्यक्ष प्रो. महेन्द्र मिश्र, डॉ. गोस्वामी गिरधारी लाल, प्राच्य प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट, श्री लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के ज्योतिष विभाग के प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी, जवाहरलाल नेहरू विवि. के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. सी उपेन्द्र राव, विहिप के क्षेत्रीय मंत्री करुणा प्रकाश, दिल्ली प्रांत संगठन मंत्री डॉ. अनिल कुमार ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये. सुप्रसिद्ध कवि डॉ. वागीश दिनकर ने भारत-पाक सीमा पर केन्द्रित वीर रस की कविता सुनाकर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस अवसर पर श्री हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के छात्रों ने मंगलाचरण और उदासीन आश्रम गुरुकुल के छात्रों ने शांतिपाठ किया. समारोह का संचालन संस्कृत आयाम के प्रमुख सूर्य प्रकाश सेमवाल किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. कृष्णचंद्र पांडे, आचार्य पवन कुमार शर्मा, श्यामलाल, बिजेन्द्र हुड्डा, मारुफ उर्र रहमान, सुश्री मुदिता वेताल, शांतिप्रसार शास्त्री, नरेन्द्र डंगवाल, सतीश शर्मा, आशीष गौड़, प्रमोद कौशिक, डॉ. राजेश कुमार, मंगलसिह नेगी, विजय मनोचा, नंदन रावत, सचिन लघाटे, शशि मोहन रावत तथा उमेदूलाल ने विशेष सहयोग किया.