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नए भारत के निर्माण में महिलाओं का स्वयंसिद्ध होना आवश्यक है – शांताक्का जी

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राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांताक्का का नए भारत की महिलाओं से आह्वान है कि वे घिघियाना छोड़ दें और अपने भीतर ऐसी शक्ति पैदा करें कि हम नेतृत्व कर सकें. उनसे समिति के कार्यों, नए भारत में महिलाओं की स्थिति आदि पर हिन्दी विवेक की विशेष बातचीत के महत्वपूर्ण अंश –

नए भारत की संकल्पना के बारे में आपके क्या विचार हैं?

भारत के लिए नित्य नूतन और चिरपुरातन दोनों शब्दों का प्रयोग किया जाता है. पहली बात तो मुझे लगता है कि भारत हमेशा ही नया रहा है. कई वर्षों से हम देखते आ रहे हैं कि युगानुकूल परिवर्तन को भारत ने हमेशा ही स्वीकार किया है. हमारे ॠषि-मुनियों ने सभी दिशाओं से अच्छे विचारों को आत्मसात किया और समाज में आवश्यक परिवर्तन करवाए. इसलिए भारत परिवर्तनों को स्वीकार करने वाला हमेशा ही नया भारत रहा है.

दूसरी बात अभी हमारे प्रधानमंत्री जी ने नए भारत की जो संकल्पना दी है, मुझे ऐसा लगता है कि वह नया भारत हिन्दू आध्यात्मिक जीवन पद्धति और नैतिक मूल्यों के आधार पर खड़ा भारत होगा. जब हमारी जीवन पद्धति इस प्रकार की हो जाएगी तो अपने आप नया भारत आतंकवादमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और नैतिक मूल्यों से युक्त होगा.

चिरपुरातन भारत और नए भारत में क्या समानताएं व क्या अंतर हैं?

भारत ने हजारों साल से कुछ जीवन मूल्यों को स्वीकार किया है. इन जीवन मूल्यों का नए भारत में ह्रास नहीं होना चाहिए, बल्कि इन पर आधारित ही हमारी जीवन पद्धति होनी चाहिए. परंतु साथ ही साथ, आज विश्व जिस दिशा की ओर जिस गति से आगे बढ़ रहा है, भारत को भी उसी प्रकार सिद्ध होना आवश्यक है और वह हो भी रहा है. हाल ही में भारत ने चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण किया. तकनीक के अन्य क्षेत्रों में भी भारत प्रगति कर रहा है. अत: अपने जीवन मूल्यों और संस्कारों को साथ लेकर नवीन तकनीकों के आधार पर आगे बढ़ने वाला भारत ही नया भारत होगा.

आपका विदेशों में भी बहुत प्रवास होता है. क्या आपको भारत की ओर देखने के वैश्विक दृष्टिकोण में परिवर्तन दिखाई देता है?

पहले जब हम विदेशों में प्रवास करते थे तो हमारी बातें सुनने के लिए विदेशी नागरिक या वहां बसे भारतीय नागरिक भी अधिक उत्सुक नहीं दिखाई देते थे. परंतु आज जब हम जाते हैं, तो लोग हमारी ओर बहुत सम्मान से देखते हैं. उनके मन में भारत के प्रति कई जिज्ञासाएं दिखाई देती हैं. वे उत्सुकतावश हमसे कई प्रश्न पूछते हैं. अब हमें भी लगता है कि उनके सामने जाने के पहले हमारी भी पूरी तैयारी होनी आवश्यक है, जिससे उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया जा सके. इसे नए भारत की बानगी भी कहा जा सकता है कि भारत की ओर आज विश्व एक सम्मानित दृष्टि से देखने लगा है.

क्या आप कुछ उदाहरण ऐसे बता सकती हैं, जिनसे ये साबित हो कि भारत को विदेशों में सम्मान प्राप्त हो रहा है?

एक बहुत बड़ा उदाहरण है योग. कई वर्षों से योग भारत की जीवनशैली का अंग रहा है. विदेशों में भी इसका प्रचार-प्रसार करने के लिए कई लोग कई वर्षों से प्रयत्न कर रहे थे. परंतु अब जाकर योग दिवस के रूप में इसे वैश्विक मान्यता मिली है और कई देशों में लोगों ने इसे अपनाया है. विदेशों में लोगों के पास बहुत पैसा है, परंतु मानसिक स्वास्थ्य की कमी है. यह मानसिक स्वास्थ्य उन्हें योग से प्राप्त हुआ.

