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दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण की पहल

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12 मई को चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान के तत्वावधान में “चित्रकूट की जैव विविधता में दुर्लभ प्रजातियां” विषय पर विद्वानों और जैव विशेषज्ञों ने गहन चिंतन-मनन किया. विद्वानों ने कहा कि चित्रकूट आदिकाल से ही जैव विविधता के रूप में परिपूर्ण रहा है. चित्रकूट पर्वत पर हजारों औषधीय पौधे पाये जाते हैं. कुल 223 तरह के पौधे कामदगिरी पर्वत पर हैं. चित्रकूट के 84 कोसीय क्षेत्र में 780 प्रजातियों के पौधे पाये जाते हैं, जिनमें से 78 पौधे संकटग्रस्त हैं.

कार्यक्रम का शुभारंभ दीनदयाल शोध संस्थान के मुख्य सचिव डॉ़ भरत पाठक द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुआ. कार्यक्रम का संचालन कर रहे जन शिक्षण संस्थान,चित्रकूट के निदेशक एवं औषधीय-हर्बल उद्यान के विशेषज्ञ डॉ़ रामलखन सिंह सिकरवार ने बताया कि हमारे देश की जैव विविधता में 91,000 जीव-जन्तु और 49,000 वनस्पतियां हैं. एशिया में पक्षियों की 2700 प्रजातियां हैं, जिनमें से 1232 भारत में हैं और 141 प्रजाति भारत के अलावा दुनिया में कहीं नहीं हैं. कृषि विज्ञान केन्द्र, गनीवां, चित्रकूट के कार्यक्रम समन्वयक डॉ़ नरेन्द्र सिंह ने चित्रकूट क्षेत्र की दुर्लभ फसलों के बारे में बताया कि पर्वतीय क्षेत्र में मडुआ के प्रति किसानों का रुझान कम हो रहा है. कृषि विज्ञान केन्द्र मझगवां-सतना के कार्यक्रम समन्वयक डॉ़ राजेन्द्र सिंह नेगी ने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से सतना जिले में धान की 100 किस्मों को संरक्षित किया गया है. कुल 144 प्रकार की फसलें सतना जिले में उगाई जा रही हैं. इस क्षेत्र में बैंगन की बहुरूपीय प्रजातियां हैं. गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र के प्रभारी डॉ़ रामप्रकाश शर्मा ने बताया कि 1952 में गोवंश की देश में 52 प्रजातियां थीं और 2012 की गणना के अनुसार 34 प्रजातियां बची हैं. इस अवसर पर कृषि क्षेत्र से जुड़े अनेक विद्वान उपस्थित थे.

 

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