देवेश खंडेलवाल
पिछले दिनों अफगानिस्तान में एक इस्लामिक आतंकी संगठन ने 27 सिक्खों का स्थानीय गुरुद्वारे में नरसंहार कर दिया. घटना के वक्त अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक सिक्ख प्रार्थना के लिए जुटे थे. राजधानी काबुल स्थित इस 400 साल पुराने गुरूद्वारे पर हुए आत्मघाती फिदायीन हमने ने फिर से नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 पर चर्चा को फिर से शुरू कर दिया है.
भारत सरकार ने दिसंबर 2019 में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए नागरिकता कानून में एक संशोधन संसद से पारित करवाया था. इसमें इन तीन देशों में आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक तौर पर दमित एवं उत्पीडित हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी लोगों को शामिल किया गया था. दरअसल, यह संशोधन उनके मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए था, लेकिन राजनैतिक तुष्टिकरण के चलते विपक्षी दलों द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा.
28 दिसंबर, 2019 को राहुल गाँधी ने मीडिया को एक अजीबोगरीब बयान दिया, जिसका वीडियो कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल पर डाला था. गाँधी ने इस वीडियो में नागरिकता संशोधन का विरोध करते हुए कहा, “भैया देखिये ये सीधी सी बात है, ये जो पूरा तमाशा चल रहा है.. ये नोट बंदी नंबर दो है.. इससे हिंदुस्तान के सब गरीबों को ऐसा नुकसान होने वाला है, नोट बंदी को भूल जाएं वो, ये झटका जो लगेगा न, नोट बंदी से दुगना बड़ा झटका है.. ये बेसिक आईडिया क्या है? कि हिंदुस्तान के हर गरीब से बोलो कि भैया आप हिंदुस्तान को बताओ कि आप नागरिक हो या नहीं… मगर उनके जो 15 दोस्त हैं, उनको कोई डॉक्युमेंट दिखाने की जरुरत नहीं पड़ेगी… और पूरा पैसा जो बनेगा, पूरा का पूरा उन 15 लोगों की जेब में जाएगा… पहली बात… दूसरी बात झूठ की… आपने मेरी ट्वीट देखी होगी, उसमें आपने नरेन्द्र मोदी का भाषण देखा होगा, जिसमें उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है, उसके बाद आपने डिटेंशन सेंटर की वीडियो देखी होगी, और मुझे बताओ झूठ कौन बोल रहा है.”
इससे पहले कि कोई यह समझ पाता कि आखिर राहुल गाँधी कहना क्या चाहते है, और नोट बंदी का नागरिकता कानून से क्या लेना देना है. उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस संशोधन के खिलाफ पंजाब विधानसभा में एक बिल पास किया था. उन्होंने इसे भारत के हितों के विरुद्ध तथा असंवैधानिक करार दिया. ऐसा करने वाला केरल के बाद पंजाब दूसरा राज्य था. इस सन्दर्भ में कैप्टन साहब ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को 3 जनवरी, 2020 को एक पत्र भी लिखा. उन्होंने यह पत्र अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर किया था.
काबुल में सिक्खों पर हुए आतंकी हमले के बाद अचानक अमरिंदर सिंह के सुर बदल गए. अब वे अपने उसी ट्विटर एकाउंट से अफगानिस्तान में फँसे सिक्ख परिवारों को भारत लाने का निवेदन मोदी सरकार से कर रहे हैं. 28 मार्च को उन्होंने ट्वीट के जरिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर से कहा, “प्रिय जयशंकर वहाँ बड़ी संख्या में सिक्ख परिवार हैं जो अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं. मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि शीघ्रता से उन्हें एयरलिफ्ट किया जाए. यह हमारा कर्तव्य है कि इस संकट के समय में हम उनकी सहायता करें.”
अब सवाल यही उठता है, अमरिंदर सिंह अचानक कर्तव्य की बात करने लगे हैं. उनके अंदर मानवता का सागर हिलोरें मार रहा है. जब प्रधानमंत्री से लेकर भारत सरकार के प्रत्येक मंत्री ने साफ किया था कि अफगानिस्तान में सिक्ख समुदाय के धार्मिक उत्पीड़न के चलते सरकार उन्हें भारत की नागरिकता देने के लिए तैयार है. तब अमरिंदर सिंह सोशल मीडिया पर खुलकर विरोध जता रहे थे. अफगानिस्तान में पहली बार अल्पसंख्यक समुदाय पर आतंकी हमला नहीं हुआ है. उन्हें पिछले कई दशकों से निशाना बनाया जा रहा है.
अमरिंदर सिंह 1980 में पहली पर संसद सदस्य चुने गए और तब से भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं. वे दूसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने हैं. गौरतलब है कि तभी से अफगानिस्तान में सिक्खों की संख्या में लगातार कमी आ रही है. सही मायनों में, अगर समय रहते अमरिंदर साहब वहां के सिक्खों की चिंता करते तो शायद उन मासूम 27 सिक्खों की जान भी नहीं जाती.