भारत ने चंद्रयान-2 का सफल परीक्षण किया. इसके पहले भी कई मिसाइलों और पीएसएलवी आदि का परीक्षण किया गया. भारत की अंतरिक्ष में मिल रही इस कामयाबी को भी दुनिया सम्मानपूर्वक देख रही है. एक और क्षेत्र है सुरक्षा, जिसमें भारत द्वारा किए गए कार्यों ने पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया है. हमारी भारतीय सेना ने जो एयर स्ट्राइक की, उसकी चर्चा अमेरिका और इजराइल जैसे विदेशों के अखबारों में भी हुई थी. केवल आतंकवादियों के ठिकानों के अंदर घुसकर उनको निशाना बनाकर उन पर हमला करना, बिना किसी निर्दोष नागरिक को नुकसान पहुंचाए और वह भी कुछ ही मिनिटों में… यह सचमुच बहुत कठिन कार्य है, जो हमारी सेना ने कर दिखाया है.

इसके साथ ही आज भारत के नेतृत्व ने विदेशों के साथ अपनत्व का भाव रखकर मैत्रीपूर्ण सम्बंध बनाए हैं. वसुधैव कुटुम्बकम् की हमारी भावना को चरितार्थ कर रहे हैं. अत: भारत को सभी जगह सम्मान मिल रहा है.

राष्ट्र सेविका समिति का उद्देश्य है, तेजस्वी हिन्दू राष्ट्र का पुनर्निर्माण. क्या नए भारत में इसकी परिपूर्ति होगी?

तेजस्वी हिन्दू राष्ट्र का पुनर्निर्माण से अर्थ है, अपने राष्ट्र की तेजस्विता बढ़ाना. अर्थात् विभिन्न क्षेत्रों में भारत की प्रगति होना. यही नए भारत की भी संकल्पना है.

किसी भी समाज का उत्थान महिलाओं की भागीदारी के बिना नहीं हो सकता. नया भारत बनाने के लिए महिलाओं से क्या अपेक्षाएं हैं?

नए भारत की ओर आगे बढ़ते समय महिलाओं को अपनी सोच और अपनी कृति में परिवर्तन करना आवश्यक है. महिलाओं को स्वयंसिद्ध होना आवश्यक है. उन्हें उनके आस-पास और पूरी दुनिया में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी रखनी चाहिए. नई तकनीकों को सीखने की कोशिश करनी चाहिए. अभी तक हम भारत की महिलाओं में मातृत्व और कर्तृत्व के गुण देखते थे. अब भारतीय महिलाओं को अपने अंदर के नेतृत्व गुणों को भी जगाना होगा. हमारे देश में ऐसी कई महिलाएं हुई हैं, जिन्होंने नेतृत्व करके इतिहास बना दिया है.

आप देश के सबसे बड़े महिला संगठन का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसकी स्थापना से लेकर अभी तक समाज में तथा स्वयं समिति में किस तरह के परिवर्तन हुए हैं?

जिस समय राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना हुई थी, उस समय समाज में महिलाओं में घर से बाहर निकलकर समाज के लिए कुछ कार्य करने की मानसिकता ही नहीं थी. उस काल में वं. लक्ष्मीबाई केलकर उपाख्य मौसीजी ने महिलाओं के लिए इतना चिंतन किया और महिलाओं को बाहर निकालने के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया. आज महिलाएं स्वयं राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ना चाहती हैं. सेविकाओं की संख्या बढ़ी है और आज हमें सम्पर्क करने की आवश्यकता कम पड़ती है, वरन वे स्वयं आने की उत्सुकता प्रदर्शित करती हैं.

राष्ट्र सेविका समिति में भी कई परिवर्तन हुए. गणवेश से लेकर अन्य कई बातों में समिति ने परिवर्तन किया है. मुख्यत: हमने समय के साथ अपने विचारों में परिवर्तन किए हैं. मूल उद्देश्य कायम रखते हुए उनके प्रस्तुतिकरण में परिवर्तन किए हैं. इसका लाभ यह हुआ कि पहले शाखा में तरुणियों की संख्या कम हुआ करती थी, परंतु अब तरुणियों की संख्या भी बढ़ रही है. हमने तरुणी विभाग शुरू किया है, जिसके माध्यम से अलग-अलग कॉलेजों में कार्यक्रम होते रहते हैं.

पहले हम समाज की प्रबुद्ध महिलाओं के सीधे सम्पर्क में नहीं थे. वे केवल हमारी ‘दक्ष-आरम’ की कार्य पद्धति से ही परिचित थीं, समिति में आने से कतराती थीं. परंतु अब हम अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें अपने साथ जोड़ रहे हैं. कई स्थानों पर मेधाविनी मंडल के माध्यम से हम अलग-अलग कार्यक्रम कर रहे हैं. सेवा कार्यों के माध्यम से भी कई महिलाएं हमसे जुड़ रही हैं.

महिलाओं की शिक्षा को लेकर अभी भी समाज पूरी तरह से जागृत दिखाई नहीं देता. नया भारत बनाने के लिए महिलाओं की शिक्षा कितनी मायने रखती है?

बिलकुल! हर बालिका, महिला शिक्षित होनी ही चाहिए. समाज को इस दिशा में प्रयास करना बहुत आवश्यक है. राष्ट्र सेविका समिति द्वारा भी बालिकाओं को विद्यालयीन औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक सामाजिक प्रशिक्षण देने का कार्य किया जाता है. समिति द्वारा पूरे देश में 22 छात्रावास चलाए जा रहे हैं. जिन क्षेत्रों में बलिकाओं की शिक्षा की व्यवस्था नहीं है, वहां से हम इन बालिकाओं को लाते हैं और उनकी सम्पूर्ण शिक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं. उदाहरणार्थ पूर्वोत्तर की बालिकाओं, कुष्ठ रोगियों की निरोगी बालिकाओं, नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों की बालिकाओं आदिे क्षेत्रों की बालिकाओं की शिक्षा की जिम्मेदारी हम उठाते हैं. हमें बहुत आनंद होता है, जब इन छात्रावासों से शिक्षा ग्रहण करने के बाद ये बालिकाएं अपने स्थानों पर वापस जाती हैं और वहां समाज में जागृति लाने का प्रयत्न करती हैं.

देश में होने वाले विभिन्न अपराधों में महिलाओं के संदर्भ में होने वाले अपराधों की संख्या अत्यधिक है. इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए?

इन अपराधों को कम करने के लिए समाज तथा महिलाओं की ओर से व्यक्तिगत प्रयास भी आवश्यक हैं. राष्ट्र सेविका समिति बालिकाओं को, तरुणियों को सदैव इस बात के लिए प्रेरित करती है कि स्वयं सोचें कि उनकी ओर देखने का समाज का द़ृष्टिकोण कैसा होना चाहिए. समाज में सम्माननीय जीवन बिताने के लिए हमारी सोच, हमारे विचार कैसे होने चाहिएं. युवतियों से संवाद करके हम उनका मार्गदर्शन करने का प्रयत्न करते हैं.

समाज की ओर से हमें अपेक्षा है कि महिलाओं के प्रति अत्याचारों, अपराधों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई जल्द तथा सख्त होनी चाहिए, जिससे अपराधियों को कड़ी सजा मिले.

तीसरा प्रयास हमारा होता है, पुरुषों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने का. इसके लिए भी हमने कॉलेज के विद्यार्थियों की काउंसिलिंग की. उन्हें यह समझाने का प्रयास किया कि महिलाओं की ओर देखने का उनका दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए. हमारा मानना है कि ये अपराध कानून की कठोरता से कम नहीं होंगे. ये अपराध जब समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन होगा, तभी कम होंगे. हम कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से यह भी बताते हैं कि घर में मां अपने बच्चों को भी यह संस्कार दे कि महिलाओं को सम्मान दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही बस्तियों में जाकर भी महिलाओं की सुरक्षा से सम्बंधित जागृति लाने का कार्य विभिन्न स्थानों पर किया जा रहा है. महिलाओं और तरुणियों को हम शाखा, कॉलेज, अपार्टमेंट्स आदि में आत्मसुरक्षा की तकनीक भी सिखाते हैं. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता कि मैं स्वयं अपनी रक्षा कर सकती हूं. इन सभी प्रयत्नों के माध्यम से हम महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं.

भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज रहा है. अभी भी समाज में महिला पुरुष समानता दिखाई नहीं देती है. समानता लाने के लिए किन प्रयासों की आवश्यकता है?

हमारे चिंतन में अर्धनारीश्वर की संकल्पना रही है. अर्धनारीश्वर समानता का ही द्योतक है. भारतीय समाज में महिला और पुरुष समान ही हैं. वे पस्पर पूरक हैं. हमारी संस्कृति में सब सांकेतिक हैं. उसे समझना आवश्यक है. कालांतर में आक्रमणों के कारण इसमें परिवर्तन होने लगा. अत: आज हमें ऐसा दिखाई देने लगा है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है, परंतु हम पुन: अपने चिंतन के प्रति लोगों को जागृत कर रहे हैं. परिवारों से सम्पर्क के दौरान हम पुरुषों से चर्चा करते हैं कि जिस तरह वे घर से बाहर निकलकर सामाजिक कार्य कर रहे हैं, उसी तरह उनकी पत्नी या घर की अन्य महिलाएं भी सामाजिक कार्य करें. उसके लिए पारिवारिक दायित्वों को भी मिलजुलकर निभाना आवश्यक है. महिलाओं को हम कहते हैं, आप अपनी क्षमताओं का विकास करें. अपने अंदर के नेतृत्व गुण को जगाएं. आप स्वयं इतनी सामर्थ्यवान बनें कि सम्मान या समानता आपको मांगना न पड़े, बल्कि अपने-आप मिले. ‘वी शुड नॉट डिमांड, वी शुड कमांड’ अर्थात्, घिघियाओ नहीं, नेतृत्व करने की क्षमता प्राप्त करो.

आज लगभग समाज के हर क्षेत्र में महिलाएं अपना स्थान बना रही हैं. आज के दौर की किन महिलाओं को आप आदर्श के रूप में समाज के सामने रखना चाहेंगी?

राष्ट्र सेविका समिति उन सभी महिलाओं को आदर्श के रूप में देखती है जो नैतिक मूल्यों के आधार पर अपना जीवन जीती हैं तथा जिन्होंने अपने जीवन में कोई बड़ा संकल्प लिया और उसे पूर्ण किया. वह महिला एक सामान्य परिवार की या अशिक्षित भी हो सकती है. परंतु उसके विचार उच्च होने चाहिए. बिहार के एक छोटे से गांव के सैनिक पुलवामा की घटना में शहीद हुए. उनका चार वर्ष का बेटा है और तरुण पत्नी है. अपने पति की मृत्यु की खबर सुनने के बाद उस युवती ने कहा – मैं अपने बेटे को भी सेना में भेजूंगी. यह आदर्श है.

राजनीति में सुमित्रा ताई महाजन, मृदुला सिन्हा, निर्मला सीतारमण आदि महिलाओं ने आदर्श प्रस्तुत किए हैं. इसके अलावा खेल जगत में भारतीय वेट लिफ्टर मीराबाई चानू का नाम अवश्य लेना चाहूंगी. वे मणिपुर के एक सामान्य गांव से हैं. वे जब अमेरिका में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए गईं तो वहां की पद्धति के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सभी को भोजन के लिए बुलाया था. वहां उपस्थित सभी खिलाड़ियों के सामने पकवानों सजी सुंदर थालियां थीं, परंतु मीराबाई चानू सामान्य थाली में सामान्य भोजन कर रही थीं. जब डोनाल्ड ट्रंप ने उनसे पूछा कि आप ऐसे अलग क्यों खाना खा रही हैं तो उन्होंने उत्तर दिया, “मैं अपने घर से अपना भोजन लेकर आई हूं. क्योंकि मेरी मां और गुरू ने मुझे सिखाया है कि जैसा हम अन्न खाते हैं, वैसा हमारा मन होता है. इसलिए मैं हमेशा भारत का ही अन्न खाती हूं.” ट्रम्प उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कहा, “मैं आपके गांव आना चाहता हूं, वहां की मिट्टी के दर्शन करना चाहता हूं.”

तब मीराबाई चानू ने उत्तर दिया, “आप मेरे गांव अवश्य आइये. परंतु आप अगर मेरे गांव की मिट्टी के दर्शन करना चाहते हैं तो वो मैं अभी भी करवा साकती हूं. क्योंकि मैं अपने गांव की मिट्टी हमेशा साथ में रखती हूं और रोज इसे प्रणाम करती हूं.” ये उनकी राष्ट्रभक्ति का आदर्श है.

भारत सबसे अधिक युवाओं का देश है. इन युवाओं को नए भारत की संकल्पना में किस प्रकार शामिल करेंगे?

आज की तरुण पीढ़ी को एक लक्ष्य रखकर संकल्पित जीवन बिताने की आवश्यकता है. आज की तरुण पीढ़ी में नैतिकता का ह्रास होता दिखता है, जो गलत है. आज के युवा आराम का जीवन चाहते हैं, नौकरी करना चाहते हैं. हमारे देश में पहले कई अनुसंधान, शोधकार्य होते थे. पिछले कुछ वर्षों में ये अनुसंधान होने बहुत कम हो गए हैं. अत: आज की युवा पीढ़ी से यह अपेक्षा है कि वे हमारे देश की आवश्यकताओं को पहचानकर नए-नए अनुसंधान करें. केवल नौकरी करने की इच्छा न करें, बल्कि अपनी मानसिकता कुछ इस प्रकार बनाएं कि हम स्वयं बहुत कुछ नया कर सकते हैं. साथ ही समाज से भी यह अपेक्षा है कि वे भारतीय युवाओं द्वारा किए गए अनुसंधानों को अपनाएं तथा उसके लिए पोषक वातावरण का निर्माण करें.

नया भारत वैश्विक स्तर पर कैसे प्रस्तुत होगा?

जिस दिन भारतीय विचार को, भारतीय चिंतन सम्पूर्ण दुनिया में स्वीकार्य होने लगेगा, उस दिन हम कह सकते हैं कि भारत नया भारत बन गया है.

समस्याओं में ही विकास के अंकुर होते हैं. वर्तमान की किन समस्याओं को हम भविष्य के अवसरों में बदल सकते हैं?

मेरे विचार से आज की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है. सबसे अधिक युवा इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं. हमें सबसे पहले इसके मूल कारण तक जाना जरूरी है. युवा, अर्थात् ऊर्जा. अगर इस ऊर्जा को सकारात्मक तरीके से सही दिशा में प्रवाहित किया गया तो वे समाजोपयोगी कार्य कर सकते हैं. उदाहराणार्थ कश्मीर में अफशन आशीष नामक एक लड़की पहले पत्थरबाजों की गैंग का हिस्सा थी. वहां की कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने जब उसकी रुचियों के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्हें पता चला कि उसे फुटबॉल में रुचि है. उसे उन संस्थाओं ने इस खेल का प्रशिक्षण दिया और अन्य कई प्रकार की सहायता की. आज यह अफशन आशीष राज्य की महिला फुटबाल टीम की कप्तान हैं. वह न सिर्फ पत्थरबाजी भूल चुकी है, वरन वहां के युवाओं को भी समझाती है कि ये गलत कार्य छोड़कर सही दिशा चुनो.

इसी प्रकार नक्सल प्रभावित भागों के युवाओं को पर्वतारोहण का प्रशिक्षण दिया गया. उनमें से 11 युवा एवरेस्ट पादाक्रांत कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने भी इन युवाओं का सम्मान किया था. अत: समस्याओं को शक्ति रूप में परिवर्तित करने से निश्चित ही नया भारत बन सकता है.

समिति की स्थापना हुए आठ दशक पूर्ण हो चुके हैं. इस प्रवास का सिंहावलोकन करते समय आपको कौन से महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देते हैं?

समिति की जब स्थापना हुई, तब गृहिणियों के बीच सबसे अधिक काम था. अभी तरुणियों और समाज की विभिन्न उच्चपदस्थ महिलाओं तक भी राष्ट्र सेविका समिति पहुंची है. पहले केवल शाखा के आधार पर ही समिति का कार्य आगे बढ़ता था, परंतु अब विविध आयामों में यह विस्तार हो चुका है. शिक्षा, योग, उद्योग आदि विविध क्षेत्रों में हम कार्य कर रहे हैं. हमारा कार्य धीरे-धीरे सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी हो रहा है. भविष्य में हम भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने बलबूते पर कार्य करने वाली और समाज में अपना स्थान निर्माण करने वाली महिलाओं के साथ सम्पर्क बढ़ाकर उनके माध्यम से राष्ट्रीय विचार कोने कोने तक पहुंचाने के लिए प्रयत्न करेंगे. साथ ही मीडिया में भी आने का हमारा विचार है. समूह चर्चा के माध्यम से हमारे विचारों को समाज तक पहुंचाने के लिए भी हम प्रयत्नशील रहेंगे. मातृत्व और कर्तृत्व के साथ महिलाओं में नेतृत्व को भी जागृत करना यह मुख्य उद्देश्य होगा.

साभार – हिन्दी विवेक

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